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भारत का भाग्य बदल गया 26 जनवरी 1950 को


– जयसिंह रावत
भारत वर्ष के राजनीतिक इतिहास में दो तिथियां ऐसी हैं जिनको भारतवासियों की आने वाली पीढ़ियां भी कभी नहीं भुला पायेंगी। इनमें एक तिथि 14 और 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि की और दूसरी तिथि 26 जनवरी 1950 की है। पहली तिथि पर भारत को सदियों की अंग्रेजों की गुलामी के बाद आजादी मिली और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंत्रिमण्डल के साथ भारत की सत्ता संभाली। दूसरी तिथि पर 26 जनवरी को हमें तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल हुयी जिनमें पहली उपलब्धि के रूप में वह संविधान मिला जिसे भारत के लोगों ने स्वंय अपना भविष्य तय करने के लिये बनाया था। दूसरी उपलब्धि राष्ट्र को अपना मूल नाम ‘‘भारत ’’ वापस मिला। तीसरी बड़ी उपलब्धि ब्रिटिश सम्राट द्वारा नियुक्त गर्वनर जनरल के स्थान पर हमारा अपना ‘‘राष्ट्रपति’’ मिला। उसी दिन हमारा अपना संविधान लागू होने पर भारत का शासन चलाने के लिये ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा पारित भारत सरकार अधिनियम 1935 और भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 का भी निर्सन हो गया। इसी तिथि पर गर्वनर जनरल का झण्डा उतारा गया और भारत के पहले राष्ट्रपति ने अपना झण्डा फहरा दिया। इसी तिथि पर संविधान सभा पहले आम चुनाव तक संसद में बदल गयी। इसी दिन राष्ट्रपति की शपथ के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनके मंत्रिमण्डल ने अपने संविधान को हाजिर नाजिर कर शपथ ली। इसी दिन भारत के प्रधान न्यायाधीश हरिलाल जे. कानिया ने भी पद की शपथ ली।

            photo by Jay Singh Rawat

आजाद भारत को अंग्रेजों के विधान से भी मुक्ति

भारत को 15 अगस्त को आजादी अवश्य मिली मगर अपना संविधान न होने के कारण भारत का शासन 29 महीनों तक ब्रिटिश संसद द्वारा पारित भारत सरकार अधिनियम 1935 के अनुसार ही चल रहा था। आजादी मिलने के बाद भी ब्रिटिश साम्राज्ञी द्वारा 21 फरबरी 1947 को नियुक्त गर्वनर जनरल लुइस माउंटबेटन 21 जून 1948 तक राष्ट्र प्रमुख के तौर पर पदासीन थे। माउंटबेटन के बाद गर्वनर जनरल के पद पर पहले और अंतिम भारतीय नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी पदासीन अवश्य हुये मगर उनकी नियुक्ति भी ब्रिटिश साम्राज्ञी की ओर से हुयी और उन्होंने भी तत्कालीन कानून के अनुसार साम्राज्ञी के प्रति निष्ठा और समर्पण की शपथ ली थी। यह तिथि हमें 26 जनवरी 1929 की याद भी दिलाती है जिस दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की घोषणा कर दी थी और उपनिवेश रहने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

पल-पल युगान्तरकारी थे 26 जनवरी 1950 को

26 जनवरी 1950 को भारत के भविष्य से सम्बन्धित युगान्तरकारी परिवर्तन के गवाह लम्हों को इसलिये भी याद करना जरूरी है क्योंकि लोग तिथि तो याद रखते हैं मगर उस तिथि के युग परिवर्तन करने वाले एक-एक लम्हें को याद रखना आसान नहीं है। इसलिये पाठकों की याद ताजा करने और भावी पीढ़ियों के लिये भारत के भविष्य को तय करने वाले उन ऐतिहासिक क्षणों का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।

26 जनवरी के कालजयी पल

Speech of the Governor General proclaiming India a Sovereign, Secular, Socialist Democratic Republic India that is Bharat.

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 26 जनवरी 1950 की प्रातः नव निर्वाचित राष्ट्रपति डा0 राजेन्द्र प्रसाद ने अपने 1, क्वीन विक्टोरिया रोड स्थित आवास से सदलबल नार्थ कोर्ट के लिये प्रस्थान किया जहां वह ठीक 9 बजकर 50 मिनट पर पहुंचे। अपने एडीसी की आगवानी में वह कुछ समय के लिये आसीन हुये। ठीक उसी समय देश विदेश के मेहमान गवर्नमेंट हाउस के दरबार हॉल में पहुंचने लगे थे। उसी समय ठीक 10 बजे राष्ट्रपति की पत्नी श्रीमती नामगिरी और अन्य पारिवारिक सदस्य भी दरबार हॉल पहुंचे जिन्हें उचित सम्मान के साथ ’बी’ वाली सीटों पर बिठाया गया। ठीक 10 बजकर 12 मिनट पर गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी नवनियुक्त राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के साथ नॉर्थ कोर्ट पहुंचते ही एक मिनट के अंदर दरबार हॉल की सीढ़ियों पर पहुंचे। वहां से प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दोनों का स्वागत किया और दोनों अति विशिष्ट हस्तियों को दरबार हाल में उनके आसनों तक ले गये। दरबार हॉल की सीढ़ियों के शीर्ष से एडीसी के प्रोसेशन की शक्ल में दोनों हिस्तयों साथ-साथ और एक दूसरे की बगलगीर हो कर आगे बढ़े। उनके पीछे प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार बल्लभ भाई पटेल और मौलाना अब्दुल कलाम आदि चल रहे थे। मंच तक पहुंचते ही गवर्नर जनरल दायीं वाली और नव नियुक्त राष्ट्रपति बायीं सीट पर आसीन हुये। उसके बाद 10 बज कर 15 मिनट पर बैंड की धुन के साथ राष्ट्रीय गान शुरू हुआ और फौरन बाद दरबार हॉल के दरवाजे बंद कर दिये गये।

