सीबीआइ जांच में मसूरी काण्ड का खुलासा: यह प्रशासन की साजिश का ही नतीजा था

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  • पुलिस ने महिलाओं की खोपड़ियों के भेजे उड़ा दिये
  • डीएसपी त्रिपाठी को घायल कर मरने के लिये लावारिश छोड़ दिया
  • एसडीएम की आज्ञा के बिना गोलियां चला दीं
  • रायफल की नोक पर एसडीएम से हस्ताक्षर कराये

 

-जयसिंह रावत

उत्तराखण्ड संघर्ष समिति की ओर से याचिकाकर्ताः- सुधीर थपलियाल, जोतसिंह एवं देवराज कपूर, मसूरी द्वारा इलाहाबाद हाइकोर्ट में 7 अक्टूवर 1994 को न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि एस. धवन एवं न्यायमूर्ति ए.बी.श्रीवास्तव की बेंच में याचिका दायर की गयी। याचिका में खटीमा और मसूरी गोली काण्डों का भी उल्लेख करते हुये उत्तराखण्डियों पर हो रहे सरकारी अत्याचार को रोकने तथा पुलिस-प्रशासन की बर्बरता और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की जांच की मांग की गयी। बाद में अदालत में सांसद महाराजा मानबेन्द्र शाह द्वारा भी एक याचिका ( सन् 1994 की रिट पिटिशन संख्या 29843-निस्तारण दिनांक-31 मई 1995) हाइकोर्ट में दायर की गयीं जिसे अदालत ने एक साथ मिला दिया। सुप्रीम कोर्ट में निम्न लिखित 4 अन्य याचिकाएं भी उत्तराखण्ड में मानवाधिकारों के हनन और पुलिस दमन के खिलाफ दायर हुयीं। सीबीआइ और राष्ट्रीय महिला आयोग की जांच रिपोर्टों के आधार पर इलाहाबाद हाइकोर्ट ने उत्तराखण्ड आन्दोलन की हिंसा के घटनाक्रम का कुछ इस तरह निष्कर्स निकाला। इलाहाबाद हाकोर्ट का फेसला 9 फरबरी 1996 को आया था जिसमें अदालत गोलीकाण्डों को सरकारी आतंकवाद बताया था। यह विवरण हाइकोर्ट के दिनांक 19 फरवरी 1996 के फैसले से पैराग्राफ संख्या समेत लिया गया है।

पैरा संख्या 237-याचिकाकर्ताओं के अनुसार उत्तराखण्ड संघर्ष समिति के आह्वान पर उत्तराखण्ड के अन्य हिस्सों की तरह ही मसूरी के लोग भी राज्य सरकार की आरक्षण नीति के खिलाफ तथा पृथक राज्य की मांग को लेकर आन्दोलित थे। प्रतिदिन के कार्यक्रम संचालन के लिये आन्दोलनकारियों ने झूलाघर पर रोपवे रेस्टोरेण्ट में अस्थाई कार्यालय बनाया हुआ था।

पैरा संख्या 238-31 अगस्त 1994 को शहर के कुछ प्रमुख लोगों के साथ संघर्ष समिति की उप समिति की बैठक रखी गयी थी जिसमें पौड़ी में बैठे आन्दोलनकारियों के समर्थन में ‘बंद’ के कार्यक्रम को सफल बनाने पर विचार विमर्श होना था। जिलाधिकारी को भेजी गयी ए डी एम (एफ) एस डी एम और थाना प्रभारी की एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया था कि मसूरी के नागरिकों की शांतिप्रिय प्रवृति को देखते हुये बंद के दौरान अतिरिक्त पुलिस बल भेजने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन प्रशासन के दुराग्रहपूर्ण रवैये के कारण उस रिपोर्ट की उपेक्षा कर मसूरी के थाना प्रभारी को 1 सितम्बर 1994 को बदल दिया गया और वहां पी ए सी और पुलिस की भारी मात्रा में तैनाती कर दी गयी।

पैरा संख्या 239-नये थाना प्रभारी द्वारा 2 सितम्बर 1994 की प्रातः धरने पर बैठे 5 आन्दोलनकारियों की गिरफ््तारी और दानपात्र सहित कुछ अन्य सामान को जब्त किये जाने से आन्दोलनकारी और अधिक आक्रोशित हो गये। इस दौरान पुलिस ने 43 आन्दोलनकारियों को गिरफ््तार कर दिया। इसके विरोध में नगर के गणमान्य नागरिकों ने प्रातः 9 बजे झूलाघर की ओर एक जुलूस निकाला जिसमें महिलाएं और बच्चे भी थे। लोग जब झूलाघर से आन्दोलनकारियों को खदेड़ने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे और खटीमा गोली काण्ड में हताहतों को श्रद्धांजलि दे रहे थे तो उसी समय ऊपर पहाड़ी पर सादी वर्दी में बैठे पी ए सी के लोगों ने पथराव कर दिया। इस पथराव से बचने के लिये कुछ महिलाएं एवं बच्चे झूलाघर के अन्दर उस हॉल में घुस गये जहां एक दिन पहले तक समिति का कार्यालय हुआ करता था और जो एक रेस्टोरेण्ट था। उस समय झूलाघर पर पुलिस क्षेत्राधिकारी (डीएसपी) उमाकान्त त्रिपाठी पी ए सी के कुछ जवानों के साथ मौजूद थे। जहां डी एस पी त्रिपाठी झूलाघर के हॉल को पुनः आन्दोलनकारियों को सौंपने को तैयार थे वहीं नया थानेदार उस हॉल को न छोड़ने और आन्दोलन का दमन करने पर आमादा था। इसी दौरान अचानक पीएसी और पुलिस के जवानों ने बिल्डिंग को घेर कर एसडीएम की अनुमति के बिना अकारण ही जनता पर फायरिंग शुरू कर दी।

