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भारत ने तय की पूर्णतया डिजिटल भू-रिकॉर्ड और मानचित्रण तक पहुंचने की लंबी यात्रा

Urban land records are not maintained in India except in Gujarat, Maharashtra and Tamilnadu, 
and a few other cities. The purchase deed of the property registered in the Sub Registrar’s Office is
mostly the only title. Sub Registrars functioning under the Registration Act, of 1908 carry out
some due diligence on the ownership of the seller, but they are supposed to register all the
documents that are presented before them. In the absence of Government land records,the 
possibility of fraud and disputes in urban land records exists.

 

मनुस्मृति में राजाओं द्वारा भू-राजस्व संग्रह के उल्‍लेख से लेकर शेरशाह और मुगल काल में राजा टोडरमलन द्वारा विकसित भू-अभिलेख प्रणाली, ब्रिटिश काल के दौरान विकसित भूमाप प्रणाली और स्वतंत्रता के बाद विकसित भू-अभिलेख व्यवस्था के बाद से भारत ने ग्रामीण क्षेत्रों में अब पूर्णतया डिजिटल भू-रिकॉर्ड और मानचित्रण तक पहुंचने की लंबी यात्रा तय कर ली है।

गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु तथा कुछ अन्य शहरों को छोड़कर भारत में शहरी भू- अभिलेख नहीं रखे जाते। अधिकांश रूप से उप पंजीयक कार्यालय में पंजीकृत संपत्ति का खरीद-बिक्री का ब्‍यौरा ही शहरी भू-अभिलेख का एकमात्र साधन है। पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत कार्य करने वाले उप रजिस्ट्रार विक्रेता की जानकारी रखने के कुछ उचित उपाय करते हैं, लेकिन उन्हें उन सभी दस्तावेजों को पंजीकृत करना चाहिए जो उनके सामने प्रस्तुत किए जाते हैं। सरकारी भू-अभिलेखों के अभाव में शहरी भूमि संपत्ति के मामलों में धोखाधड़ी और विवाद की आशंका बनी रहती है।

भारत में तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहे महानगरीय बस्तियों के आस-पास के गैर-शहरी इलाके (पेरी-अर्बन) में निजी डेवलपर्स कृषि भूमि को लेकर उन्‍हें कॉलोनियों में बदल रहे हैं। इन कॉलोनियों को स्थानीय अधिकारियों द्वारा योजनाबद्ध अनुमोदन के साथ या उसके बिना ही विकसित किया जा रहा है। अनधिकृत कॉलोनियों में एक ही प्लॉट की कई बार बिक्री के बहुत सारे मामले सामने आ रहे हैं। सरकारी भूमि अभिलेखों के ना रहने से महंगी शहरी भूमि के मामले में अनिश्चितता, जोखिम, क्रेताओं को अनावश्‍यक परेशानी और मुकदमेबाजी होती है।

ड्रोन आधारित हवाई इमेजरी– सिटी सर्वे कंप्‍यूटरकृत भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) से ड्रोन/विमान के माध्यम से 5 सेमी की सटीकता से अब भू-मानचित्र 2 लाख रुपये प्रति किमी 2 की उचित लागत पर 2-4 महीने की अवधि में तैयार किया जा सकता है। सरकारी अधिकारियों को ऐसे मानचित्रों का जमीनी सत्यापन करने और स्वामित्व दस्तावेजों को सत्यापित करने की आवश्यकता है। नगरपालिका संपत्ति कर डेटा स्वामित्व पर प्रारंभिक जानकारी प्रदान करता है। व्यक्तिगत भूखंड और मालिकाना विवरण के साथ विस्तृत नक्शे प्रकाशित करने के उपरांत, सार्वजनिक आपत्तियां आमंत्रित की जाती हैं।

 

