पर्यावरण

जंगलों को आग से बचाना बहुत टेढ़ी खीर हो गया वन विभाग के लिए

गौचर से दिग्पाल गुसांईं

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगना एक गंभीर समस्या है। राज्य बने 23 साल बीत चुके हैं लेकिन वन महकमा आज तक इसका तोड़ नहीं ढूंढ पाया है। यही वजह है कि हर साल करोड़ों की वन संपदा आग की भेंट चढ़ती जा रही है। पर्यावरण का संतुलन बिगड़ है सो अलग।

हर साल गर्मी का सीजन शुरू होते ही वनों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है, लेकिन साधन सुविधाओं के अभाव में वनकर्मी आग पर काबू पाने में सफल नहीं हो पाते हैं।जब आग लगती है तो झाड़ियों का झाड़ बनाकर आग पर काबू पाने का प्रयास किया जाता है। लेकिन पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों में तेज हवा घी का काम करती है। उस समय निहत्थे वनकर्मियों के सामने वन संपदा को जलते देखने के सिवा दूसरा चारा नहीं बचता है।

जंगलों में बेकार पड़े पिरूल को समय से पहले जलाने का काम भी किया जाता है लेकिन कारण जो भी हो यह कार्य भी खानापूर्ति से आगे नहीं बढ़ पाता है। सरकार ने कुछ साल पहले पिरुल से कोयला बनाने की योजना लागू की थी लेकिन यह योजना भी दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। फायर सीजन से पूर्व जगह जगह अग्नि सुरक्षा सप्ताह के तहत सेमिनारों पर लाखों रुपए फूंक दिए जाते हैं।

लेकिन नतीजा सिफर ही रहता है। अंग्रेजी हुकूमत के समय बनाएं गए नियमों के अनुसार वऩों की आग बुझाने के ऐवज में ग्रामीणों को हक हकूब के तहत इमारती लकड़ी के लिए पेड़ों का आवंटन किया जाता था लेकिन अब नियमों को इतना कठोर बना दिया गया है कि जरूरत मंदों को लकड़ी मिलती ही नहीं है। भारी भरकम महकमे वाला वन महकमा आग पर काबू क्यों नहीं कर पाता है यह सोचनीय विषय है। इन दिनों गर्मी के चरम पर पहुंचते ही जंगलों के धूं धूं कर जलने का सिलसिला शुरू हो गया है। पिछले कुछ दिनों से अब तक सारी,ककोड़ाखाल,सिरण,क्ठींठी,कांठा के जंगलों में लगी आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है।इस बड़े पैमाने पर वनसंपदा को नुक़सान पहुंचाने की खबर है। क्षेत्र में धुवां फैलने से जहां लोगों के आंखों में जलन की शिकायत मिलने लगी है वहीं दमा के रोगियों की परेशानियां भी बढ़ गई हैं। समय रहते आग पर काबू नहीं पाया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। कांग्रेस के जिलाध्यक्ष मुकेश नेगी ने वनों में आग लगने की घटनाओं को सरकार की नाकामी करार दिया है। कांग्रेस नगर अध्यक्ष सुनील पंवार,यंग ब्रिगेड के प्रदेश अध्यक्ष अजय किशोर भंडारी का कहना कि ग्रामीणों के साथ मिल बैठकर समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए।

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