ब्लॉग

सत्ता का खेल बिगाड़ सकती है कर्मचारियों की पुरानी पेंशन

-जयसिंह रावत
पुरानी पेंशन योजना को लेकर केन्द्र सहित 18 राज्यों में सत्ताधरी दल हाल ही में हुये विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में झटका खा चुका है और इसी साल 8 राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें से पूर्वोत्तर के नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव प्रकृया शुरू हो भी चुकी है। अगर हिमाचल प्रदेश की तरह इन राज्यों में भी पुरानी पेंशन योजना चुनावी मुद्दा बन गयी तो करोड़ों कर्मचारियों की मुराद पूरी होगी या नहीं मगर देश की राजनीति में भारी उथल पुथल जरूर हो जायेगी। इस साल होने वाले चुनाव नतीजांे का असर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।

भाजपा आखिर पेंशन विरोधी क्यों ?

देश के जिन पांच राज्यों ने अपने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल की है उनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं। ये सभी राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं। इनमें भी पंजाब को छोड़ कर बाकी कांग्रेस शासित या कांग्रेस की भागेदारी वाले राज्य हैं। इन में से भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ वे राज्य हैं, जिनमें इस साल चुनाव होने हैं। हिमाचल में कांग्रेस को जीत का फर्मूला मिल गया। जाहिर है कि कांग्रेस बाकी राज्यों में भी इसी फार्मूले को आजमायेगी। भाजपा इस समय देश के 18 राज्यों में सीधे या सहयोगियों के साथ सत्ता में है और सभी जगह पुरानी पेंशन योजना की मांग की अनदेखी की जा रही है। इस तरह भाजपा के पुरानी पेंशन योजना के खिलाफ होने का संदेश जा रहा है। सत्ताधारी दल के पेंशन विरोधी होने की आम धारणा त्रिपुरा के कारण भी बनी। क्योंकि वहां भाजपा के सत्ता में आते ही कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना बंद हो गयी।

सरकार ने 2004 में झाड़ दिया था पल्ला

केन्द्र और राज्यों में सन् 204 और 2005 से पुरानी पेंशन योजना बंद हो चुकी है। भारत सरकार ने इसे बन्द करने के लिये 1 जनवरी 2004 से नयी पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की है जिसे पश्चिम बंगाल को छोड़ कर धीरे-धीरे सभी राज्यों ने अपना लिया। उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य, जहां लगभग 12 लाख कर्मचारी हैं ने 1 अपै्रल 2005 और उत्तराखण्ड ने 1 अक्टूबर 2005 से नयी पेंशन योजना लागू कर एक तरह से पेंशन देने की झंझट से पल्ला छुड़ा कर इस जिम्मेदारी को नेशनल सिक्यौरिटी डिपॉजिटरी लिमिटेड (एमएसडीएल) के हवाले कर दिया।

 

कर्मचारी शेयर बाजार के हवाले

ऊपरी तौर पद देखने से लगता है कि 2004 के बाद सरकारी कर्मचारियों की पेंशन समाप्त हो गयी। जबकि सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था की जगह कर्मचारियों को नया विकल्प दिया है। इसका मतलब कतई नहीं कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को कुछ नहीं मिलेगा। दरअसल नये विकल्प में एक फण्ड बनाया गया है और फण्ड में कर्मचारी के वेतन से 10 प्रतिशत जमा होता है जबकि सरकार उसमें कर्मचारी के वेतन का 14 प्रतिशत अंशदान जमा करती है। इस फण्ड में जमा राशि को स्टेंट बैंक आफ इंडिया, यूटीआइ और एलआइसी शेयर मार्केट में लगाते हैं और उसका मुनाफा कर्मचारी को पेंशन के रूप में मिल जाता है। सरकार का मानना है कि इस योजना से रिटायर कर्मचारी की अधिकतम् आय की कोई सीमा नहीं है।

नयी योजना से सन्तुष्ट नहीं सरकारी सेवक

लेकिन पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिये आन्दोलित कर्मचारी नेताओं का तर्क है कि पुरानी योजना में सेवाकाल के अंतिम प्राप्त वेतन के आधे के बराबर राशि पेंशन के रूप में मिलने की गांरटी थी। हर साल डीए बढ़ने के साथ ही पेंशन राशि भी बढ़ती थी। यही नहीं पहले चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती थी जो अब नहीं मिलती। कर्मचारी आरोप लगाते हैं कि जीवनभर सरकार की सेवा करने के बाद अन्त में सरकार ने उनको शेयर बाजार के हवाले कर दिया। जबकि जो विधायक या सांसद पांच साल भी पूरा नहीं करते उन्हें सभी सरकारें पेंशन देती है। यही नहीं एक सांसद या विधायक जितनी बार चुना जाता है उसे उतनी बार पेंशन मिलती है।

जितनी बार विधायक उतनी बार पेंशन क्यों ?

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधायकों की पेंशन पर ही सरकार को प्रतिवर्ष लगभग 65 करोड़ खर्च करने होते हैं वहां लगभग 2200 पूर्व विधायक हैं। यह व्यवस्था उत्तराखण्ड सहित अन्य राज्यों में भी है। उत्तराखण्ड में पूर्व विधायक को पहले साल के लिए 40 हजार रुपये पेंशन मिलती है। इसके बाद प्रत्येक साल में दो हजार रुपये की पेंशन बढ़ोतरी होती है। पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाला विधायक 48 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन लेता है, लेकिन अब पूर्व विधायकों को 40 हजार पेंशन भी कम पड़ रही है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में कुछ पूर्व विधायक 8-8 बार की पेंशन ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछले 9 बार से विधानसभा का चुनाव जीतने वालों में भाजपा के सुरेश खन्ना, सपा के दुर्गा यादव हैं, जबकि आजम खान 10वीं बार जीते हैं। अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल 11 बार विधायक रह चुके थे। ऐसे में बादलें 5.76 लाख रुपए की मासिक पेंशन मिलती थी। हालांकि उन्होंने बाद में पेंशन छोड़ दी। पूर्व विधायक की मृत्यु की तारीख से उसके पति या पत्नी, या मृतक आश्रित को हर महीने उतनी ही फैमिली पेंशन मिलती है।

करोड़ों सरकारी सेवक मांग रहे पुरानी पेंशन

एक अनुुमान के अनुसार देश में केन्द्र और राज्य कर्मचारियों की संख्या 4.7 करोड़ के आसपास है। इनमें से अगर आधी संख्या को भी नयी योजना से पेंशन मिल रही है और वे सन्तुष्ट नहीं हैं तों वे हिमाचल प्रदेश की तरह राजनीतिक प्रतिकार कर सकते हैं। इसी खतरे को भांपते हुये भारत सरकार कम से कम तीन किल्पों पर विचार कर रही है ताकि पुरानी पेंशन के लिये देशभर में छिड़ा कर्मचारी आन्दोलन शांत किया जा सके। अगर 2 करोड़ कमचरी भी नराज है तो उतने ही परिवारों की नाराजगी गले पड़ सकती है। यही नहीं कर्मचारी जनमत बनाने का काम भी करते हैं और सरकार को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने की क्षमता भी रखते हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!