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देहरादून का कांवली गांव जो अब बदल रहा है

-अनन्त आकाश-
कांवली आज जैसा है ,सन् 2000से पूर्व ऐसा नहीं था या फिर 1990 से पूर्व सन् 2000 ,जैसा नहीं था । मेरा कांवली से सम्पर्क बर्ष 1988 से पूर्व का है ।भारत की जनवादी नौजवान सभा(डी वाई एफ आई ) ने सन् 1985 से पूर्व इसी गांव के पूर्वी छोर में आजादी के आन्दोलन के योध्दा चन्द्रशेखर आजाद के नाम से एक बस्ती चन्द्र शेखर आजाद नगर कालोनी बसायी जो आज लगभग पूर्णतः विकसित हो चुकी है। इसके इर्दगिर्द न्यू पटेलनगर ,सत्तोवाली घाटी तथा पीछे की तरफ दर्जनों कालोनी विकसित हो चुकी हैं,इसी दौर में कांवली गाँव के दूसरी तरफ पूर्वी हिस्से मेंं गांधी ग्राम बसा जहाँ कभी मृत पशुओं का चमड़ा निकाला जाता था । इस हिस्से में बल्व फैक्ट्री के मजदूरों ने डेरा जमाया एक जमाना था देहरादून की अर्थव्यवस्था में इन मजदूरों का महत्वपूर्ण योगदान था जब घर -घर बल्ब का कार्य हुआ करता था तथा देहरादून में कामेट बल्ब फैक्ट्री के अलावा अनेक फैक्ट्रियां थी , किन्तु अन्तरर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण यह उधोग हाशिये पर चला गया । गांधी ग्राम को बसाने में कामरेड पूरनचंद आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । आज गांधी ग्राम में कामरेड पूरनचंद की स्मृति में एक भवन व पुस्तकालय मौजूद है, कामरेड पूरनचंद जो प्रख्यात मजदूर नेता तथा प्रमुख मजदूर संगठन सी आई टी यू के संस्थापक रहे ,लगभग 15 साल चाय बगान से लगे हरबंशवाला ग्राम सभा के लोकप्रिय प्रधान रहे , किसी जमाने में अंग्रेजों ने देहरादून में चाय बगीचे के लगाने के लिये इनके पूर्वजों को पूर्वांचंल से यहाँ लाकर बसाया था ।
सन् 1990 से पहले कांवली गांव के लिए एक ही सड़क थी, कांवली रोड़ जो बर्षाकाल बिदान्ल नदी में पानी आने से काफी बाधित रहती थी ,क्योंकि तब यहां पुल नहीं था । आज जहाँ श्रीराम मार्केट तथा बडी़ -बड़ी अटालिकांऐं हैं ,वहाँ कभी बिन्दाल नदी बहती थी इस छोर पर सोनकरों का परिवार आज भी है ,किसी जमाने में इनका मुख्य पेशा मांस का हुआ करता था ,आज अपनी मेहनत एवं लगन से देहरादून में विभिन्न व्यवसायों से जुड़ चुके हैं तथा सरकारी नौकरियों में अच्छे ओहदों पर भी हैं ,वे भी किसी जमाने में पूर्वांचल से आकर यहाँ बस गये थे । यमुना कालोनी जो कि आज सरकार के मन्त्रियों का आवास है । किसी जमाने में सिंचाई तथा जल विधुत के कर्मचारियों की कालोनी का मुख्य हिस्सा थी , जिनका जिम्मा सिंचाई तथा जल विधुत का है, किन्तु सरकार की नीजिकरण की नीतियों के कारण आज यह विभाग अन्तिम सांस ले रहा है,इसके स्थान पर सरकार द्वारा नीजि कम्पनियों पर जनता के गाढ़ी कमाई लुटाई जा रही है । बावजूद विभाग का बेहतरीन इतिहास रहा है । किसी जमाने में सिंचाई विभाग बहुत ही कम लागत में बडी़ बड़ी व सफल परियोजनाओं को संचालित करता रहा है ,सन् 80के बाद गोविन्दगढ व आसपास की कालोनियों को बसाने में इन्हीं कर्मचारियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इससे थोड़ी दूर पर ही ओएनजीसी जो जमाने में एक सुप्रसिध्द सार्वजनिक तेल एवं गैस कम्पनी हुआ करती थी तथा देश व खासकर देहरादून की अर्थव्यवस्था की रीढ़ थी ,ओएनजीसी भी सरकारी नीतियों के चलते मृत्यु शैय्या पर है ।
