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भगत सिंह के आदर्श थे बोल्शेविक क्रांति के योद्धा व्लादीमीर इलियच लेनिन

अनन्त आकाश
आज ही के दिन 22 अप्रैल1870  को रूस के सिम्बीसर्क के उच्च मध्यम परिवार में जन्मे लेनिन ने अपने भाई की फांसी के बाद 1881 में क्रान्तिकारी समाजवादी राजनीति अपनाने पर तत्कालीन जारशाही ने उनका विश्वविद्यालय से निष्कासन कर दिया।   1893 में लेनिन विधि की पढ़ाई के लिए सैन्ट पिट्टरवर्ग चले आये तथा मार्क्सवादी बन गये । 1897 मेंं वह राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुऐ तथा निर्वासित कर साइबेरिया भेजे गये । वहीं उनकी शादी नादेब्दा के साथ सम्पन्न हुई । अपने निर्वासन के बाद वह  पश्चिम यूरोप चले गये, जहाँ वे मार्क्सवादी सोशल  डैमोक्रेट के नेता बने । 1905 में रूस में असफल क्रान्ति के बाद उन्होंने सर्वहारा क्रान्ति को आगे बढ़ाने तथा पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ फेकने तथा समाजवादी व्यवस्था स्थापित करने के लिये अपना अभियान जारी रखा, जो कि अन्ततः रूसी क्रान्ति यानि अक्टूबर क्रान्ति के द्वारा जारशाही के अन्त तथा दुनिया को समाजवादी व्यवस्था के रूप में मिला । इस प्रकार कामरेड लेनिन ने मार्क्स के स्वप्नों को इस धरती पर साकार किया ।
लेनिन व उनकी बोल्शेविक पार्टी ने 1917 की रूसी क्रांति में रूसी मेहनतकशों का नेतृत्व कर रूस में एक नयी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की थी । वे 1917 -1924 तक सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी बोल्शेविक एवं सोवियत सरकार के मुखिया रहे ।उनका देहावसान 21 जनवरी 1924 में 53 उम्र में हुई ।
लेनिन व स्टालिन के नेतृत्व में समाजवादी रूस ने बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित किये, पूँजीपतियों, सामन्तों की मुट्ठी में क़ैन्द्रीत सम्पत्ति को समूचे समाज की सामुहिक सम्पत्ति बनाने की शुरूआत की थी । अपने समय में सोवियत संघ अपने हर नागरिक को रोज़गार, शिक्षा,चिकित्सा, सुरक्षा की गारण्टी देता था। खेत ,खलिहानों, कारख़ानों में उत्पादन बढ़ाने, बेहतर कार्य स्थितियों तैयार करने का अधिकार ख़ुद मज़दूरों व किसानों की सोवियतों के हाथ में था।
 लेनिन के नेतृत्व मे 1917 की समाजवादी क्रान्ति के बाद से ही समाजवादी रूस को न केवल आंतरिक पूँजीपतियों, सामन्तों के हमलों का सामना करना पड़ा , बल्कि दुनियाभर के  साम्राज्यवादी अमेरिका एवं उसके गठबंधन के पूंजीवादी देशों ने रूस की जनता के राज को गिराने के लिये एकजुट होकर रूस पर हमले को रूसी की जनता की एकजुटता ने परास्त किया।
“लेनिन पूँजीवादी संकट व उसके अन्दर से फ़ांसीवाद के पैदा होने के ख़तरों को पहले ही भलीभांति जानते थे।
उन्होंने कहा था कि”फासीवाद सड़ता हुआ पूँजीवाद है, जैसे जैसे पूँजीवाद सड़ता जाएगा फांसीवाद उग्र होता जाएगा इसका खात्मा मजदूर वर्ग के हथोड़े से ही सम्भव है”वही हुआ फांसीवादी हिटलर ने 1941 में जर्मन नाज़ी सेना लेकर सोवियत रूस पर चढ़ाई कर दी, स्टालिन के नेतृत्व में बहादुर रूसी जनता का भी इस युद्द में भारी जान-माल के नुक़सान के बावजूद अन्तत: फासीवादी हिटलर नेस्तनाबूद हुआ । हिटलर एवं उसके गुर्गों ने आत्महत्या की क्योंकि वे मानव जाति को इतना नुकसान पहुंचा चुके थे कि वे दुनिया को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गये । हिटलर के खात्मे के बाद समाजवादी झण्डे के नीचे विश्व के अनेक राष्ट्र भी शामिल हुऐ जिनमें हिटलर की जर्मनी भी शामिल था ।
रूस के अन्तर्गत ही खुश्चेव द्वारा सोवियत व्यवस्था में सुधारवाद की 1956 में जनता को घोखे में रखकर, समाजवादी विकास के नाम पर, अपने विरोधियों को किनारे लगाकर सोवियत संघ में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना कर दी। जिसके परिणाम स्वरूप सोवियत संघ अंदर से खोखला होता गया अंत में 1991 में  सोवियत संघ का विघटन  हो गया।सोवियत संघ की समाजवादी व्यवस्था ने न केवल हमारे देश की आजादी की लड़ाई को तेज करने को प्रेणा दी बल्कि हमारी आजादी के बाद देश  के चहुंमुखी विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया । सोवियत व्यवस्था का दुनियाभर के अविकसित, विकासशील देशों को लाभ हुआ तथा इस व्यवस्था के रहते दुनिया में शक्तियों का सन्तुलन बना रहा, अमेरिका जैसे साम्राज्यवादी देशों पर नकेल रही । हमारी देश की जनता सदैव सोवियत जनता की ऋणी रहेगी । शहीदे आजम भगतसिंह  लेनिन से काफी प्रभावित थे तथा उन्हें अपना आदर्श मानते थे । फांसी तख्ते में झूलने पहले कामरेड लेनिन को ही पढ़ रहे थे । आज भी लेनिन व स्टालिन के नेतृत्व का सोवियत संघ दुनिया भर की मेहनतकश जनता के लिये एक प्रेरणा स्रोत है,इससे ऊर्जा लेकर दुनियाभर में क्रान्ति के नये संस्करणों का पैदा होना तय है।
(नोट- लेखक मार्क्सवादी पार्टी की महानगर देहरादून इकाई के सचिव और उत्तराखंड आंदोलन के आंदोलनकारी हैं.)

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