गवर्नर जनरल द्वारा सम्प्रभुता सम्पन्न गणराज्य की घोषणा

समय का चक्र पल-पल घूमता रहा और ठीक 10 बज कर 18 मिनट पर गवर्नर जनरल ने नये सम्प्रभुता सम्पन्न गणराज्य के जन्म की घोषणा करने के साथ ही संविधान सभा का वह पत्र पढ़ा जिसमें गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के नाम की घोषणा की गयी थी। इसके तत्काल बाद गवर्नर जनरल ने नये राष्ट्रपति को दायीं वाली सीट पर बैठने के लिये आमंत्रित किया और स्वयं बायीं ओर की सीट पर आसीन हो गये। तत्पश्चात संघीय न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश हरिलाल जेकिसुनदास कानिया आगे बढ़े और उन्होंने नव नियुक्त राष्ट्रपति को पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी। राष्ट्रपति ने हिन्दी में शपथ ली। इसके बाद दरवार हॉल के दरवाजे खोल दिये गये। इसके साथ ही गवर्नर जनरल का झण्डा उतार कर राष्ट्रपति का झण्डा फहराया गया। इन औपचरिकताओं के बाद राष्ट्रगान समाप्त होते ही 31 तोपें नये गणराज्य के पहले राष्ट्रपति को सलामी के लिये गरज उठीं। तत्पश्चात 10 बजकर 28 मिनट पर गार्ड ऑफ ऑनर की औपचारिकता समाप्त होते ही राष्ट्रपति ने अपना संक्षिप्त भाषण दिया।
राष्ट्रपति के भाषण के बाद गृह सचिव ने आगे बढ़ कर राष्ट्रपति से अनुमति चाही कि क्या राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने की घोषणा सरकारी गजट में प्रकाशित कर उसे सभी जगह प्रसारित किया जाय? गृह सचिव ने 10 बजकर 35 मिनट पर शपथग्रहण समारोह की समाप्ति की घोषणा करने की अनुमति राष्ट्रपति से मांगी। इसके बाद सभा विसर्जन होते ही राष्ट्रपति और विर्तमान गवर्ननर जनरल एक जुलूस की शक्ल में दरबार हॉल से बाहर निकले मगर इस बार उनके पीछे प्रधानमंत्री नहीं थे। निवर्तमान गवर्नर जनरल को एडीसी द्वारा मिंटो रूम में ले जाया गया जबकि राष्ट्रपति उत्तरी गलियारे से ऊपरी बराम्दे में ले जाये गये। बाकी सभी मेहमान पुनः अपनी सीटों पर बैठ गये क्योंकि वहीं पर अब कैबिनेट मंत्रियों का शपथ ग्रहण होने वाला था।

प्रधानमंत्री कैबिनेट मंत्रियों का शपथ ग्रहण

ठीक 10 बजकर 38 मिनट पर उत्तरी गलियारे से प्रधानमंत्री नेहरू, उनके मंत्रिमडल के सदस्य, प्रधान न्यायाधीश और और स्पीकर ने ंऊपरी बराम्दे में वरिष्ठताक्रम में बड़ी मेज के दानों ओर आसन ग्रहण किया। राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल के अनुसार मेज के शीर्ष पर आसन ग्रहण किया। कैबिनेट सेक्रेटरी राष्ट्रपति के पीछे दायी ओर बैठे। इसके बाद राष्ट्रपति ने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को और फिर प्रधान न्यायाधीश हरिलाल जेकिसुनदास कानिया को शपथ दिलायी। इसके तत्काल बाद राष्ट्रपति, पूर्व गवर्नर जनरल, प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों, प्रधान न्यायाधीश और स्पीकर के साथ दरबार हॉल के बॉल रूम पहुंचे जहां विभिन्न देशों के राजनयिक और उनकी पत्नियां प्रतीक्षा में थे। यहां राजनयिकों ने राष्ट्रपति को अपने-अपने परिचय दिये। ठीक 12 बजे राष्ट्रपति बॉल रूम से निकलने लगे तो तो बैंड की धुन पर राष्ट्रगान शुरू हो गया और इस कार्यक्रम का भी विसर्जन हो गया।

 

 

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