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दुर्लभ एवं संकटापन्न औषधीय पौधे जीवन के लिए भी और आर्थिकी के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण

The special significance of medicinal plants in conservation stems from the major cultural, livelihood or economic roles that they play in many people’s lives. The use of Medicinal Plants as traditional medicine is followed by around 80% of people in the world. This is nowhere more so than in those remoter parts of the world where cultural and biological diversity tends to be most concentrated, and where medicinal plants can assume high importance in cultures and for livelihoods. India is marked as a mega biodiversity region over the world. Conservation and developing agro technologies on rare and endangered medicinal plants generate employment
opportunity and income to farmers.

-बी. एस. सजवान 

आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध तथा होम्योपैथी (आयुष) विभाग के अंतर्गत नवम्बर, 2000 में गठित राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड पर स्वस्थाने और स्थान बाह्य औषधीय पौधों के संरक्षण एवं कृषि हेतु किए गए उपायों के प्रोत्साहन का दायित्व है। 9वीं और 10वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस बोर्ड ने लगभग 30,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय पौधों के संरक्षण हेतु राज्य वन विभागों और स्वयंसेवी एजेंसियों की सहायता की। 40,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती के लिए 5000 से अधिक किसानों को वित्तीय सहायता भी प्रदान की गई। इसके अलावा, अनेक अनुसंधान एवं विकास संस्थाओं और विश्वविद्यालयों को कृषि तकनीक, कृषक प्रशिक्षण, प्राथमिक संग्राहकों, जनजातियों और अन्य के विकास के लिए सहायता प्रदान की गई।

बोर्ड ने जागरुकता कैंपों, कार्यशालाओं के आयोजन एवं विद्यालयों तथा घरों में जड़ी-बूटी के उद्यानों को लगाने से समाज के सभी वर्गों में औषधीय पौधों और स्वास्थ्य रक्षा में उसकी भूमिका के प्रति पर्याप्त रुचि आई है। 8000 करोड़ रु. से अधिक के आयुर्वेद उद्योग को कुछ संकटापन्न पौधों से मिलने वाले अवयवों के रूप में कच्चे माल की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है, जिसकी वजह से लोगों को पर्याप्त सुरक्षित औषधियां उपलब्ध कराने की इस उद्योग की योग्यता पर गंभीर प्रश्न चिह्न लग गया है। भारत में औषधीय पौधों की मांग और पूर्ति के बारे में बोर्ड द्वारा 2007-08 में किए एक अध्ययन से पता लगा कि आयुर्वेदिक उद्योग द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले कुछ पौधों की कमी चौकाने वाली है। उसके बाद बोर्ड ने राज्यों से अत्यधिक मांग वाले कुछ दुर्लभ एवं संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण और रोपण के प्रस्ताव आमंत्रित करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया।

सीता अशोक जोकि अशोकारिष्ट का एक महत्वपूर्ण घटक गुग्गुल, एक कांटेदार झाड़ी है, जिससे गोंद और राल प्राप्त होती और 100 से अधिक आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयुक्त होती है तथा दशमूल, जिसका व्यापक रूप से आयुर्वेदिक दवा दशमूलारिष्ट में उपयोग किया जाता है, आदि प्रजातियों पर विशेष ध्यान दिया गया। सीता अशोक की छाल की अनुमानित मांग 2000 मीट्रिक टन से भी अधिक है, फिर भी वनों में इसकी उपलब्धता अत्यंत दुर्लभ है। इसी तरह हालांकि गुग्गुल की गोंद और राल की 1000 मी.टन से अधिक मात्रा का उपयोग आयुर्वेद उद्योग द्वारा किया जाता है, लेकिन इसका 90 प्रतिशत भाग बाहर से आयात किया जाता है।

अतः बोर्ड ने गुजरात और राजस्थान के वन क्षेत्र में 4000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र में गुग्गल कर्नाटक, उड़ीसा और केरल राज्यों में 800 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में सीता अशोक तथा गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश राज्यों में 1100 हेक्टेयर में दशमूल वृक्ष के संरक्षण और रोपण की मंजूरी दी है। पर्यावरण, जून, 2009 18 ऊंचे पहाड़ों पर उगने वाले अतीस, कुथ, कुटकी जैसे पौधों का संरक्षण करने तथा उनका प्रचार करने हेतु हिमालय क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कार्यरत गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से विशेष अभियान चलाया गया। बोर्ड द्वारा श्री चण्डी प्रकाश भट्ट की अध्यक्षता में गठित कार्यदल पहाड़ों पर बसे जन-समुदाय को ऊंचे पहाड़ों पर उगने वाले औषधीय पौधों के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए प्रमुख प्रेरक रहा है। स्कूल एंड होम हर्बल जैसे जागरूकता कार्यक्रम समाज को औषधीय पौधों का संरक्षण करने हेतु प्रेरित करने की दिशा में अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा अक्तूबर, 2009 में दिल्ली में होम हर्बल गार्डन कार्यक्रम शुरू किया गया था। इस वर्ष इसके कार्यान्वयन को रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशनों के माध्यम से आगे

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