डा0 आंबेडकर ने बौद्ध धर्म क्यों अपनाया ? पढ़िए उनकी ही जुबानी !
-जयसिंह रावत
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म स्वीकार किया। इस धर्म परिवर्तन में उनके साथ लाखों अनुयायी थे, जो उनके साथ बौद्ध धर्म अपनाने के लिए नागपुर पहुंचे। यह दिन भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना बन गया, जिसे दीक्षाभूमि के रूप में जाना जाता है। डॉ. अंबेडकर का बौद्ध धर्म स्वीकार करना एक आध्यात्मिक मुक्ति और सामाजिक क्रांति की ओर बढ़ने का कदम था। उनकी इस धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया ने भारतीय समाज में दलितों के लिए नए रास्ते खोलने का काम किया।
डॉ. भीमराव अंबेडकर का हिंदू धर्म पर 15 अक्टूबर 1956 को नागपुर में दिया गया भाषण भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस भाषण में उन्होंने हिंदू धर्म के खिलाफ अपनी आलोचना व्यक्त की और इस धर्म में व्याप्त जातिवाद और असमानता के बारे में अपनी चिंताएं जाहिर की। इस भाषण में उन्होंने हिंदू धर्म से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध धर्म को अपनाने का आह्वान किया था। यह भाषण भारतीय समाज में जातिवाद और असमानता के खिलाफ डॉ. अंबेडकर की जंग का प्रतीक है, और इसे भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण माना जाता है।
डॉ. अंबेडकर के 15 अक्टूबर 1956, नागपुर में दिए गए भाषण के मुख्य अंश :
- “हम लोग हिंदू धर्म से बाहर निकलने का निर्णय ले चुके हैं। हिंदू धर्म में रहने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि इस धर्म में समानता, बंधुत्व, और न्याय की कोई जगह नहीं है। इस धर्म ने हमें न केवल मानसिक रूप से गुलाम बना रखा है, बल्कि सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से भी हमें शोषित किया है।
- हिंदू धर्म में जातिवाद का इतना गहरा जाल फैला हुआ है कि उसमें किसी व्यक्ति को अपनी पहचान बनाने का कोई अवसर नहीं मिलता। उच्च जातियों के लोग हमेशा से नीच जातियों को तुच्छ समझते हैं और उन्हें उनके मानवाधिकारों से वंचित रखते हैं। इसके परिणामस्वरूप समाज में घृणा और भेदभाव की भावना उत्पन्न होती है।
- “मैंने एक बार कहा था कि मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ हूं, लेकिन मैं मरते दम तक हिंदू धर्म का पालन नहीं करूंगा। मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाऊंगा। मैं हिंदू धर्म को इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि इस धर्म में जातिवाद की समस्या न केवल विद्यमान है, बल्कि यह समस्या बहुत गंभीर है।”
- जब तक हिंदू धर्म के भीतर ऐसी विषमताएं और असमानताएं बनी रहेंगी, तब तक समाज में कोई सच्चा सुधार संभव नहीं है। यही कारण है कि मैंने निर्णय लिया है कि हम इस धर्म को छोड़कर एक नया रास्ता अपनाएं। इस नए रास्ते में मैं बौद्ध धर्म को अपनाने की बात कर रहा हूं, क्योंकि यह धर्म समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे का संदेश देता है।
- मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि यह कोई आसान कदम नहीं है, लेकिन यह कदम हमारे समाज को न्याय, समानता और स्वतंत्रता की ओर ले जाएगा। बौद्ध धर्म में सभी जातियों के लोग समान रूप से पूजा करते हैं, और वहां न कोई ऊंचा है, न कोई नीचा। सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं। यही कारण है कि मैंने अपने सभी अनुयायियों से बौद्ध धर्म अपनाने की अपील की है।”
- “बौद्ध धर्म में हमें समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे का संदेश मिलता है। बौद्ध धर्म में किसी को नीच नहीं समझा जाता। सभी लोग समान होते हैं और सभी को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। यह धर्म हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्मों के अनुसार जीना चाहिए, न कि किसी जन्मजात जाति या धर्म के आधार पर।”
- “मैं बौद्ध धर्म को इसीलिए अपनाने जा रहा हूं, क्योंकि यह धर्म हमें मानवता और समानता का पाठ पढ़ाता है। यह धर्म हमारे जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में सहायक सिद्ध होगा। मैं सभी दलितों और शोषितों से अपील करता हूं कि वे भी बौद्ध धर्म अपनाएं ताकि हम समाज में समानता और न्याय की स्थापना कर सकें।”
- “हमारे पास एक नया धर्म है, जो हमें शांति, समानता, और स्वतंत्रता का मार्ग दिखाता है। हम जितनी जल्दी इस धर्म को अपनाएंगे, उतनी ही जल्दी हम समाज में अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे।”
अगर आप इस भाषण का पूरा पाठ चाहते हैं, तो यह आमतौर पर किताबों या शोध पत्रों में उपलब्ध होता है, जैसे कि डॉ. अंबेडकर द्वारा लिखी गई “The Problem of the Rupee” या “Thoughts on Linguistic States” जैसी पुस्तकें, जिसमें उनके विचारों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
(नोट : लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कई पुस्तकों के लेखक हैं, लेकिन उनके विचारों से एडमिन का सहमत या असहमत होना जरुरी नहीं है। -एडमिन )