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एक भद्र राजनेता और विद्वान लेखक थे केदार सिंह फोनिया


-जयसिंह रावत
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद इस प्रदेश के वरिष्ठतम राजनेताओं में नारायण दत्त तिवारी के बाद केदारसिंह फोनिया का नाम आता था। तिवारी जी वर्ष 2018 में इहलोक छोड़ गये तो अब फोनिया जी भी उसी राह पर चल बसे। तिवारी जी का तो महान व्यक्तित्व था ही लेकिन फोनिया जी भी कुछ कम न थे। वह एक परिपक्व और भद्र राजनेता होने के साथ प्रखर लेखक, चिन्तक, पर्यटन विशेषज्ञ एवं देश विदेश के अनुभवो से तपे नौकरशाह भी थे। उनकी लिखी पुस्तकों में उनका उत्तराखण्ड के प्रति विजन झलकने के साथ ही गिरते राजनीतिक स्तर पर चिन्ता भी नजर आती थी।


पिता व्यापारी बनाना चाहते थे मगर उनकी ख्वाइश कुछ और थी

केदारसिंह फोनिया का जन्म सीमान्त जिला चमोली के सीमान्त गांव गमसाली में 27 मई 1930 को एक सम्पन्न भोटिया व्यापारी परिवार में हुआ था। सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार बंद होने के कारण उनकी पैतृक सम्पति अब भी तिब्बत में छूटी हुयी है। फोनिया सम्बोधन समाज के अग्रणी व्यक्ति के लिये होता है। माना यह भी जाता है कि यह फोनिया परिवार मूलरूप से कांस्वा गांव के कुंवर राजपूत उपजाति से सम्बंधित था जो कि कालांन्तर में मंगोलाइट भोटिया नृवंश में विलीन हो गया।

वास्तव में उनके पिता तिब्बत से व्यापार करने वालों में अग्रणी व्यापारी थे। इसलिये वह अपने इकलौते बेटे केदार को भी व्यापार के क्षेत्र में लाना चाहते थे। स्वयं फोनिया जी ने अपनी आत्मकथा में अपने बाल्यकाल की याक में बैठ कर तिब्बत की व्यापार यात्राओं का वर्णन किया है। लेकिन केदारसिंह पढ़ लिख कर बड़ा नौकरशाह बनना चाहते थे और उन्होंने अपनी लगन से वह मंजिल भी हासिल भी की।

      The ancestral house of Fonia ji at Gamsali Photo collection by Jay Singh Rawat

गांव से तीन दिन पैदल चल कर पहुंचते थे पौड़ी पढ़ने

केदारसिंह फोनिया पूर्व मुख्यमंत्री जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी के बाल सखा थे। इन दोनों ने पौड़ी के मेस्मोर इंटर कालेज में साथ पढ़ाई की थी। गढ़वाल में खण्डूड़ी परिवार एक ख्यातिनामा परिवार था जिसका टिहरी राजघराने से घनिष्ट संबंध रहा। उसी कालेज में भारत के अंतिम गांव से आकर किसी बच्चे का पढ़ना उस जमाने में बड़ी बात होती थी। फोनिया जी ने अपने स्मरणों में लिखा है कि उस जमाने में मोटर मार्ग की कल्पना भी पहाड़ में नहीं थी इसलिये वह गमसाली गांव से अपने पोर्टरों के साथ तीन दिन की पैदल यात्रा कर पौड़ी पहुंचते थे। उनका राशन-कपड़े आदि सामान पहुंचाने के लिये उनके साथ तीन पोर्टर होते थे।


उच्च शिक्षित राजनेता थे फोनिया

केदारसिंह फोनिया ने प्राथमिक शिक्षा जोशीमठ में प्राप्त की और फिर इंटर तक पढ़ने के लिये मोस्मोर कालेज पौड़ी चले आये। पौड़ी के बाद देहरादून के डीएवी कालेज से स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद प्राचीन इतिहास और फिलासफी में स्नातकात्तर डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हासिल की। उन्होंने तत्कालीन चैकोस्लावाकिया के पराग से पर्यटन में डिप्लोमा हासिल किया था। उस जमाने में इस स्तर की शिक्षा आम लोगों की पहुंच से बाहर होती थी। फोनिया जी ने अपने पुत्र विनाद को भी वैसी ही शिक्षा और संस्कार दिये जिनके बल पर विनोद विदेश सेवा के वरिष्ठ पद पर रहने के साथ ही उत्तराखण्ड शासन में सचिव भी रहे। उनकी इमान्दारी की मिसाल दी जाती थी।

