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जब नरेंद्रनाथ का विवेक जागृत हुआ 

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा-

जब किसी व्यक्ति में असाधारण विवेक जगता है तो उसको जो आनन्द की अनुभूति होती है उसको ही *विवेकानन्द* कहते हैं , यह आनन्द की अनुभूति जब नरेंद्रनाथ को हुई तो वह विवेकानंद कहलाये। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ईश्वर चंद्र विद्यासागर के विद्यालय से‌शुरु हुई। आज उनकी जयन्ति के अवसर पर उनका एक संस्मरण पुनः साझा करने का मन हो रहा है जब वे आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लंदन के एकान्त परिसर में जर्मन विद्वान भाषाविद मैक्समूलर दंपति से मिले थे

यह संस्मरण स्वामी विवेकानंद जी ने विलायत से लौटने पर कलकत्ता में अपनी मित्र मण्डली को सुनाया था ।

” तुमको पता है मैं कभी क्या सोचने लगता हूं? मैं सोचता हूं सायणाचार्य ने पुनःअवतार लेकर मैक्समूलर के शरीर में प्रवेश कर लिया है ताकि वह उसके भाष्य को प्रकाशित कर सके । और उस विद्वान प्रोफेसर से भेंट होने के बाद तो मेरा यह मत पक्का ही हो गया। वेद-वेदांत का ज्ञाता इतना
धैर्यशाली और दृढ निश्चय का विद्वान तो शायद इस देश में भी नं मिलेे । उन वृद्ध दम्पति को वानप्रस्थी की भांति आक्सफोर्ड के एक शान्त वातावरण वाले एकान्तवास में निवास करते हुए देखकर

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