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भारत की झोली में पदक आना जारी! शरद कुमार ने पैरा एथलेटिक्स में ऊंची उड़ान भरी

Sharad Kumar’s story is one of triumph against all odds. From battling the effects of polio to standing on the podium at the Tokyo and Paris Paralympics, his journey is an inspiration to aspiring athletes. With numerous accolades to his name and more to come, Sharad continues to break barriers and bring pride to the nation.

 

-Uttarakhand Himalaya.in

भारत के पैरा-एथलीट शरद कुमार ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में पुरुषों की ऊंची कूद टी63 में रजत पदक हासिल करके अपनी उपलब्धियों में एक और हीरा जड़ दिया। उनका प्रदर्शन देश के लिए अपार गौरव का स्रोत रहा, जिसने भारत के प्रमुख पैरा-एथलीटों में से एक के रूप में उनकी पहचान को और मजबूत किया।

 

प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

शरद कुमार की खेल यात्रा उल्लेखनीय साहस और दृढ़ता से भरा है। बिहार के मोतीपुर में 1 मार्च, 1992 को जन्मे शरद को दो साल की उम्र में ही पोलियो हो गया था। उनका प्रारंभिक जीवन स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से भरा था, जिसके कारण उन्हें अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े और उन्हें ठीक करने के लिए आध्यात्मिक अनुष्ठान भी करने पड़े।

 

शरद कुमार को चार साल की उम्र में बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया, जहां उन्हें एक और चुनौती का सामना करना पड़ा जिसमें उन्हें खेल गतिविधियों से बाहर कर दिया गया। जहां अन्य लोग खेल गतिविधियों में भाग ले रहे थे, वहीं शरद को बेंच तक ही सीमित रखा गया, ऐसी स्थिति ने उन्हें बहुत निराश किया। ऐसी स्थिति से मुक्त होने की इच्छा ने खेलों में उनकी रुचि जगाई, विशेष रूप से ऊंची कूद में। उनके बड़े भाई स्कूल रिकॉर्ड धारक थे, उन्हीं से प्रेरित होकर शरद ने ऊंची कूद पर अपना ध्यान केंद्रित किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उन्नति

शरद कुमार का एथलेटिक करियर तब शुरू हुआ जब उन्होंने 2009 में 6वीं जूनियर नेशनल पैरा-एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। यह जीत एक ऐसे सफ़र की शुरुआत थी जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मंच पर आगे बढ़ने का मौका दिया। इस शुरुआती जीत ने उन्हें चीन के ग्वांगझू में 2010 के एशियाई पैरा खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण करने का मौका दिया। पिछले कुछ वर्षों में, शरद ने व्यक्तिगत और शारीरिक दोनों तरह की बाधाओं को पार करते हुए अपने कौशल को निखारा। उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियों में टोक्यो पैरालिंपिक 2020 में पुरुषों की हाई जंप टी42 में कांस्य पदक, 2019 और 2017 में विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में रजत पदक और 2018 और 2014 में एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक शामिल हैं। इसके अलावाउन्होंने मलेशिया ओपन पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल कियाजिससे भारत के प्रमुख पैरा-एथलीटों में से एक के रूप में उनकी पहचान मजबूत हुई।

 

 

सरकारी सहायता: शरद की सफलता की कुंजी

पैरा-एथलेटिक्स में शरद कुमार की सफलता को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से भारत सरकार की मदद से काफी बल मिला है। उनके प्रशिक्षण, प्रतियोगिताओं और विशेषज्ञ कोचिंग के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की गई है, जो उनके विकास और प्रदर्शन के लिए आवश्यक रही है। पंचकूला के ताऊ देवी लाल स्टेडियम में शीर्ष प्रशिक्षण सुविधाओं की उपलब्धता ने उनकी तैयारी में और योगदान दिया है। इसके अलावा, टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टीओपीएस) ने सुनिश्चित किया कि शरद को खेल में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए जरूरी मदद और संसाधन मिले। ये कार्यक्रम शरद की उपलब्धियों में सहायक रहे हैं, जिससे उन्हें उच्चतम स्तरों पर प्रतिस्पर्धा करने और अपने खेल में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करने में मदद मिली है।

 

शरद कुमार की कहानी सभी बाधाओं पर विजय हासिल करने की कहानी है। पोलियो के प्रभावों से जूझने से लेकर टोक्यो और पेरिस पैरालिंपिक में पोडियम पर खड़े होने तक, उनकी खेल यात्रा महत्वाकांक्षी एथलीटों के लिए एक प्रेरणा है। अब तक कई पुरस्कार जीतने के साथ भविष्य में भी कई और पुरस्कार जीतने के इरादे से शरद कुमार बाधाओं को तोड़ते हुए और देश को गौरवान्वित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।

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