जनिये ! क्या कहती है संविधान की 5वीं अनुसूची—
-श्याम सिंह रावत-
संविधान की 5वीं अनुसूची में ऐसा क्या है जिससे हमें लाभ हो सकता है। यह बहुत महत्वपूर्ण बात है और इसे हर पर्वतवासी को समझना चाहिए। भारतीय संविधान की 5वीं अनुसूची विशेष रूप से अनुसूचित क्षेत्रों और वहाँ के जनजातीय निवासियों के हितों की रक्षा के लिए बनाई गई है। इसके प्रावधान अनुसूचित क्षेत्रों की जनजातियों के हित-लाभ तथा वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की नीतियों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए निर्धारित किए गए हैं, जिनमें इनके सामाजिक, आर्थिक और साँस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण और संवर्द्धन की व्यवस्था निर्धारित की गई है। यह अनुसूची इन क्षेत्रों के प्रशासन, विकास और जनजातीय संस्कृति व अधिकार सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रावधानों का प्रबंध करती है।
*5वीं अनुसूची का उद्देश्य—*
इस अनुसूची का मुख्य उद्देश्य जनजातियों की विशिष्ट संस्कृति, रीति-रिवाज, भूमि और संसाधनों के अधिकारों की रक्षा करना है ताकि उन्हें बाहरी हस्तक्षेप और शोषण से बचाया जा सके। यह व्यवस्था संविधान को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार लागू करने की सहूलियत देती है, जिससे अनुसूचित क्षेत्रों में शाँति और संतुलन बना रहता है।
*5वीं अनुसूची के प्रमुख प्रावधान—*
*1. अनुसूचित क्षेत्रों की घोषणा—*
संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के तहत, राष्ट्रपति किसी राज्य के विशिष्ट क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित कर सकते हैं। ये क्षेत्र आमतौर पर जनजाति बाहुल्य होते हैं, जिनकी विशिष्ट संस्कृति, परंपराएं और जीवनशैली होती है। इस अनुसूची के प्रावधानों के माध्यम से इन क्षेत्रों की साँस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने का प्रयास किया जाता है।
*2. राज्यपाल की विशेष शक्तियाँ—
अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासन के लिए राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ दी गई हैं। राज्यपाल इन क्षेत्रों में जनजातीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए नियम और अधिनियम बना सकते हैं। इसके अलावा, राज्यपाल को यह अधिकार भी है कि वे राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी ऐसे कानून को इन क्षेत्रों में लागू न करने का निर्णय ले सकते हैं, जिसे वे राज्य की जनजातियों के हितों को नुकसान पहुँचाने वाला महसूस करते हैं।
उदाहरण—
यदि राज्य की विधानसभा ने कोई ऐसा कानून बनाया है जो भूमि का अधिग्रहण या खनन से सम्बंधित है, और राज्यपाल को लगता है कि इस कानून के लागू होने से जनजातीय निवासियों के अधिकारों और उनकी भूमि पर खतरा हो सकता है, तो राज्यपाल उस कानून को अनुसूचित क्षेत्रों में से ‘बहिष्कृत’ कर सकते हैं। इसका मतलब है कि उस कानून को उन क्षेत्रों में लागू नहीं किया जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनजातीय क्षेत्रों में ऐसे कानून लागू न किए जाएँ जो उनकी संस्कृति, भूमि और पारंपरिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
*3. जनजातीय सलाहकार परिषद—*
5वीं अनुसूची के तहत राज्य में एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है, जिसमें अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को शामिल किया जाता है। यह परिषद राज्यपाल को अनुसूचित क्षेत्रों में प्रशासनिक और विकासात्मक गतिविधियों के सम्बंध में सलाह देती है।
*4. कानूनी संरक्षण—*
अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण और खनन जैसे मामलों में जनजातीय निवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष कानूनी प्रावधान हैं। इन प्रावधानों के माध्यम से उनकी भूमि और संपत्ति के अधिकार सुरक्षित किए जाते हैं और बाहरी लोगों द्वारा शोषण से बचाने का प्रयास किया जाता है।
*5. प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार—*
इस अनुसूची के तहत जनजातीय लोगों के प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकारों की रक्षा की जाती है, जिससे उनकी आजीविका और साँस्कृतिक पहचान बनी रहे। यह प्रावधान उनकी भूमि, वन उत्पाद और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन के अधिकारों को संरक्षित करने में मदद करता है।
*6. विकास के विशेष प्रावधान—*
अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय लोगों के सामाजिक-आर्थिक-शैक्षिक विकास के लिए विशेष योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए जाते हैं। केंद्र तथा राज्य सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए विशेष बजट का प्रावधान करती है ताकि इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग राष्ट्रीय विकास की मुख्यधारा के साथ आर्थिक और सामाजिक रूप से जुड़ सकें।
*7. संविधान संशोधन और न्यायिक संरक्षण—*
यदि सरकार 5वीं अनुसूची में किसी प्रकार का संशोधन करना चाहती है, तो इसे संसद द्वारा पारित कराना आवश्यक है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि इन क्षेत्रों के अधिकारों में बिना उचित विचार-विमर्श के कोई बदलाव न हो। इसके अलावा सर्वोच्च और उच्च न्यायालय भी इन क्षेत्रों के निवासियों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।
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इस तरह इस संवैधानिक व्यवस्था द्वारा उन क्षेत्रों के हितों की गारंटी दी गई है जो जनजातीय बहुल हैं। और, यह ऐतिहासिक तथ्य है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों में 90 प्रतिशत से अधिक खस संस्कृति के वाहक हैं जो आज भी उसके बहुत-सारे सांस्कृतिक उपादानों को संजोए हुए हैं। फूलदेई, हरेला, खतड़ुआ, हलिया-दसैरा, इगास, बग्वाल, ऐपण, कठपतिया, भुमियां, रैढ़ा, हिल जात्रा, रम्माण, जागर, घन्याली, रौंखाली, लोकदेवता, वनाधारित खेती-बाड़ी आदि उसी जनजातीय संस्कृति के अवशेष हैं जो पर्वतीय जीवन के अभिन्न अंग हैं।