Fonia ji while releasing a book on history of Uttarakhand tribes authored by Jay Singh Rawat in 2015

पर्वतीय विकास निगम के संस्थापक महाप्रबंधक बने

अपने पैतृक व्यवसाय से इतर उन्होंने कैरियर की शुरुआत पर्यटन विभाग में सूचना अधिकारी के रूप में शुरू की और फिर उसी विभाग में सहायक निदेशक बन गये। सन 1964-65 में जब आइटीडीसी की स्थापना हुयी तो फोनिया जी को दिल्ली में ही क्षेत्रीय प्रबंधक की जिम्मेदारी मिली। सन् 1971 में नरेन्द्र सिंह भण्डारी पर्वतीय विकास राज्य मंत्री थे। उस समय उत्तराखण्ड के दोनों मण्डलों के लिये पर्वतीय विकास निगम की स्थापना हुयी और परिपूर्णानन्द पैन्यूली को निगम का अध्यक्ष बनाया गया तो केदारसिंह फोनिया को निगम का संस्थापक महाप्रबंधक बनने का अवसर मिला।

Then tourism minister Kedar Singh Fonia Inaugurating facility at GMVN Wood wool factory Rishikesh. Photo collection – Jay Singh Rawat

आज भले ही गढ़वाल और कुमाऊ के नाम पर दो विकास निगम बन गये हों मगर दोनों निगम जिस बुनियाद पर खड़े हैं उसे केदारसिंह फोनिया ने ही रखा था और दिशा भी फोनिया ने ही तय की थी। चूंकि पहले भी फोनिया भारतीय वाणिज्य निगम में वरिष्ठ पद पर आसीन रहे इसलिये पर्वतीय विकास निगम की राजनीति में स्वयं को फिट न पाकर वह सन् 1979 में भारतीय बाणिज्य निगम में लौट गये।

भारत के व्यपार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई

बाणिज्य निगम में अपने कार्यकाल में उन्होंने भारत के व्यापार को नयी ऊंचाइयां देने का प्रयास किया। इस निगम से सेवा निवृति के बाद वह पुनः राजनीति में लौट आये और चार बार विधायक चुने गये। वह तीन बार बदरी केदार विधानसभा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिये और एक बार उत्तराखण्ड विधानसभा के लिये चुने गये।

Taking oath as cabinet minister in Nityanand Swami ministry on 10 November 2000. Photo copy right Jay Singh Rawat.

पहली बार चुनाव जीते और सीधे कैबिनेट मंत्री बने

सन् 1991 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बदरी केदार सीट पर उन्होंने भाजपा के टिकट से कांग्रेस के दिग्गज नरेन्द्र सिंह भण्डारी को हराया। उनकोे 33,807 वोट मिले जबकि भण्डारी को 27,728 वोट मिले। केदार सिंह की यह पहली जीत थी और उन्हें पहली ही बार में कल्याण सिंह मंत्रिमण्डल के कैबिनेट मंत्री के तौर पर पर्यटन विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। उसी मंत्रालय में हरक सिंह रावत पर्यटन राज्य मंत्री रहे। सन् 2000 में उत्तरांचल राज्य का गठन होने पर वह अंतरिम सरकार में भी पर्यटन, उद्योग और लोक निर्माण विभाग के कैबिनेट मंत्री बनाये गये।

Book authored by KS Fonia and edited and compiled by Jay Singh Rawat

दो बार मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे

सन् 2000 में अलग राज्य बनने पर मुख्यमंत्री पद के लिये नित्यानन्द स्वामी के साथ वह भी फ्रंट रनर माने जा रहे थे। लेकिन किश्मत नित्यानन्द स्वामी की खुली। वह स्वामी के साथ प्रतिद्वन्दिता रखने के बजाय उन्हें अपना पूरा सहयोग देते रहे। स्वामी को हटाने में शराब और खनन माफिया की भूमिका का उल्लेख स्वयं फोनिया जी ने अपनी पुस्तक ‘‘उत्तरांचल से उत्तराखण्ड के 12 वर्ष’’ में किया है। स्वामी ने शराब माफिया को लगाम लगाने के लिये नयी आबकारी नीति बनायी थी जिसमें फोनिया की अहं भूमिका थी। नित्यानन्द स्वामी को 19 अक्टूबर 2001 को जब बदला गया तो केदारसिंह दूसरी बार भी अपने अनुभव और योग्यतानुसार मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। लेकिन इस बार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास आते-आते छिटक गयी।

