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उत्तराखंड की राजनीति के कद्दावर नेता थे केदार सिंह फोनिया

उत्तराखंड की राजनीति के कद्दावर नेताओं में शुमार और भाजपा के वरिष्ठ नेता केदार सिंह फोनिया के राजनीति के शुरुआती और आखरी पन्ने काफी उतार चढ़ाव भरे रहे हैं। वे अपना पहला और अंतिम चुनाव हारे थे। खास बात यह है कि दोनों चुनाव उन्होंने निर्दलीय लड़े थे। केदार सिंह फोनिया की पर्यटन के क्षेत्र में गहरी पकड़ थी। केदार सिंह फोनिया केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग में कार्यरत थे लेकिन जनवरी-फरवरी 1969 को उत्तर प्रदेश में मध्यावती चुनाव हुए। इसमें केदार सिंह फोनिया नौकरी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन हार गए। सेवानिवृत्त होने के बाद वे 1991 में भाजपा से जुड़े। इसी साल विधायक का चुनाव जीते और यूपी में पर्यटन व संस्कृति मंत्री बने।फोनिया इलाहाबाद से एमए करने के बाद 1956 में केंद्र सरकार के पर्यटन विभाग में सूचना सहायक पद पर तैनात हुए। दो साल बात उन्हें श्रीलंका स्थित भारतीय दूतावास भेजा गया। चार साल बाद वापस सहायक निदेशक पर्यटन पद पर दिल्ली स्थानांतरित हुए। 1965 में उन्हें नव गठित भारतीय पर्यटन विकास निगम (आईटीडीसी) के उत्तरी क्षेत्र का संस्थापक प्रबंधक नियुक्त किया गया। अगले साल ही उन्हें आठ माह के अंतरराष्ट्रीय पर्यटन डिप्लोमा कोर्स के लिए चेकोस्लोवाकिया भेजा गया।
उन्होंने जिनेवा, फ्रैंकफर्ट, पेरिस, लंदन की अध्ययन यात्रा की। 1969 में उपचुनाव हारने के बाद वापस नौकरी पर आए और 1971 में यूपी के पर्वतीय विकास निगम में डिविजनल मैनेजर, 1973 में जनरल मैनेजर बने। 1979 में भारतीय वाणिज्य निगम में जनरल मैनेजर बने और 1988 में सेवानिवृत्त हो गए।

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