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उत्पाती बंदरों व लंगूरों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा गौचर क्षेत्र में

-गौचर से दिगपाल गुसाईं –
जनपद चमोली के गौचर क्षेत्र में उत्पाती बंदरों व लंगूरों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है।इन दिनों बंदरों ने फसलों को नुक़सान पहुंचाना शुरू कर दिया है इससे कास्तकार खासे परेशान हो गए हैं।

इस बार सत्ता का सुख भोगने वाले 9 नवंबर को अलग राज्य के स्थापना दिवस मनाने की तैयारियां में इतने मशगूल हैं कि मानों राज्य में पूरी तरह अमन चैन हो। राज्य बने 22 साल बीतने को हैं लेकिन अभी तक जनता को बंदरों लंगरों व जंगली जानवरों से निजात नहीं दिलाई जा सकी है। राज्य की हालत ऐसी हो गई है प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो‌ आजतक इस जटिल समस्या से निजात नहीं दिलाई जा सकी है।

कहावत है कि रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था यह कहावत राज्य के कर्णधारों पर सटीक बैठती है। पहाड़ का जनमानस लंबे समय से उत्पाती बंदरों, लंगूरों व जंगली जानवरों के उत्पाद से कराह रहा है और नीति नियंता चैन की बांसुरी बजा रहे हैं। स्थिति ऐसी हो गई है कि कास्तकारों ने हाड़तोड़ मेहनत कर अपने खेतों में गेहूं की फसल के अलावा सब्जियों की नर्सरियां उगाते ही बंदरों ने नुक़सान पहुंचाना शुरू कर दिया है। इससे कास्तकार खासे परेशान हो गए हैं। समय समय पर बंदरों को पकड़ने का काम तो किया जाता है लेकिन दुख इस बात कख है कि बंदरों की शिफ्टिंग एक जगह से दूसरी जगह कर केवल धन का दुरपयोग ही किया जाता है बंदर पकड़ने के बाद कहा जाता है कि जंगलों में छोड़ा गया है।

लेकिन यह बताने के लिए कोई तैयार नहीं है कि आखिर वह कौन सा बीरान जंगल जहां आबादी नहीं है। बंदर पकड़ो अभियान समाप्त होने के कुछ दिन बाद फिर से पहले जैसी स्थिति हो जाती है। कास्तकारों की आय दोगुनी करने की बात की जाती रही है लेकिन स्थिति ऐसी हो गई है कि आमदनी तो रही दूर पहाड़ का कास्तकार अपनी हाड़तोड़ की मेहनत से उगाई फसल मोहताज हो गया है।

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