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जिम कॉर्बेट की पुस्तक “My India” हिंदुस्तान की करोड़ों भूखी आबादी को थी समर्पित

समीक्षक:- गोविंद प्रसाद बहुगुणा

जिम कॉर्बेट ( Edward James Corbett) का “India'” –GPB

सुप्रसिद्ध लेखक जिम कॉर्बेट थे तो ब्रिटिश नागरिक लेकिन उनको भारत भूमि से गहरा प्यार हो गया था इसी कारण उन्होंने अपनी इस संस्मरणात्मक पुस्तक का नाम ही “मेरा इण्डिया” (My India ) रखा होगा ,यह मेरा सोचना है क्योंकि पुस्तक के “समर्पण” में लेखक ने जो भाव व्यक्त किये हैं , वे सहज ही किसी भी पाठक को प्रभावित कर सकते हैं इसी वजह से मैंने उनके लिखे *समर्पण * अंश का भावानुवाद करने की सोची ।

यह पुस्तक पाठकों द्वारा बहुत पसंद की गयी जिसका प्रमाण यह है कि इसका नवां संस्करण 1979 में भी छपा जबकि लेखक को मरे हुए २४ वर्ष बीत चुके थे ,पुस्तक का पहला संस्करण उनके मृत्यु से ठीक एक वर्ष पहले १९५४ में प्रकाशित हुआ था I इस पुस्तक का ज्यादा अंश तो कुमायूं और गढ़वाल क्षेत्र से संबंधित है लेकिन एक मजेदार चैप्टर सुल्ताना डाकू के सम्बन्ध में भी कि।

तो लीजिये पढ़िए इस पुस्तक के समर्पण में वे क्या कहते हैं भारत के बारे में –

” यदि आप इन पृष्ठों में हिन्दुस्तान के इतिहास को खोज रहे हों या फिर ब्रिटिश राज के उत्थान और पतन की कहानी ढूंढ रहे हों ,या इस उपमहाद्वीप के परस्पर दो विरोधी हिस्सों में बंटने का वृत्तांत पढ़ना चाह रहे हो और उस टूट के कारण सम्बंधित हलकों में पड़े दुष्प्रभाव को समझना चाहते हों जिससे पूरा एशिया महाद्वीप भी अछूता न रह सका , तो वह सब आपको इन पृष्ठों में कहीं नहीं दिखाई देगा ; हालांकि मैंने अपनी जिंदगी का अच्छा खासा हिस्सा इस मुल्क में बिताया है। मैंने उन घटनास्थलों को भी बड़े करीब से देखा है और उन घटनाओं के किरदारों से भी मेरे निकट के सम्बन्ध रहे है इसलिए मैं उनका लेख -जोखा यहां भी दर्ज कर सकता था ताकि इतिहास पर निष्पक्ष दृष्टि रखने वाले लोग इसका मूल्यांकन कर पाते , परंतु मैंने वह सब नहीं किया ।

मेरे इण्डिया में ,जिस हिन्दुस्तान को मैं जितना जान पाया हूँ , उसमें 40 करोड़ लोग रहते हैं ,जिनमें 90 प्रतिशत लोग निहायत भोले-भाले ,सरल, ईमानदार ,बहादुर , बफादार और मेहनती लोग हैं , जिनकी रोज की प्रार्थना अपने ईश्वर से यही रहती है कि- सरकार चाहे किसी की भी रहे , भगवान् उनके जीवन और सम्पति को सुरक्षित रखे ताकि वे शांति से अपनी मेहनत के फल का आनंद ले सकें I

ये वही लोग हैं जिन्हें हम नितांत गरीब मानकर चलते है , जिन्हें” हिन्दुस्तान की करोड़ों भूखी आवादी ” भी कहा जाता है ,जिनके बीच मैंने अपना सारी जिंदगी बिताई है , और जिन्हें मैं दिल से बहुत प्यार करता हूँ । अतः इस किताब के पन्नों में मैं उसी गरीब आबादी वाले अपने मित्रों के बारे में ईमानदारी से बताने की कोशिश करूंगा जिनको मेरी यह पुस्तक समर्पित है I ”

चलते -चलते एक और उद्धहरण मुझे पसंद आया उसको भी साझा करना चाहता हूँ –
“जितना समय मैंने जंगलों के बीच बिताया है वह समय मेरे लिए शुद्ध प्रसन्नता का समय रहा है उसी ख़ुशी को मैं लोगों के साथ साझा करने की ख़ुशी महसूस करता हूँ I मेरी ख़ुशी का कारण इस तथ्य को समझने में अधिक है कि सारे वन्य जीव अपने प्राकृतिक दत्त वातावरण में ही खुश रहते हैं प्रकृति में कल की चिंता नहीं रहती वहां कोई दुःख और पश्याताप नहीं है कि मुझे यह मिला और यह नहीं मिला किसी पक्षी को उसके झुण्ड से कोई बाज उठा ले जाए या किसी जानवर को कोई शिकारी जानवर उठा ले जाए उसकी उन्हें कोई चिंता नहीं रहती जो शेष बचे हैं वे अपने दिन को एन्जॉय करते हैं उन्हें न तो आज की और न कल की चिंता नहीं रहती है ”
GPB

(यह समीक्षा श्री गोविंद प्रसाद बहुगुणा जी की फेसबुक वॉल से सादर  -साभार ली गयी है)

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