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मिल्कवीड: आत्मनिर्भर भारत का फाइबर

 

 

Milkweed fiber, derived from the seed pod floss of the milkweed plant (genus Asclepias), is a lightweight, silky material known for its unique properties. Historically used by Indigenous peoples for textiles and cordage, this natural fiber has recently gained attention for its potential in eco-friendly applications. Its hollow structure makes it an excellent insulator and buoyant material, leading to its use in life jackets during World War II. Today, milkweed fiber is being explored as a sustainable alternative for down in insulation products and as an oil absorbent due to its hydrophobic qualities. The cultivation of milkweed for fiber also supports pollinators like monarch butterflies, whose larvae feed exclusively on its leaves, adding environmental value to its production.

 

                                                                                                            मिल्कवीड की फली

 

यह विचारशील उद्धरण सफलताओं के सार को रेखांकित करता है: जब चुनौतियां नए परिप्रेक्ष्‍यों से जुड़ती हैं और प्रौद्योगिकी नए समाधानों तक पहुंचने के सेतु का काम करती है। वस्‍त्र जैसे उद्योगों में, यह तालमेल पारंपरिक तरीकों में बदलाव ला रहा है, स्थिरता को बढ़ावा दे रहा है, और नई संभावनाओं के द्वार खोल रहा है। पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता और सहायक सरकारी नीतियां मिश्रित सामग्रियों में सुदृढीकरण के रूप में बास्ट फाइबर के उपयोग में तेजी ला रही हैं, ताकि बढ़ती आबादी की ज़रूरते पूरी की जा सकें। बास्ट फाइबरों का प्राकृतिक रूप से सड़नशील होना और उनकी प्रचुरता, पर्यावरण के अनुकूल नवाचार की ओर बदलाव को चिह्नित करते हुए उन्‍हें ऑटोमोटिव उद्योग, संरचनात्मक कंपोजिट, पल्पिंग और टेक्सटाइल में प्रयोग के लिए आदर्श बनाती है। प्राकृतिक चमत्कार मिल्कवीड फाइबर, भारत के वस्‍त्र परिदृश्य में क्रांति लाने  के विजन को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान देने को तत्‍पर है। अपने आशाजनक गुणों, टिकाऊ खेती और किसानों की आजीविका को बढ़ाने की अपार संभावनाओं के साथ, मिल्कवीड बढ़ती आबादी के साथ वैकल्पिक फाइबर की अत्‍यावश्‍यक मांग का समाधान है, जो भारत के सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों के अनुरूप है।

                                                                                                   मिल्कवीड का पौधा

 

मिल्कवीड का पौधा मिल्कवीड कोई साधारण फाइबर नहीं है। इसके बीज की फली के भीतर लगे रेशमी, खोखले तंतुओं से प्राप्त, यह हल्का फाइबर असाधारण गुणों से युक्‍त होता है, जो इसे टिकाऊ सामग्रियों की तलाश में अग्रणी बनाता है। इसकी खोखली संरचना इसे उच्च संपीड़न और बेहतरीन थर्मल इन्सुलेशन प्रदान करती है, जिसका थर्मल मूल्य 100 प्रतिशत पॉलिएस्टर नॉनवॉवन (या बिना बुने कपड़े) से लगभग दोगुना है। मिल्कवीड को पॉलिएस्टर, ऊन, विस्कोस या कपास जैसे अन्य फाइबरों के साथ मिश्रित किए जाने पर, यह कपड़े की कोमलता, सांस लेने की क्षमता और गर्माहट को बढ़ाता है, जिससे न केवल आरामदायक बल्कि प्रीमियम गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार होते हैं।

 

मिल्कवीड की तकनीकी विशेषताओं के अतिरिक्‍त इसकी खेती भारत के कृषक समुदाय के लिए परिवर्तनकारी अवसर प्रस्तुत करती है। इस बारहमासी फसल को न्यूनतम इनपुट की आवश्यकता होती है। यह नाना प्रकार की मिट्टी की स्थितियों में पनपता है, और बदलती जलवायु के साथ सामंजस्‍य स्‍थापित कर लेता है। एक बार लगाए जाने के बाद, यह 10 साल तक उपज देता रहता है, और इसकी पैदावार में सालाना वृद्धि होती है। किसान प्रति एकड़ लगभग 1.5-2 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जो कपास जैसी पारंपरिक फसलों से होने वाली आय की तुलना में काफी अधिक है। यह न केवल वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करता है बल्कि संसाधन-गहन फसलों पर निर्भरता को भी कम करता है,
जिससे यह एक टिकाऊ और आकर्षक विकल्प बन जाता है।

 

