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भारत को गत वर्ष बासमती निर्यात से 25,053 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित हुई

–उषा रावत

बासमती चावल एक निर्यात कमोडिटी है और वित्‍त वर्ष 2021-22 के दौरान इससे 25,053 करोड़ रुपये की वार्षिक विदेशी मुद्रा अर्जित हुई थी। पूसा बासमती चावल की किस्में- पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509 और पूसा बासमती 6- भारत में बासमती चावल के जीआई क्षेत्र में बासमती चावल की खेती के तहत 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर उगाई जाती हैं और भारत से बासमती चावल के निर्यात में इनकी योगदान 90 प्रतिशत से अधिक है। बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट बासमती चावल के लिए सबसे विनाशकारी रोग हैं। इससे उपज का काफी नुकसान होता है और अनाज एवं तैयार चावल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। पारंपरिक तौर पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और ट्राईसाइक्लाजोल जैसे रसायनों के उपयोग से इन रोगों को नियंत्रित किया जाता है। आयातक देशों विशेष रूप से यूरोपीय संघ द्वारा बासमती चावल में कुछ रसायनों के उपयोग को लेकर चिंता जताई जा रही है और कुछ मामलों में आयातकों द्वारा बासमती चावल की खेपों को लेने से इनकार किया जा है। हाल के वर्षों के दौरानयूरोपीय संघ ने ट्राइसाइक्लाजोल (नेक ब्‍लास्‍ट रोग के नियंत्रण में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली फंगीसाइड) के एमआरएल (न्‍यूनतम सीमा) को घटाकर 0.01 पीपीएम कर दिया है। इसलिए, बासमती चावल के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अग्रणी स्थिति बनाए रखने के लिए इस समस्‍याओं तत्काल निपटाने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के निर्देश परकेंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रीश्री नरेन्‍द्र सिंह तोमर ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को इन चिंताओं को दूर करने का काम सौंपा। आईसीएआर के अंतर्गत एक प्रमुख संस्थानआईएआरआई, नई दिल्ली ने मॉलिक्यूलर मार्कर असिस्टेड ब्रीडिंग के जरिये बासमती चावल की तीन प्रमुख किस्मों- पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509 और पूसा बासमती 6 की आनुवंशिक पृष्ठभूमि में बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगों के प्रतिरोध को नियंत्रित करने वाले जीन को शामिल करते हुए इसे प्रतिरक्षित करने पर अनुसंधान का बीड़ा उठाया।समेकित अनुसंधान के जरिये आईसीएआरआईएआरआई ने मॉलिक्‍यूलर मार्कर असिस्‍टेड ब्रीडिंग की मदद से बैक्टीरियल ब्लाइट ऐंड ब्‍लास्‍ट रोगों के लिए बासमती चावल की इन तीनों किस्मों के उन्नत संस्करण विकसित किए। परिणामस्वरूप 2021 में पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1885 और पूसा बासमती 1886 किस्‍मों को जारी किया गया था। डॉ. एके सिंह ने कहा कि बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्‍लास्‍ट यानी इन दोनों रोगों से प्रतिरक्षित बासमती चावल की तीन उन्नत किस्मेंदुनिया भर में बासमती चावल के निर्यात में भारत की अग्रणी स्थिति को बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त करेंगी।

इन किस्मों में से प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण नीचे प्रस्तुत किया गया है:

पूसा बासमती 1847 – यह लोकप्रिय बासमती चावल किस्म पूसा बासमती 1509 का एक उन्नत बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्‍लास्‍ट से प्रतिरक्षित किस्‍म है।

पूसा बासमती 1847 एक लोकप्रिय बासमती चावल किस्महै। यह पूसा बासमती 1509 का उन्‍नत संस्‍करण है। यह मॉलिक्‍यूलर मार्कर असिस्‍टेड ब्रीडिंग के जरिये विकसित बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोग से प्रतिरक्षित किस्‍म है।इस किस्म में दोनों रोगों में से प्रत्‍येक के लिए दो जीन होते हैं। बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रतिरोध के लिए एक्‍सए13 और एक्‍सए21और बैक्‍टीरियल ब्‍लास्‍ट के प्रतिरोध पीआई54 और पीआई2 जीन होते हैं। यह जल्दी पकने वाली और अर्ध-बौनी बासमती चावल किस्म है जिसकी औसत उपज 5.7 टन प्रति हेक्‍टेयर है। यह किस्म 2021 में व्यावसायिक खेती के लिए जारी की गई थी। पूसा बासमती 1509 की तुलना मेंपूसा बासमती 1847ब्लास्ट रोग (2.5 की संवेदनशीलता सूचकांक) के प्रति अत्यधिक प्रतिरक्षित है। पूसा बासमती 1509 अतिसंवेदनशील (7.0 की संवेदनशीलता सूचकांक) है। यहअतिसंवेदनशील (7.0 की संवेदनशीलता सूचकांक) पूसा बासमती 1509 की तुलना में बैक्टीरियल ब्लाइट रोग (3.0 की संवेदनशीलता सूचकांक) के खिलाफ अत्यधिक प्रतिरोधी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करती है।

