उपलब्धियों और चुनौतियों से भरा रहा प्रधानमंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह का कार्यकाल
– जयसिंह रावत
डॉ. मनमोहन सिंह, जो 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, भारतीय राजनीति के सबसे प्रतिष्ठित और विनम्र नेताओं में से एक माने जाते हैं। उनके कार्यकाल में देश ने आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक स्तर पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे। हालांकि, उनके दस वर्षों के कार्यकाल में उपलब्धियाँ और विवाद दोनों शामिल रहे।
आर्थिक सुधार और प्रगति
मनमोहन सिंह का नाम भारतीय अर्थव्यवस्था के सुधारक के रूप में पहले ही स्थापित हो चुका था, जब उन्होंने 1991 में वित्त मंत्री के तौर पर उदारीकरण की नीति लागू की। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व स्तर पर और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास किया।
- उच्च आर्थिक विकास दर:
2004-2011 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था ने 8% से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि थी और इसने भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया। - निवेश और औद्योगिक विकास:
उनके कार्यकाल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा मिला। सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्र में भारत ने वैश्विक स्तर पर बड़ी पहचान बनाई। - ग्रामीण योजनाएँ:
उन्होंने ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (NREGA) और भारत निर्माण जैसी योजनाओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और बुनियादी ढांचे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। - गरीबी उन्मूलन:
उनके शासन के दौरान गरीबी दर में गिरावट आई, और करोड़ों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सफलता मिली।
सामाजिक और कल्याणकारी नीतियाँ
डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल में सामाजिक न्याय और कल्याणकारी नीतियों पर विशेष ध्यान दिया।
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम:
2009 में लागू हुआ यह अधिनियम, भारत के हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था। - खाद्य सुरक्षा अधिनियम:
2013 में पारित हुआ यह अधिनियम गरीब परिवारों को सस्ती दरों पर अनाज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लाया गया। - स्वास्थ्य सेवाएँ:
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के तहत ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर बनाया गया। - महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए योजनाएँ:
उनके कार्यकाल में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए योजनाओं की शुरुआत हुई, जिनमें महिला आरक्षण विधेयक और सच्चर समिति की सिफारिशों को लागू करने के प्रयास शामिल हैं।
विदेश नीति और कूटनीति
मनमोहन सिंह की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य भारत को वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में स्थापित करना था।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौता:
2008 में यह समझौता उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था। इसने भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा समुदाय में विशेष स्थान दिलाया और देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद की। - चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध:
उन्होंने चीन के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत किए और पाकिस्तान के साथ बातचीत के प्रयास किए। हालांकि, आतंकवादी घटनाओं के कारण पाकिस्तान के साथ संबंधों में सीमाएं बनी रहीं। - ब्रिक्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंच:
मनमोहन सिंह ने ब्रिक्स, जी-20, और अन्य वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका को मजबूती दी।
विवाद और आलोचनाएँ
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जहाँ कई उपलब्धियाँ दर्ज की गईं, वहीं उनके नेतृत्व को कई विवादों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
- घोटाले और भ्रष्टाचार:
उनके दूसरे कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, और कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला जैसे बड़े घोटाले सामने आए। इन विवादों ने उनकी सरकार की साख को बुरी तरह प्रभावित किया। - नीतिगत लकवा (Policy Paralysis):
विपक्ष और मीडिया ने उनके नेतृत्व पर यह आरोप लगाया कि सरकार में नीतिगत निर्णय लेने की गति धीमी थी। - विनम्रता या कमजोरी?
उनकी विनम्रता और सादगी को अक्सर उनकी कमजोरी के रूप में देखा गया। पार्टी के भीतर नेतृत्व की कमी और निर्णय लेने में देरी के लिए उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी।
व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली
डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली अद्वितीय थी। उनकी ईमानदारी, विद्वता, और सादगी ने उन्हें जनता के बीच सम्मान दिलाया। वे एक कुशल अर्थशास्त्री होने के साथ-साथ एक शांत और संयमित राजनेता भी थे।
हालाँकि, उनकी नेतृत्व शैली को आलोचकों ने “दिखावटी” कहा, क्योंकि कांग्रेस पार्टी में सोनिया गांधी की छवि उनके ऊपर हावी थी। यह धारणा बनी कि वे केवल पार्टी के आदेशों का पालन कर रहे थे, जिससे उनकी स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठे।
डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत
मनमोहन सिंह के कार्यकाल को भारत के आर्थिक विकास और सामाजिक परिवर्तन के लिए याद किया जाएगा। उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत की साख को मजबूत किया और लाखों गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए ठोस प्रयास किए।
हालाँकि, उनके कार्यकाल में घोटालों और नेतृत्व की आलोचनाओं ने उनके योगदान को कुछ हद तक धूमिल किया, लेकिन उनकी ईमानदारी और विद्वता पर कोई संदेह नहीं किया जा सकत। आज भी वे भारतीय राजनीति में गरिमा और निष्ठा के प्रतीक माने जाते हैं।
कुल मिला कर देखा जाय तो मनमोहन सिंह का कार्यकाल उपलब्धियों और चुनौतियों का मिश्रण था। उन्होंने देश को विकास के पथ पर अग्रसर किया, लेकिन घोटालों और राजनीतिक विरोध ने उनके शासन को विवादित बना दिया। उनकी विरासत भारत के विकास की कहानी का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसे आने वाले वर्षों में सराहा जाएगा।