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वैलेंटाइन डे और श्रीमद्भागवत में वर्णित “धीरावती कुलवती न वृणीत कन्या”


–गोविंद प्रसाद बहुगुणा–

इसे मात्र संयोग समझिये कि आज के दिन १४ फ़रवरी को लोग वैलेंटाइन Day बोल रहे हैं , मुझे इसका तो कुछ भी ख्याल नहीं था लेकिन कल रात से ही मेरे दिमाग में एक शब्द घूम रहा था “वृणीत” -कहाँ पढ़ा होगा ? इसका पूरा अर्थ भी मालूम नहीं फिर सुबह उठते ही कंप्यूटर में यह शब्द टाइप किया ! आहा यह तो श्रीमद्भागवत में है !! -एकदम मुझे श्लोक की यह एक लाइन भी याद आ गयी –

धीरावती कुलवती न वृणीत कन्या
काले नृसिंह नरलोकमनोऽभिरामं॥३८ II

फिर श्रीमद्भागवत खोला तो आपके लिए यह पूरा श्लोक प्रस्तुत है अर्थ सहित –

“का त्वा मुकुन्द महती कुलशीलरूप
विद्यावयोद्रविणदामभिरात्मतुल्यं।
धीरावती कुलवती न वृणीत कन्या
काले नृसिंह नरलोकमनोऽभिरामं॥”

हे प्रेमस्वरूप श्यामसुंदर ! चाहे जिस दृष्टि से देखें ,कुल शील स्वाभाव सौंदर्य विद्या अवस्था धनधाम सभी में आप अद्वितीय हैं ,अपने ही समान हैं I मनुष्य लोक में जितने भी प्राणी हैं सबका मन आपको देखकर शांति का अनुभव करता है ,आनंदित होता है I अब हे पुरुषभूषण ! आप ही बतलाइये ऐसी कौनसी कुलवती ,महागुणवती और धैर्यवती कन्या होगी जो विवाह के योग्य समय आने पर आपको ही पति रूप में वरण न करे ? तो वृणीत का मतलब होता है वरण करना स्वीकार करना I

मेरे ख्याल से पौराणिक इतिहास में यह प्रथम प्रेम पत्र रहा होगा जो रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को लिखा था वैसे प्रेम विवाह तो अनेक हुए पौराणिक कथाओं में लेकिन प्रेम पत्र के माध्यम से यह पहला विवाह था -लगे हाथ इस श्लोक से पहले वाला श्लोक भी लाजवाब है उसे भी सुनिए –

श्रुत्वा गुणान्‌ भुवनसुन्दर शृण्वतां ते
निर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोऽङ्गतापं।
रूपं दृशं दृशिमतां अखिलार्थलाभं
त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे॥३७II

हे त्रिभुवन सुन्दर !आपके गुणों को ,जो सुननेवालों के कानों के रस्ते ह्रदय में प्रवेश करके एक एक अंग के ताप को ,जन्म जन्म की जलन बुझा देते हैं ,तथा अपने रूप सौंदर्य को जो नेत्रवाले जीवों के नेत्रों के लिए धर्म अर्थ काम और मोक्ष -चरों पुरुषार्थों के फल ,एवं स्वार्थ परमार्थ सब कुछ है , श्रवण करके हे प्यारे अच्युत ! मेरा चित्त लज्जा सब कुछ छोड़कर आपमें ही प्रवेश कर रहा है I
GPB

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