भारत में भेड़ों की आबादी 7.4 करोड़ से अधिक है और वह सालाना 3.69 करोड़ किलोग्राम कार्पेट-ग्रेड ऊन का उत्पादन करता है, लेकिन परिधान में इस्तेमाल होने वाले मेरिनो जैसे उत्‍तम ग्रेड के ऊन के लिए वह वित्तीय वर्ष 2023-24 के अनुसार लगभग 1,800 करोड़ रुपये मूल्‍य जितने आयात पर निर्भर करता है। घरेलू स्तर पर उत्पादित ऊन आम तौर पर बेहतर गुणवत्ता का नहीं होता है, जिससे अक्सर असुविधा होती है और यह त्वचा के अनुकूल नहीं होता है। जबकि पश्मीना ऊन, जिसका माइक्रोन मूल्य 20 से कम है, असाधारण गुणवत्ता का होता है, इसका उत्पादन सीमित है। सरकार की पश्मीना ऊन विकास योजना और एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम जैसी पहलों ने लद्दाख, जम्मू -कश्मीर और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में भेड़ पालन, पश्मीना उत्पादन और बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। यह क्षेत्र 35 लाख लोगों को आजीविका प्रदान करता है और वैश्विक बाजारों में भारत के ऊनी कार्पेट, कपड़ों और परिधानों के निर्यात को बढ़ावा देता है।


मिल्कवीड-ऊन मिश्रण एक टिकाऊ समाधान के रूप में उभरा है, जो फाइबर की गुणवत्ता को बढ़ाते हुए आयात पर निर्भरता को कम करता है। उत्‍तर भारत वस्‍त्र अनुसंधान संघ (निटरा) द्वारा उद्योग जगत के हितधारकों के सहयोग से हाल ही में की गई प्रगति ने एक अभिनव 80:20 ऊन-मिल्कवीड मिश्रण की औद्योगिक व्यवहार्यता को प्रदर्शित किया है। यह मिश्रण थर्मल इन्सुलेशन, हल्के गुणों और कोमलता में 100 प्रतिशत ऊन से आगे निकल जाता है, जो इसे उच्च-स्तरीय और कार्यात्मक वस्त्रों के लिए प्रीमियम पसंद बनाता है। मिल्कवीड की बहु उपयोगिता कई तरह के अनुप्रयोगों तक फैली हुई है। परिधान, घरेलू वस्त्र और स्वच्छता उत्पादों से लेकर विभिन्न उत्पादों में पारंपरिक फाइबर की जगह लेने की इसकी क्षमता अपार है। लद्दाख की अपनी यात्रा के दौरान, मुझे मिल्कवीड के रेशों से बने उत्पादों की असाधारण गुणवत्ता का प्रत्यक्ष अनुभव करने का अवसर मिला। मैंने इस फाइबर से बनी एक रजाई का परीक्षण किया और इसे बेहद गर्म और आरामदायक पाया – यहां तक कि मुझे किसी भी हीटिंग उपकरण का उपयोग करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ी। मैंने निटरा द्वारा विकसित एक टोपी और जैकेट को भी आज़माया, जिन्‍होंने पूरी यात्रा के दौरान मुझे बखूबी गर्म रखा। मिल्कवीड उत्पादों के टिकाऊपन और प्रदर्शन का जायजा लेने के लिए इन सर्दियों में मैं स्‍वयं इन उत्‍पादों को नियमित रूप से पहन रहा हूं। अपने अनुभव के आधार पर मुझे विश्वास है कि मिल्कवीड फाइबर एक आशाजनक विकल्प है, जो रोजगार सृजन और राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

 

मिल्कवीड जैकेट मिल्कवीड हाइकिंग कैप

इस पहल के मूल में आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करने – स्वदेशी संसाधनों और नवीन तकनीकों के माध्यम से स्‍वावलंबी भारत बनाने की प्रतिबद्धता निहित है। मिल्कवीड को वस्‍त्र मूल्य श्रृंखला में एकीकृत करके, भारत आयातित फाइबर पर अपनी निर्भरता कम कर सकता है और खुद को टिकाऊ वस्त्रों के क्षेत्र में ग्‍लोबल लीडर के रूप में स्थापित कर सकता है। यह तकनीकी वस्त्रों के साथ एनबीएस (प्रकृति-आधारित समाधान) को बढ़ावा देने और संबद्ध करने के हमारे दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिससे आर्थिक विकास और सामाजिक
सशक्तीकरण का तरंग प्रभाव या रिपेल इफेक्‍ट उत्‍पन्‍न होता है।

मिल्कवीड के पर्यावरणीय लाभ भी इतने ही आकर्षक हैं। इसकी खेती में कपास की तुलना में कम मात्रा में पानी, उर्वरक और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिससे पारंपरिक कृषि से जुड़े पर्यावरणीय तनाव कम होते हैं। इसके अतिरिक्त, पौध-आधारित, प्राकृतिक रूप से सड़नशील फाइबर के रूप में मिल्कवीड स्थिरता और सर्कुलेरिटी के वैश्विक प्रयास के साथ सहजता से जुड़ता है। यह सिंथेटिक फाइबर का एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करता है। मिल्कवीड को अपनाकर भारत जीवाश्म-व्युत्पन्न सामग्रियों पर अपनी निर्भरता कम करने और वस्‍त्र उद्योग में पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण  कदम उठाता है।