कांवली को उन दिनों निरंजनपुर ,माजरा जनरल महादेव सिंह ,पण्डितवाडी से बसन्त विहार रोड़ पतली सड़क जोड़ती थी , तथा चारों तरफ खेत खलिहान तथा छोटी -छोटी नहरों का जाल था ।मुख्य नहर गढ़ी कैन्ट से आती थी जो जनरल महादेव सिंह रोड़ के पूर्वी किनारे से बहती थी । जो इस क्षेत्र के सिंचाई ,निकासी तथा धार्मिक विधि विधान निभाने का माध्यम थी ।इस नहर पर शुरू से आखिर तक अनेक घराट थे ।एक घराट गाँव के बल्लीवाला चौक वाडिया के पास हाल ही के दिनों तक था,जो यादव लोगों का परिवार संचालित करता था ,बेहतरीन आटा तैयार होता था ।उन दिनों देहरादून की नहरें बर्षाती पानी तथा सफाई व्यवस्था के लिये बेहतरीन निकासी का काम किया करती थी ।देहरादून में जो आज जलभराव या सड़कों का हर साल उखड़ना नहीं हुआ करता था ।आज यह देहरादून की अधिकांश नहरें अण्डरग्राउण्ड हैं ।जो कि कई समस्याओं का एक प्रमुख कारण है। उन दिनों सड़कें कई दशकों तक चलती थी ,जैसा भ्रष्टाचार का बोलबाला आज है तब बहुत कम था ।बढ़ती पूंजीवाद मानसिकता एवं लूट सके तो लूट की संस्कृति के कारण आज समाज स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि लोगों के अपने नीजि स्वार्थ पहले हैं ,और समाज एवं देश की चिन्ता बाद की है । आज चाहे कोई कितना ही राष्ट्रभक्त का नारा अलापे किन्तु सभी तथाकथित राष्ट्रभक्त अपने निहित स्वार्थों के लिये आम जनता को लूटने में लगे हैं ।यानि इस हमाम में सभी नंगे हैं ।जो तमाम परिदृश्य है वह भबिष्य की पीढियों के साथ अन्याय के सिवाय कुछ नहीं है ।हम अपने असुरक्षित भबिष्य के खुद जिम्मेदार हैं ,और हम भावी पीढियों के भबिष्य को अन्धकार की ओर धकेल रहे हैं । इसलिए इस मानसिकता से उभरने की आवश्यकता है ।
कांवली जो किसी जमाने में जनपद देहरादून की चन्द बडी़ ग्राम सभाओं में सुमार थी , जो सांमती परम्पराओं के हिसाब व हैसियत ,जातीय तथा काम के आधार पर विभिन्न टोलों में बसी थी ।इसप्रकार हाल ही के बर्षों तक कांवली में सामन्ती व्यवस्था थी , जिसके अवशेष आज भी देखने को मिल जाऐंगे । हमारी कालिन्दी एन्क्लेव से लगा मौहल्ला पाल बस्ती है , इन लोगों का मुख्य पेशा दूध तथा पशुपालन का था किन्तु इन परिवारों में से भी कई लोग अन्य व्यवसायों तथा सरकारी व नीजि नौकरियों जुड़ गये हैं ,कालिन्दी जहाँ बसा है सन् 90 से पूर्व पाल लोगों की ही जमीन थी , जहाँ खेती लह लहाती थी ।इसी प्रकार काम एवं जातीय आधार पर अनेक टोले थे ।
कांवली के जमींदार पुण्डीर परिवार के थे , आज इस परिवार के लोग भी अनेक व्यवसायियों से जुड़ चुके हैं, उस जमाने में भी देहरादून काफी विकसित शहरों में माना जाता था ।किन्तु देहरादून से सटा कांवली ग्राम सभी दृष्टिकोणों से पिछड़ा हुआ था । चुनी हुई पंचायत होने के बावजूद भी पंचायत सांमती व्यवस्था के ढर्रे से चलती थी तथा सांमती चरित्र के परिणामस्वरूप एकाधिकार की प्रवृति मौजूद थी ! पंचायत में एक ही परिवार का बर्चस्व होता था । गांव का मुख्य आय का साधन दहाड़ी , मजदूरी , खेती व पशुधन से था ।
परिवर्तन का भी एक साश्वत नियम है ,इसकी सतत प्रक्रिया होती है , इसे किसी न किसी के माध्यम से होना होता है ।हम आज जो हैं ,वह पहले नहीं थे ,जो अब हैं भबिष्य में नहीं होगें यानि समाज में परिवर्तन कभी सकारात्मक भी हो सकते हैं और कभी नकारात्मक भी दोनों परिस्थितियों से समाज गुजरता है किन्तु हमारे समाज एवं देश को आगे बढ़ने एवं बढ़ाने के लिये जनहित की नीतियां जरूरी हैं जिसमें सभी सम्प्रदायों का चहुंमुखी विकास हो यह तभी सम्भव होगा जब अपनी खुद की ईमानदारी से समीक्षा करेंगे ,क्या हमारे बृहद देश जैसा आज है वह भबिष्य रहेगा । हमें जनता के सर्वांगीण विकास के संघर्ष के साथ खड़़ा होना ही होगा ।यादे रहे किसी देश को एकजुट रखने के लिए आपसी सदभाव ,भाईचारा एवं सर्वांगीण विकास काम आऐगा ! जिस देश में यह सबकुछ है , उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता और जिस देश में यह सबकुछ नहीं है उसे बिखरने में कोई विचार एवं तथाकथित देशभक्ति रोक नहीं सकती । इतिहास इसका गवाह है ।
