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जब समान धर्मा सोच के लोगों का होता है मिलन

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –

जब एक ही Wavelength के लोग एक दूसरे से मिलते हैं,भले ही वे एक दूसरे से पहली बार मिल रहे हों, फिर भी लगता है जैसे वे पहले से ही बखूबी परिचित हैं। ऐसा प्राय: निर्भय और पवित्र अन्तःकरण वाले व्यक्तियों के साथ होता है I भूतपूर्व राष्ट्रपति ए०पी०जे० अब्दुलकलाम सहाब ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि जब वे नेल्सन मंडेला से मिले थे और उन्होंने हाथ मिलाया तो उनको लगा कि वह किसी महान व्यक्ति से हाथ मिला रहे हैं , ऐसी ही तरंगे नोबेल पुरूस्कार विजेता फ़्रांसिसी लेखक रोमें रोलाँ को भी महसूस हुई जब वह गांधीजी से मिले थे और इस भेंट से वह इतने रोमांचित हो गये कि इन्होने गाँधी जी पर एक पुस्तक ही लिख डाली। उस पुस्तक नेकी चर्चा प्रसिद्धि दुनिया भर में ऐसी फैली कि ब्रिटेन के वाईस एडमिरल की पुत्री मीरा बहिन भी उस पुस्तक को पढ़कर अपना घर बार छोड़- छाड़ कर गांधी जी के पास भारत चली आई I
वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जब नेहरू जी से मिले तो उन्होने जो महसूस किया उसे अपने एक पत्र में खुलासा किया। वह गांधी और नेहरू के जीवनभर प्रशंसक रहे। गांधी के बारे में उनकी प्रशंसा सर्वविदित है फिर भी उसे दोहराने का मन कर रहा है-Generations to come will scarce believe that such a one as this one ever in flesh and blood walked upon this earth.”
एक और प्रसंग याद आ रहा है जो मैने KPS Menon ICS की किताब -*The Flying Troika* में पढ़ा था जिसमें उनके उस समय के संस्मरण संगृहीत हैं, जब वह सोवियत रूस में डा०एस०राधाकृष्णन जी के बाद भारतीय राजदूत नियुक्त हुए थे। वे लिखते हैं कि अपने कार्यकाल के आखिरी दिन जब डा०S.राधाकृष्णन जी राजदूत के रुप में स्टालिन से शिष्टाचार भेंट करने गये तो उनकी बातचीत के बीच एक क्षण ऐसा आया कि dr राधाकृष्णन ने स्टालिन के गालों का स्पर्श करते हुए कहा -जरा देखूं तो सही दुनिया के लोग तुमसे क्यों खौफ खाते हैं । मेनन लिखते हैं स्टालिन रो पड़े और कहा सच में तुमने ही मुझे मनुष्य माना ।काश ! तुम कुछ दिन और यहीं राजदूत के रुप में रुक जाते ! मेनन कहते हैं उस प्रभावशाली व्यक्तित्व के बाद मेरे लिए राजदूत के रुप में वही प्रभाव जमाना एक चुनौती बन गई थी। KPS Menon मेरे प्रिय लेखकों की सूची में हैं उनकी एक आटोबायोग्रैफिकल पुस्तक The Many World भी लाजबाव है ।
GPB

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