मौलाना हसरत का दिया नारा, इन्कलाब जिन्दाबाद, जो शोषितों- शासितों के प्रतिकार की आवाज बना
–अनंत आकाश
1875 उन्नाव उत्तर प्रदेश में जन्मे तथा 1921 में इन्कलाब जिन्दाबाद का नारा गढ़ने वाले ,मौलाना हसरत मोहानी की उच्च शिक्षा अलीगढ़ विश्वविद्यालय से हुई,वे 1907 में एक पर्चा निकालने में जेल गये ,1921 कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने पूर्ण स्वराज का नारा देकर अंग्रेजी हुकूमत की चुलें हिलाकर रख दी ।
8 अप्रैल 1929 को एसेम्बली बमकांड के दौरान भगतसिंह, बटुकेश्वर ने सर्वप्रथम उनके द्वारा दिया गया नारा लगाया ।1936 में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
‘इंकलाब जिंदाबाद’ एक ऐसा नारा है, जो उन दिनों आजादी के मतवालों की जुबां पर चढ़ा हुआ था। इसी नारे ने गुलामी के दौर में अंग्रेजों के खिलाफ नौजवानों में जोश पैदा किया था। अंग्रेजी हुक़ूमत से जंग-ए-आज़ादी के मतवालों के ‘इंकलाब जिंदाबाद’ नारे को गढ़ने वाले मोलाना हसरत मोहानी सही मायने में हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब के आलंबरदार थे। उनकी गिनती उस ज़माने के कद्दावर सियासतदानों में थी ।
मौलाना हसरत मोहानी ने अपनी ज़िन्दगी मुल्को-मिल्लत की हिफाज़त करने में लगा दी।वे उर्दू शायर भी थे । हिंदुस्तान की रूह तब तक अधूरी है, जब तक इसकी अपनी ज़ुबान उर्दू की गुफ़्तगू ना हो और उर्दू की दास्तां तब तक अधूरी रहेगी, जब तक उनका ज़िक्र ना हो। हसरत मोहानी जैसे अनगिनत स्वतंत्रता सैनानियों के संघर्ष के बाद हिंदुस्तान की जंग-ए-आज़ादी मुकाम पर पहुंची।
शायर मोहानी अंग्रेज़ हुक़ूमत के इतने सख़्त मुख़ालिफ़ थे कि उन्होंने दूसरे सियासतदानों से हटकर पूर्ण स्वराज की मांग कर डाली थी, जिससे अंग्रेज़ी हुक़ूमत हिल गई थी। मौलाना साहब ने हिंदुस्तान से मौहब्बत बेपनाह करते थे, वे महान स्वतंत्रता सेनानी तथा कम्युनिस्ट विचारों के मानने वालों में से एक थे, उनका “इन्कलाब जिन्दाबाद” का नारा आज भी देश के मेहनतकश जनता की लड़ाई का पहला नारा है ।