पैरा संख्या 240-पुलिस ने मात्र 5 फुट की दूरी से श्रीमती हंसा धनाईं और श्रीमती बेलमती चौहान पर गोलियां बरसा दीं जिससे उनकी घटनास्थल पर ही मौत हो गयी। इन दोनों के सिर पर गोली मारे जाने से उनका भेजा फट गया था। इसी दौरान रायसिंह बंगारी, धनपत सिंह और मदन मोहन ममगाईं को भी गोलियां लगीं और उनकी मौत हो गयी। जगमोहन सिंह रावत नाम के एक गढ़वाली कांस्टेबल ने बलबीर सिंह नेगी नाम के युवक के सीने में रायफल का बेनट घोंप दिया जिससे उसकी भी मौत हो गयी। राजेन्द्रसिंह नाम के एक एडवोकेट के सीने में गोली मारी गयी जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। फायरिंग के दौरान पुलिस लाठी चार्ज भी करती रही। पुलिस क्षेत्राधिकारी उमाकांत त्रिपाठी ने जब अपने हिंसा पर उतारू अपने लोगों को चिल्ला कर रोकने की कोशिश की तो उन पर भी .303 (थ्रीनॉट थ्री) रायफल से गोली चला दी गयी जिससे वह भी घायल हो गये। दम तोड़ने से पहले इस युवा अधिकारी ने किसी से कहा था कि उन्हें उनके ही लोगों ने मार डाला। पुलिस ने बिना किसी वारण्ट और बिना किसी वैध कारण के 47 लोगों को गिरफ्तार कर लिया जिनमें नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष एवं एक रिटायर्ड डीआइजी भी शामिल थे। इन गिरफ्तार लोगों को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बजाय बस में ठूंस कर बरेली जेल भेज दिया गया। रास्ते में उनके साथ मारपीट की गयी और भोजन तथा पानी भी नहीं दिया गया। वे दूसरे दिन 5 बजे सांय भूखे प्यासे बरेली जेल पहुंचे।

दूसरी ओर धारा 147, 148, 149, 353, 332, 339, 436, 307, 395 आइपीसी, 3/4 पीपीडी एक्ट एवं 7 क्रिमिनल एमेंडमेंट एक्ट के तहत मसूरी के थानाधिकारी द्वारा दर्ज एफआइआर, जिसे 14 लोगों के खिलाफ दाखिल चार्जसीट में शामिल किया गया है, में आरोप लगाया गया कि आन्दोलनकारियों ने नगरपालिका के झूलाघर के हॉल पर जबरन कब्जा करने के साथ ही मसूरी के एसडीएम कार्यालय पर भी 30 अगस्त 1994 को तालाबंदी कर दी थी और प्रशासन ने तालाबंदी खोलने तथा हॉल से अनधिकृत कब्जा हटाने का प्रयास किया था। खटीमा में 1 सितम्बर 1994 को पुलिस फायरिंग में कुछ लोगों के मरने की खबर मसूरी पहुंची तो उसकी प्रतिक्रिया 2 सितम्बर 1994 को हुयी। उस दिन आन्दोलनकारियों की भीड़ झूलाघर में एकत्र हुयी और खटीमा की घटना एवं इससे पूर्व अपने कुछ साथियों की गिरफ्तारी से गुस्साई भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया, जिससे कुछ अधिकारियों समेत कई पुलिसकर्मी घायल हो गये। लाठी चार्ज और आसू गैस का प्रयोग करने पर भी जब भीड़ पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका और भीड़ ने पुलिस के हथियार लूटने का प्रयास किया तो एसडीएम के आदेश पर पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी जिससे 6 लोगों की मौत हो गयी और कई घायल हो गये। पुलिस क्षेत्राधिकारी जो कि इस घटना में घायल हो गये थे भी जब इलाज के लिये अन्य घायलों के साथ सेंट मेरी अस्पताल गये तो भीड़ में से कुछ लोगों ने उन्हें अस्पताल से बाहर निकाला और बीच सड़क पर लाठी, ईंट, पत्थरों, से मार डाला।

 

 

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