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पूसा बासमती 1885 – यह बासमती चावल की लोकप्रिय किस्म पूसा बासमती 1121 का उन्नत बैक्टीरियल ब्‍लाइट एवं ब्लास्‍ट से प्रतिरक्षित किस्‍म है।

पूसा बासमती 1885 पूसा बासमती 1121 का एक उन्नत संस्करण है जिसमें बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है। इस किस्म में दोनों रोगों में से प्रत्‍येक के लिए दो जीन होते हैं। बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रतिरोध के लिए एक्‍सए13 और एक्‍सए21और बैक्‍टीरियल ब्‍लास्‍ट के प्रतिरोध पीआई54 और पीआई2 जीन होते हैं। इसका पौधा औसत कद का होता है और इसमें पूसा बासमती 1121 के समान अतिरिक्त लंबे पतले अनाज एवं खाना पकाने की गुणवत्ता है। यह मध्यम अवधि की बासमती चावल किस्म है जिसमें बीज से बीज की परिपक्वता 135 दिनों की होती है और औसत उपज 4.68 टन प्रति हेक्टेयर होती है। अत्यधिक संवेदनशील (7.3 की संवेदनशीलता सूचकांक) पूसा बासमती 1121 की तुलना में पूसा बासमती 1885(2.3 की संवेदनशीलता सूचकांक के साथ)ब्‍लास्‍ट रोग के प्रति के लिए अत्यधिक प्रतिरोधीहै। यहबैक्टीरियल ब्लाइट रोग के प्रति अत्यधिक संवेदनशील पूसा बासमती 1121 की तुलना में 3.3 की संवेदनशीलता सूचकांक के साथ अत्यधिक प्रतिरोधी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करती है।

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पूसा बासमती 1886 – यह लोकप्रिय बासमती चावल किस्म पूसा बासमती 6 का उन्नत और बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट से प्रतिरक्षित किस्‍म है।

पूसा बासमती 1886 लोकप्रिय बासमती चावल किस्म पूसा बासमती 6 का उन्नत संस्करण है। जिसमें बैक्टीरियल ब्लाइट एवं ब्लास्ट रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता मौजूद है। मॉलिक्‍यूलर मार्कर असिस्‍टेड ब्रीडिंग के जरिये विकसित इस किस्म में दोनों रोगों में से प्रत्‍येक के लिए दो जीन होते हैं। बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रतिरोध के लिए एक्‍सए13 और एक्‍सए21और बैक्‍टीरियल ब्‍लास्‍ट के प्रतिरोध पीआई54 और पीआई2 जीन होते हैं।इसकी बीजसेबीज परिपक्वता अवधि 145 दिनों की और औसत उपज 4.49 टन प्रति हेक्टेयर होती है। ब्‍लास्‍ट रोग के प्रति अतिसंवेदनशील पूसा बासमती 6 (8.5 की संवेदनशीलता सूचकांक) की तुलना में पूसा बासमती 1886(2.5 की संवेदनशीलता सूचकांक) अत्यधिक प्रतिरोधी है। इसके अलावा, बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति पूसा बासमती 6 (7.3 की संवेदनशीलता सूचकांक) द्वारा प्रदर्शित अत्यधिक संवेदनशीलता के मुकाबले पूसा बासमती 1886 (3.3 की संवेदनशीलता सूचकांक) इस रोग के खिलाफ अत्‍यधिक प्रतिरोध प्रदर्शित करता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई)  ने इस साल के आरंभ में नई दिल्‍ली के पूसामें आयोजित कृषि विज्ञान मेले के दौरान किसानों को हाल में विकसित रोग प्रतिरोधी बासमती चावल के 1 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज खेती के लिए वितरित किए थे। आईएआरआई के निदेशक डॉ. एके सिंह ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा कि किसानों को सलाह दी गई है कि वे इन बीजों की उपज को बाजार में न बेचेंबलिक इसे अन्य किसानों को उपलब्ध कराएं ताकि नई किस्में बढ़ सकें और बड़ी मात्रा में उगाई जा सकें

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