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राजा बोला रात है, मंत्री बोला रात है, ये सुबह सुबह की बात है…

–दिनेश शास्त्री-
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग अर्से से चर्चा का विषय बना है। आयोग की कार्यप्रणाली शुरू से सवालों के घेरे में रही है किंतु सत्ता प्रतिष्ठान ने उसकी सफाई के बारे में कुछ करने के बजाय सोचा तक नहीं। इससे फायदा किसको हुआ, कौन लाभार्थी था? क्यों आंख मूंद ली गई? क्यों तमाम शिकायतों को नजरंदाज किया गया? योग्य बेरोजगारों की उम्मीदों पर पानी फेरने की जिद क्यों हुई? यह तमाम सवाल तब भी यथावत रहेंगे, जब तक कि आखिरी अपराधी सलाखों के पीछे नहीं हो जाता या फिर सीबीआई की जांच नहीं हो जाती।
आप भूले नहीं होंगे, कुछ दिन पहले तक एक पूर्व सीएम ताल ठोक कर कह रहे थे कि अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (लाल बिल्डिंग) में जिस अध्यक्ष को बिठाया था, वह बहुत ईमानदार था। उनके बाद के सीएम भी उन्हें वही सर्टिफिकेट दे रहे थे। लाल बिल्डिंग में बिठाए गए अध्यक्ष अपने साथी सचिव को बेहद ईमानदार यानी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के शब्दों में कहें तो “कट्टर ईमानदार” बता रहे थे। सचिव भी तुम मुझको पंत कहो, मैं तुम्हें निराला कहूंगा की तर्ज पर अध्यक्ष का गुणगान करते रहे। मतलब यह कि यशोगान की लंबी चेन थे। फिर अचानक क्या हुआ कि भांडा फूटा तो अध्यक्ष जी पतली गली से चलते बने। उसके बाद भी एक पूर्व सीएम साहब बोल रहे थे, मैंने बहुत ठोक बजा कर उन्हें जिम्मेदारी सौंपी थी। दूसरे के शब्द कुछ और थे किंतु लब्बोलुआब कमोबेश वही था। यानी राजा बोला रात है मंत्री बोला रात है, ये सुबह सुबह की बात है वाली कहावत लाल बिल्डिंग के बारे में जबरन स्थापित की जा रही थी।
मेरी इस बात में धारणा बनाने की कोई जिज्ञासा नहीं है कि कौन सही था, कौन गलत? मैं तो यह सर्टिफिकेट भी नहीं देना चाहता कि कौन कट्टर ईमानदार है, कौन था? मेरा सवाल तो यह है कि ” इधर उधर की न बात कर, ये बता काफिला क्यों लुटा?
लाल बिल्डिंग का मामला फिलहाल शांत होने वाला तो नहीं है। उत्तराखंड राज्य स्थापना के आंदोलन के दौरान सरकारी नौकरियों की खरीद फरोख्त की किसी ने भी कल्पना नहीं की थी। मंडल कमीशन के बाद ही तो  राज्य आंदोलन तीव्र हुआ था। वरना पी. सी. जोशी, ऋषि बल्लभ सुंदरियाल, महाराजा मानवेंद्र शाह तो बहुत पहले से अलग राज्य मांग रहे थे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन की ध्वजवाहक कहलाने वाली पार्टी यूकेडी तो 1979 में बनी थी किंतु आंदोलन को धार तो वीपी सिंह ने ही दी। बेशक उनका मकसद उत्तराखंड बनाना नहीं था।
बहरहाल उन दो पूर्व सीएम के सामने यह यक्ष प्रश्न हमेशा रहेगा चाहे मामले का निस्तारण क्यों न हो जाए, चाहे सीबीआई जांच हो या एसटीएफ की जो जांच अभी चल रही है, वे किस बिना पर  कट्टर ईमानदारी का सर्टिफिकेट बांट रहे थे। क्या खुलासा करने की जरूरत है कि कब किसने क्या कहा? बात ज्यादा पुरानी तो है नहीं कि आप भूल गए हों। ये कल की ही बात तो है जब लाल बिल्डिंग को लेकर राजा ने कहा रात है, मंत्री ने कहा रात है, सभासदों ने भी कहा रात है – किंतु ये सुबह सुबह की बात है।
इस कविता को लेकर भी कई भ्रम हैं। हिंदी के कुछ विद्वान इसे गोरख पांडे की कविता बताते हैं तो कुछ गोविंद प्रसाद की। उस विवाद में हम नहीं पड़ना चाहेंगे, लेकिन हिंदी दिवस के मौके पर उत्तराखंड की लाल बिल्डिंग के संदर्भ में यह कविता सटीक बैठती है। आपकी क्या राय है, जरूर बताएं। वैसे पूरी कविता इस तरह है, उस पर भी नजर डालिए –
राजा बोला—
‘रात है’
मंत्री बोला—‘रात है’
एक-एक कर फिर सभासदों की बारी आई
उबासी किसी ने, किसी ने ली अँगड़ाई
इसने, उसने—देखा-देखी फिर सबने बोला—
‘रात है…’
यह सुबह-सुबह की बात है…।

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