क्षेत्रीय समाचार

देवी कालिंका के उत्सव यात्रा मार्ग को हड़प लिया हवाई पट्टी और रेल लाइन ने

 

-गौचर से दिग्पाल गुसांईं-

गौचर हवाई पट्टी व निर्माणाधीन ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन ने क्षेत्र की आराध्य देवी कालिंका की उत्सव यात्रा के मार्ग की पौराणिक मान्यताओं को दफन कर क्षेत्र वासियों की आस्था पर गहरा आघात पहुंचा दिया है।

पालिका क्षेत्र के सात गांवों की आराध्य देवी कालिंका का मूल मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर भटनगर की सीमा में स्थित है। पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुसार भटनगर गांववासी देवी के ससुराली तथा पनाई, बंदरखंड,रावल नगर शैल आदि गांव के लोग मायके पक्ष के माने जाते हैं।

देवी का एक मंदिर मायके पक्ष की सीमा में पनाई सेरे में स्थित है जहां हर साल नंदा अष्टमी के पर्व पर मायके पक्ष के लोग अपनी आराध्य धियाण मां कालिंका को लाकर पूजा अर्चना कर क्षेत्र की खुशहाली की कामना करते हैं।

देवी की उत्सव यात्रा पूर्व में भटनगर व पनाई सेरे की जमीन के बीचोंबीच होकर मायके मंदिर तक पहुंचती थी। इस यात्रा के दौरान दो पड़ाव ऐसे थे जहां पर यात्रा के दौरान देवी की पूजा अर्चना की जाती थी। पहला पड़ाव भटनगर तोक में था जहां पर बताया जाता कि यात्रा के दौरान देवी का गहना खो गया था। जब देवी इस स्थान आगे न जाकर वहीं घूमने लगती है तो तब शिरफल की बलि देकर देवी को आगे चलने के लिए राजी किया जाता है अब यह स्थान भी रेललाइन के लिए अधिग्रहित किए जाने से इतिहास के पन्नों में कैद हो गया है।

दूसरा पड़ाव पनाई सेरे में मायके के मंदिर के समीप था। जहां पर देवी की मूर्छा हटाने के लिए सुअर की बलि दी जाती थी। यह स्थान भी गौचर हवाई पट्टी में दफन हो गया है। गत वर्षों तक हवाई पट्टी की चारदीवारी में रास्ते के लिए जगह छोड़ने से देवी की यात्रा के लिए कुछ हद तक रास्ता बचा हुआ था।लेकिन वर्तमान में हवाई पट्टी की चारदीवारी की ऊंचाई बढ़ाने व सभी रास्ते बंद कर दिए जाने से देवी की उत्सव यात्रा के लिए रास्तों का भी संकट पैदा हो गया है। इस तरह से यह पहला मौका होगा जब देवी की उत्सव यात्रा नए रास्तों से होकर मीलों का सफर तय करेगी।

आराध्य देवी के लिए रास्ता नहीं रहा आसान

रविवार को मायके के मंदिर में आ रही कालिंका देवी की उत्सव यात्रा का यह पहला मौका होगा जब नए रास्ते से मीलों चक्कर काटना पड़ेगा। मंदिर समिति के अध्यक्ष जगदीश कनवासी का कहना है कि प्रशासन से मायके मंदिर के समीप हवाई पट्टी की दीवार तोड़कर रास्ता दिए जाने का आग्रह किया गया था। लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई अब यात्रा मूल मंदिर से मुख्य बाजार होते हुए मायके के मंदिर पहुंचेगी तथा वापसी में बंदरखंड गांव होते हुए मूल मंदिर जाएगी। इस तरह से यात्रा को मीलों चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ेगा।

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