इस क्षेत्र के अन्य प्रयासों में हमारा फोकस जूट-बांस, सिसल, फ्लैक्स और रेमी जैसे नए युग के फाइबरों पर है, जो टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल विकल्प प्रदान करके वस्‍त्र उद्योग में क्रांति ला रहे हैं। अपनी विशाल जैव विविधता के साथ भारत इस परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए विशिष्ट स्थिति में है। सिसल, अपने जीरोफाइटिक लचीलेपन के साथ, शुष्क परिस्थितियों में पनपता है, वस्‍त्रों, रस्सियों और कंपोजिट के लिए आदर्श टिकाऊ फाइबर उत्‍पन्‍न करता है। रेमी अपनी उच्च उपज और बहु उपयोगिता के लिए जाना जाता है और पर्यावरण के अनुकूल अपने गुणों तथा उच्च तन्यता शक्ति के साथ परिधान में उपयोग किया जाता है। इसी तरह, लिनन के कपड़ों जैसे डैमस्क, लेस और चादरों के लिए फ्लैक्स के सर्वोत्तम ग्रेड का उपयोग किया जाता है। वर्तमान में, फ्लैक्स फाइबर और 100प्रतिशत लिनन फैब्रिक के संबंध में आयात पर बहुत अधिक निर्भरता है, इस पहल से वस्‍त्र क्षेत्र में अवसरों के नए द्वार खुलेंगे। सुतली और रस्सी के निर्माण के लिए मोटे ग्रेड का उपयोग
किया जाता है।

इसके अलावा, जूट-बांस फाइबर सिंथेटिक फाइबर के लिए एक स्थायी विकल्प और लिनन कपड़े के लिए एक और असाधारण विकल्प की पेशकश करते हुए वस्‍त्र उद्योग के लिए अभूतपूर्व नवाचार और आशाजनक संभावनाएं प्रस्‍तुत करता है। 1.39 करोड़ हेक्टेयर में फैले और सालाना 1.4 करोड़ टन उपज प्रदान करने वाले बांस जैसे प्राकृतिक फाइबर, टिकाऊ उत्पादन में भारत की क्षमता का उदाहरण प्रस्‍तुत करते हैं। इन रेशों का उपयोग परिधान से लेकर तकनीकी वस्त्रों, रस्सियों, कंपोजिट और घरेलू साज-सज्जा तक पूरे वस्‍त्र सेक्‍टर में किया जा रहा है। इन रेशों को न केवल न्यूनतम संसाधनों की आवश्यकता होती है, अपितु वे विविध प्रकार की जलवायु के अनुकूल भी होते हैं, और किसानों की आय को बढ़ाकर ग्रामीण आजीविका में सहायता करते हैं, लेकिन साथ ही स्थिरता और सर्कुलेरिटी को भी बढ़ावा देते हैं।

 

एक साधारण खरपतवार से लेकर राष्ट्रीय महत्व के रेशे तक मिल्कवीड की यात्रा भारत की आविष्‍कारशीलता और लचीलेपन का प्रमाण है। शोधकर्ताओं, किसानों और उद्योग के हितधारकों के सम्मिलित प्रयासों से, इस फाइबर में भारत के वस्‍त्र इतिहास को फिर से परिभाषित करने की क्षमता मौजूद है। यह परंपरा और नवाचार के समन्‍वय का प्रतीक है, जहां टिकाऊ प्रथाएं अत्याधुनिक तकनीक से मिलकर ऐसे उत्पाद बनाती हैं जो न केवल विश्व स्तरीय हैं बल्कि भारत के लोकाचार में भी गहराई से निहित हैं।

 

जिस तरह वस्‍त्र उद्योग बढ़ती आबादी और बदलती जलवायु की चुनौतियों के अनुकूल बन रहा है, मिल्कवीड आर्थिक क्षमता को पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ जोड़ते हुए स्थिरता के प्रतीक के रूप में उभर रहा है। मिल्कवीड को अपनाकर, भारत हरित, अधिक समावेशी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहा है – एक ऐसा भविष्य, जहां आत्मनिर्भर भारत के आदर्श राष्ट्र की प्रगति में अलंकृत रूप से बुने हुए हैं। खेती का विस्तार
करने, प्रसंस्करण को बढ़ाने और अनुसंधान एवं विकास में तेजी लाने के समर्पित प्रयासों के साथ भारत एक ऐसी वस्‍त्र क्रांति का नेतृत्व कर रहा है, जो वैश्विक पर्यावरणीय आवश्यकताओं और बाजार की मांगों, दोनों की पूर्ति करते हुए परंपरा का नवाचार के साथ बेजोड़ तरीके से विलय कर रही है।

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