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स्टेट बैंक पर भी सवाल- आख़िर किस कारण से वो डेटा देने में देर कर रहा था ??

 

-Milind Khandekar
स्टेट बैंक सोशल मीडिया पर मज़ाक़ का विषय बना हुआ है. चुनावी बॉन्ड का डेटा रिलीज़ करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ को दो-दो बार सुनवाई करना पड़ी. लोगों ने लिखा कि स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट को भी चक्कर लगवा दिया जैसे बाक़ी ग्राहकों को लगाना पड़ता है. यह मज़ाक़ का विषय नहीं है. सवाल स्टेट बैंक पर भी उठ रहा है कि आख़िर किस कारण से वो डेटा देने में देर कर रहा था. जिस डेटा को मिलाने के लिए स्टेट बैंक तीन महीने का टाइम माँग रहा था उसे पत्रकारों ने 30 मिनट में मिला दिया.

पहले आप क्रोनोलॉजी समझिए 

  1. सुप्रीम कोर्ट ने 15 फ़रवरी को आदेश दिया कि चुनावी बॉन्ड बंद किए जाएँ. ये बॉन्ड बेचने का अधिकार सिर्फ़ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को मिला था. कोर्ट ने बैंक से यह भी कहा कि अप्रैल 2019 से बॉन्ड ख़रीदने और भुनाने वालों की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंप दें . चुनाव आयोग हफ़्ते भर में इसे सार्वजनिक कर दें
  2. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जानकारी देने के दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी लगा दी कि बॉन्ड ख़रीदने वाले और बेचने वालों का डेटा अलग अलग जगहों पर रखा गया है. एक तरफ़ 22 हज़ार एंट्री है और दूसरी तरफ़ भी 22 हज़ार. इनको मैच करने के लिए 30 जून तक समय चाहिए.
  3. स्टेट बैंक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की याचिका लग गई. सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को बैंक की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि जानकारी अगले दिन तक सार्वजनिक कर दें.
  4. स्टेट बैंक ने जानकारी सार्वजनिक कर दी लेकिन बॉन्ड का Alpha Numeric Number नहीं दिया जैसे हर करेंसी नोट पर यूनिक नंबर होता है वैसे ही हर बॉन्ड का अपना नंबर था. इसके मैचिंग से पता चलता कि किस कंपनी ने किसको कितना चंदा दिया.
  5. 18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई. कोर्ट ने फटकार लगाई तब जाकर 21 मार्च स्टेट बैंक ने नंबर के साथ डेटा जारी किया. फिर भी डेटा मैच नहीं था. अलग अलग अख़बार, चैनल और वेबसाइट ने कुछ ही मिनटों में दोनों लिस्ट मैच कर दी जिसके लिए स्टेट बैंक 30 जून तक समय माँग रहा था

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के 57% भारत सरकार के पास है. कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाया है कि चुनाव से पहले सरकार डेटा रोकने की भरसक कोशिश की गई. सरकार का जवाब नहीं आया है लेकिन सवाल बना हुआ है कि स्टेट बैंक डेटा रोकना क्यों चाहता था? चुनाव से पहले वोटरों को जानने का अधिकार है कि वो जिसे वोट दे रहा है वो किस कंपनी या व्यक्ति से पैसे ले रहा है. ( With courtesy from Hisab Kitab Hindi Newsletter)

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