शहर के सर्वेक्षण का कठिन हिस्सा जमीनी स्‍तर पर इनकी पहचान करना और स्वामित्व दस्तावेजों को प्रमाणित करना है। जमीनी सत्यापन के लिए बड़ी संख्या में टीमों को शामिल करने की आवश्‍यकता पड़ती है जिनमें सर्वेक्षक और सरकारी अधिकारी होते हैं। भौगोलिक सूचना प्रणाली आधारित नगर सर्वेक्षण में भी वास्तविक कब्जे वाली भूमि और अधिकार दस्तावेज के बीच अंतर पाया गया है। जीआईएस आधारित मापों की उच्च स्तरीय सटीकता में 5 प्रतिशत तक अंतर होता है। नए रिकॉर्ड में उनके कब्‍जे में कम भूमि दिखने के कारण भू-मालिक आपत्ति दर्ज करते हैं। इसके अतिरिक्‍त कई मामलों में भू-स्‍वामित्‍व स्पष्ट नहीं होता या इस पर विवाद रहता है।

शहरी भू-सर्वेक्षण में बड़ी जनशक्ति लगती है और भूमि स्‍वामित्‍व संबंधी आपत्तियों के सावधानीपूर्वक निपटान की आवश्यकता पड़ती है। राज्य सरकार की ओर से इसके लिए व्यापक राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। भारत सरकार के भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) ने एक वर्ष में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 152 शहरों में नक्शा (एनएकेएसएचए) नामक शहर सर्वेक्षण पायलट कार्यक्रम आरंभ किया है। इसके बाद अगले चरण में 1000 शहरों में यह सर्वेक्षण किया जाएगा और 5 वर्षों में सभी 4912 शहरों में
यह योजना चलाई जाएगी। शहरी भूमि रिकॉर्ड और शहर के सर्वेक्षण से प्राप्‍त नक्शे नागरिकों को अधिकार प्रदान करते हैं। अन्य संबंधित डेटा जैसे मालिक/किरायेदार परिवार का विवरण, संपत्ति कर, भवन योजना अनुमोदन, बिजली, पानी और गैस को भी इसी आधार पर समेकित किया जा सकता है। इससे नागरिकों के जीवन में सुगमता आएगी और विभिन्न स्थानीय सरकारी एजेंसियों को उनके कार्य में सुविधा होगी।

शहरी नियोजन और संपत्ति कर कई कैमरों के साथ, शहरों की त्रिआयामी छवि और डिजिटल ट्विन उत्पन्न होते हैं। इनका उपयोग बेहतर संपत्ति कर मूल्यांकन और शहरी नियोजन के लिए किया जा सकता है। लेजर आधारित लिडार इमेजिंग ऊंचाई मानचित्रण प्रदान करती है जो शहरों में तूफान/बाढ़ के पानी की निकासी और आपदा की स्थिति में लोगों को सुरक्षित निकालने लिए बेहतर डिजाइन बनाने में सहायक होती है। यह परिवहन योजना, सड़क विकास, ढांचागत विकास के लिए भूमि अधिग्रहण और शहरी नियोजन के अन्य पहलुओं को सुगम बनाता है। भारत के कई शहरों में ड्रोन से चित्र लिए गए हैं, लेकिन शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) में क्षमता की कमी से उनका इन उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया गया है। राज्यों और यूएलबी को जीआईएस प्रौद्योगिकियों और शहरी नियोजन में निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता लेने की आवश्यकता है।

दस लाख की आबादी वाले शहर में इन कार्यों के लिए आवश्यक धनराशि 5 करोड़ रुपये से अधिक नहीं लगेगी। यह गहन प्रयास है जिसमें धन का इतना महत्‍व नहीं है। भारत अगले 5 वर्षों में हवाई इमेजरी के सरल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से शहरी भूमि रिकॉर्ड
सुव्‍यवस्थित करने, संपत्ति कर के बेहतर मूल्यांकन और शहरी नियोजन समाधान तथा बाढ़ शमन उपायों को विकसित करना चाहता है।

 

(श्री मनोज जोशी, ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग के सचिव हैं- Admin)

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