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मनरेगा मजदूरी का सवाल

जरूरी यह है कि मनरेगा मजदूरी हो या न्यूनतम मजदूरी, उसे मुद्रास्फीति के इंडेक्स से जोड़ा जाए। तभी शहर से गांवों तक में श्रमिक वर्ग के उपभोग के स्तर को बनाए रखा जा सकेगा, जो आम अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए भी जरूरी है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) मौजूदा सरकार की कभी प्राथमिकता नहीं रहा। लेकिन ग्रामीण समाज की हकीकत ऐसी है कि सरकार ना तो इसे उगल पाती है या ना निगल पाती है। कोरोना काल में यह आम तजुर्बा रहा कि यह योजना गरीबों के लिए सबसे बड़ा सहारा साबित हुई। उसके बाद इस कानून को नजरअंदाज करना संभव नहीं रह गया है। तो सरकार ने आखिरकार मनरेगा की मजदूरी बढ़ाने का फैसला लेना पड़ा है। बहरहाल, एक मुद्दा अभी भी अनसुलझा है। अलग-अलग राज्यों में मजदूरी की दर में असमानता कायम है। सवाल यह है कि आखिर एक ही योजना में काम करने वालों को समान मजदूरी क्यों नहीं मिलती? मनरेगा के तहत अगले वित्त वर्ष 2023-24 में दिहाड़ी बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने अधिसूचना जारी कर दी है। वेतन में सात रुपए से लेकर 26 रुपए तक की बढ़ोतरी की गई है। यानी दिहाड़ी में वेतन वृद्धि दो से दस प्रतिशत तक होगी। ये नई दरें एक अप्रैल से लागू होंगी। इस बढ़ोत्तरी के बाद हरियाणा में उच्चतम मजदूरी दर 357 रुपए प्रतिदिन होगी।

दूसरी ओर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सबसे कम दैनिक मजदूरी दर 221 रुपए है। वहीं राजस्थान में वर्तमान मजदूरी दर की तुलना में अधिकतम 10.39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और गोवा में सबसे कम 2.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वैसे जब से मनरेगा शुरू हुआ है, मजदूरी की दर अलग-अलग रही है। इसका कारण यह बताया जाता है कि भारत के अलग-अलग राज्यों में जीवन-यापन की लागत अलग-अलग होती है। यानी जो खर्च दिल्ली में होता है, वह बिहार में नहीं होता। इस वजह से हर राज्य में दिहाड़ी भी अलग-अलग रखी जाती है। यह बात अपने-आप में ठीक है। लेकिन गुजरे एक वर्ष में जिस रूप में महंगाई बढ़ी है, क्या उसकी दर भी अलग-अलग रही है? जरूरत इस बात की है कि मनरेगा की मजदूरी हो या न्यूनतम मजदूरी, उसे मुद्रास्फीति के इंडेक्स से जोड़ा जाए। तभी शहर से गांवों तक में श्रमिक वर्ग के उपभोग के स्तर को बनाए रखा जा सकेगा, जो आम अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए भी जरूरी है।

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