सन् 1988 के पूर्व पंचायत चुनाव में जुझारू ट्रेड यूनियन नेता कामरेड अर्जुन सिंह रावत अपने क्षेत्र से कांवली ग्राम पंचायत प्रतिनिधि के रूप में चुनकर आऐ तथा पंचायत में बडे़ ही सिद्दत के साथ जनमुद्दों को उठाते रहे जिसके सकारात्मक परिणाम आये । बर्ष 1988 के आते आते हमारी पार्टी ने कामरेड अर्जुन सिंह रावत को कांवली पंचायत से प्रधान पद पर चुनाव लड़वाया तथा डटकर मुकाबला किया तथा अच्छे खासे मत हासिल किये ।यह लडा़ई निरकुंशता के खिलाफ जनतांत्रिक लडा़ई का अगला पडा़व था । इसी चुनाव में दिवगंत गंगा थापा जी भी स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ी जिनके लिऐ बबीता डोगरा व उनके परिवार ने निर्भीकता पूर्वक कार्य किया , जो आगे चलकर छात्र राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनी ,उच्च शिक्षा ग्रहण करने एवं सामाजिक मुद्दों पर निरन्तर जुड़ी हुई हैं ,और आज वालीवुड में एक महत्वपूर्ण मुकाम पर हैं। इनका पैतृक घर बल्लीवाला चौक डोगरा बिल्डिंग के नाम से प्रसिध्द आज एक खण्डहर नुमा मकान है , जो अपने समय में जरूरतमन्द कई परिवारों को आगे बढाने में सहायक रहा ,आज भी अकेले कांवली में ही ऐसे दर्जनों परिवार हैं ,जो अपने अभाव व कष्ट के दिनों इसी मकान में निवास करते रहे हैं ,तथा अच्छे दिन आने पर अन्यत्र बस गये ।
कामरेड अर्जुन रावत का सार्वजनिक जीवन यहीं नहीं रूका आगे चलकर वे अपनी सेवाऐं कांवली के साथ -साथ अपने पैतृक गांव यमकेश्वर ब्लॉक स्थित अपने ग्राम पंचायत को देते रहे बाद को यहां प्रधान चुने गये तत्पश्चात वे यमकेश्वर ब्लाक के जेष्ठ प्रमुख बने ।
इधर पार्टी ने अगले चुनाव में कांवली गांव में कामरेड इन्दुनौडियाल को प्रधान के लिये चुनाव लड़वाया तथा उन्होंने अच्छे मतों से अपने विपक्षी को चुनौती दी तथा परिवर्तन की लड़ाई जारी रखी ।यह क्षेत्र महिला आन्दोलन का केन्द्र बना महिला समिति के वैनर तले अनेक आन्दोलन हुऐ ,हरेक जुल्म का जबाब दिया गया आज भी यहाँ के साथी जुल्म व शोषण के खिलाफ चल रहे हरेक संघर्ष तथा विकास की लडा़ई के हिरावल दस्तें हैं । जिस संघर्ष की शुरूआत सन् 85 से पूर्व हुई थी वह आज भी बदस्तूर जारी है ।
राज्य बनने के बाद कांवली ग्राम का शहर में विलय हुआ यहाँ की व्यवस्था नगर निगम के हाथ पर आयी तथा कांवली तेजी से बदली ,जहाँ खेत खलिहान थे वहाँ अनेक कालोनियां बसी ,बड़ी -बड़ी अटालिकांऐं ,फलाईओवर बने सड़कें चौड़ी हुई सतही तौर पर विकास दिखा ,किन्तु उससे भी तेजी से मलिन बस्तियों का फैलाव हुआ एक अनुमान के अनुसार उतनी आबादी कई किलोमीटर फैले कांवली में नहीं उससे भी ज्यादा बिन्दाल नदी के किनारे तथा शास्त्रीनगर खाले में बसी आबादी की है , जहाँ आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है । जिसके लिये हमारी पार्टी के लोग बडे़ ही सिद्दत के साथ लडा़ई रहे हैं ,इन बस्तियों के मालिकाना हक का सवाल प्रमुख है ।

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