First cabinet of Uttaranchal headed by Nitya Nand Swami. –Photo collection by Jay Singh Rawat

जातीय और क्षुद्र राजनीति के कारण नहीं बन सके मुख्यमंत्री

उत्तराखण्ड की राजनीति के गिरते स्तर से फोनिया काफी आहत थे। प्रदेश की राजनीति के असली चेहरे को उन्होंने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘‘ उत्तरांचल से उत्तराखण्ड के 12 वर्ष’’ में किया है। उस पुस्तक का सम्पादन करने का अवसर मुझे मिला। उनकी आत्मकथा वाली पुस्तक का सम्पादन भी उन्होंने मुझ को ही सौंपा था। इन दोनों पुस्तकों में उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिये निम्न स्तरीय और जातिवादी हथकंडे अपनाये जाने के साथ ही राजनीति पर माफियातंत्र का प्रभाव और अवसरवादिता तथा पदलोलुपता का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि दूसरी बार 2001 में हाइकमान की ओर से उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला हो चुका था। लेकिन ऐन मौके पर राज्य के दो वरिष्ठ नेताओं ने दिल्ली पहुंच कर बताया कि उत्तराखण्ड में ठाकुर या ब्राह्मण के अलावा कोई तीसरा चुनाव नही जितवा सकता। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे ने जब दोनों से कहा कि केदारसिंह भी तो ठाकुर ही हैं। इस पर दोनों भाजपा नेताओं ने ठाकरे से कहा कि केदारसिंह ठाकुर तो हैं मगर जनजाति के है जो चुनाव नहीं जितवा सकते। फोनिया जी के अनुसार यह बात स्वयं ठाकरे ने उनसे कही थी। इस प्रकार 2002 के चुनाव में भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री पद के संभावित प्रत्याशियों को हरवाने के लिये पूरा जोर लगाया जिस कारण वह स्वयं नन्दप्रयाग सीट से तथा नित्यानन्द स्वामी देहरादून की लक्ष्मण चौक सीट से हार गये। फोनिया जी ने 2015 में जनजातियों पर लिखी गयी मेरी पहलीे पुस्तक का लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के साथ किया।

दुखी थे राजनीति के गिरते स्तर से

उत्तराखण्ड के जन्म की 8 और 9 नवम्बर 2000 की मध्यरात्रि की तुलना केदारसिंह फोनिया ने 14 और 15 अगस्त की उस रात्रि से की है जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना कालजयी भाषण ‘‘ट्रीस्ट विद डेस्टिनी’’ (भाग्य के साथ वास्ता) दिया था और उसी तरह से उत्तरांचलवासियों को भी अपने भविष्य के प्रति उतनी ही उत्सुकताएं, आशाएं और अभिलाषाएं थीं जिन पर राजनेता खरे नहीं उतर रहे हैं।


एक विद्वान लेखक भी थे फोनिया

फोनिया जी ने हिन्दी और अंग्रेजी की पुस्तकों में फोनिया जी ने अपने लेखन कौशल और विलक्षण ज्ञान का परिचय दिया है। उनकी पहली ‘‘ एन इन्ट्रोडक्शन टु उत्तराखण्ड’’ थी। उसके बाद ट्रकिंग इन उत्तराखण्ड, ट्रवलर्स गाइड टु उत्तराखण्ड, द वैली ऑफ फ्लावर्स और काफी टेबल बुक द डिवाइन हेरिटेज ऑफ श्री हेमकुण्ड साहिब एण्ड द वर्ल्ड हेरिटेज ऑफ द वैली ऑफ फ्लावर्स आयी। उनकी हिन्दी पुस्तक ‘‘उत्तरांचल से उत्तराखण्ड के 12 वर्ष’’ और आत्मकथा वाली पुस्तकें भी प्रकाशित हुयी।

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