आपदा/दुर्घटना

एसडीसी फाउंडेशन ने जारी की मई की डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) रिपोर्ट ; वनाग्नि भारी रही आपदाओं पर

 

उदय रिपोर्ट में जंगलों की आग पर विशेष फोकस

देहरादून, 10 जुलाई । देहरादून स्थित एनवायर्नमेंटल एक्शन एंड एडवोकेसी समूह, एसडीसी फाउंडेशन ने अपनी मई 2024 की मासिक आपदा, क्लाइमेट एवं दुर्घटना आधारित रिपोर्ट, उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) जारी कर दी है।

रिपोर्ट में उत्तराखंड में जंगलों की आग, इससे होने वाली मौतों और इस आग से संबंधित विभिन्न तथ्यों को उजागर किया गया है। वनों की आग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख पर मुख्य रूप से फोकस किया गया है। रिपोर्ट में मसूरी में सड़क दुर्घटना, पौड़ी व उत्तरकाशी में बादल फटने और मोरी में लगी आग जैसी घटनाओं को भी जगह दी गई है।

*उत्तराखंड में वनाग्नि पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख*

उदय की रिपोर्ट में मई के महीने में राज्यभर में जंगलों में लगी भीषण आग की घटनाओं का जिक्र करने के साथ ही इन घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियों को भी प्रमुख रूप से स्थान मिला है। रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने वनाग्नि को नियंत्रित करने के कार्य में धन के उपयोग में चूक, वन विभाग के पदों में रिक्तियां, अग्निशमन उपकरणों की कमी और चुनाव आयोग द्वारा दी गई छूट के बावजूद वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की ड्यूटी चुनाव और चारधाम यात्रा में लगाने पर स्पष्टीकरण मांगा।

न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने चुनाव ड्यूटी के लिए वन अधिकारियों और वाहनों की तैनाती पर रोक लगाने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया कि किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वन कर्मचारियों और वन विभाग के वाहनों को चुनाव या चारधाम यात्रा जैसे किसी अन्य काम में तैनात नहीं किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि 2023-24 में वनाग्नि रोकने के लिए केवल 3.4 करोड़ रुपये का का कैम्पा फंड क्यों जारी किया गया, जबकि केंद्र ने 9.12 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। राज्य से पूछा गया कि जंगल की आग से निपटने के लिए राज्य आपदा प्रबंधन निधि क्यों जारी नहीं की गई। वन विभाग में रिक्तियों और अन्य तमाम मामलों पर भी सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख रवैया अपनाया।

*पिछले वर्ष से दोगुना वनाग्नि*

उदय रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में मई 2024 के अंत तक पिछले साल इसी अवधि की तुलना में उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने की घटनाओं की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा दर्ज की गई और और इन घटनाओं में पिछले वर्ष की तुलना में तीन गुना नुकसान हुआ है।

इस साल राज्य में वनाग्नि की 1,156 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 484 घटनाएं हुई थीं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल इसी अवधि में 576 हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 1,586 हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि को नुकसान पहुंचा है। राज्य में जंगल की आग के कारण मई अंत तक छह लोगों की मौत की सूचना मिली है।

2019 में 2,158 आग की घटनाओं ने 2,981 हेक्टेयर वन भूमि को प्रभावित किया, जिसके कारण एक व्यक्ति की मौत हुई थी और 15 घायल हुए थे। 2020 में 135 जंगल की आग की घटनाओं में 172 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई और दो लोगों की मौत हुई थी। 2021 में 2,813 आग की घटनाओं में 3,943 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई और आठ लोगों की मौत हुई थी। 2022 में 2,186 घटनाओं में 3,425 हेक्टेयर भूमि जली और दो लोगों की मौत हुई।

*नहीं था पानी, जल गए 10 घर*

उत्तरकाशी के मोरी तहसील के सालरा गांव में 27 मई को आग लगने से 10 घर जल गए। आग बुझाने के प्रयास में छह लोग घायल हो गए। 22 परिवार बेघर हो गये। सड़क से गांव 8 किमी दूर होने के कारण अग्निशमन और एसडीआरएफ की बचाव टीमों को सालरा गांव पहुंचने में चार घंटे लग गए।

सरकार ने गांव में नल और पानी की लाइनें बिछाई हैं, लेकिन दो साल हो गए हैं पानी नहीं है। नतीजतन, ग्रामीणों को कुएं और झरने से पानी लाने के लिए आधा से एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

पिछले 20 वर्षों में इस क्षेत्र में 438 घर आग में जल चुके हैं। 2009 में सिदरी में लगी आग सबसे विनाशकारी थी, जिसमें 26 घर जलकर राख हो गए थे और दो ग्रामीण और 20 मवेशी भी मारे गए थे।

*बादल फटने से नुकसान और मसूरी में रोड एक्सीडेंट*

मई के महीने में पौड़ी और उत्तकाशी जिलों में बादल फटने के घटनाओं को भी रिपोर्ट में जगह दी गई है। इससे लोगों की कई एकड़ जमीन बह गई थी या मलबे से दब गई थी। इसके अलावा रिपोर्ट में 5 मई को मसूरी में हुई कार दुर्घटना को भी उदय की रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। इस घटना में देहरादून में पढ़ाई कर रहे 5 विद्यार्थियों की मौत हो गई थी और एक छात्र घायल हो गया था।

*उदय रिपोर्ट, उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन*

हमारा मानना है की उत्तराखंड को अपने आपदा प्रबंधन तंत्र और क्लाइमेट एक्शन की कमज़ोर कड़ियों को मजबूत करने की सख्त ज़रूरत है। हम उम्मीद जताते हैं कि उत्तराखंड उदय मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए सहायक होगी। साथ ही आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी संभवत इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।

 

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