झिरकोटी की महिलाएं दिखा रही सरकार को आईना
बंजर जमीनों को आबाद कर नई इबारत लिखने में जुटी कर्मठ मातृ शक्ति
-दिगपाल गुसाईं, गौचर –
उत्तराखंड की डबल इंजन सरकार राज्य से हो रहे पलायन की चिंता में दुबली हुई जा रही है लेकिन पलायन की रोकथाम के प्रति गंभीर नजर नहीं आती। खुद सरकार के पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में खुद माना है कि वन्य जीवों द्वारा फसलों को पहुंचाए जा रहे बेतहाशा नुकसान से पलायन तीव्र हुआ है लेकिन रोकथाम के उपाय करने की जहमत नहीं उठाई गई। इस बीच एक उत्साह जगाने वाली खबर भी सामने आ रही है लेकिन इसमें सरकार की सहभागिता नहीं बल्कि देवभूमि की मातृ शक्ति का कर्म कौशल और पुरुषार्थ झलक रहा है। उसकी चर्चा आगे करें, पहले पहाड़ की वस्तुस्थिति पर नजर डालें।
जंगली जानवरों व बंदरों द्वारा फसलों को नुक़सान पहुंचाने से जहां अधिकांश लोगों के खेती से दूरी बनाए जाने से अधिकांश जमीन बंजर पड़ गई है। इसके विपरीत विकास खंड कर्णप्रयाग की ग्राम सभा झिरकोटी की महिलाओं ने बंजर जमीनों को आबाद कर सरकार को आईना दिखाने का काम किया है।
पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली जानवरों व बंदरों द्वारा फसलों को नुक़सान पहुंचाने से उन कास्तकारों के सामने बीज के दाने का भी संकट पैदा हो गया है जो सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत कर लगातार हो रहे पलायन के बावजूद जमीनों को आबाद करने में जुटे हुए हैं, लेकिन फल मिलने से पहले ही जंगली जानवर व बंदर उनकी मेहनत पर पानी फेर दे रहे हैं। अलग राज्य बनने के बाद पहाड़ी क्षेत्र की जनता लगातार जंगली जानवरों व बंदरों से निजात दिलाने की मांग करती आ रही है लेकिन कोई भी सुनने को तैयार नहीं है। नतीजतन पहाड़ के कास्तकारों के खेती से दूरी बनाए जाने व पलायन करने से पहाड़ में लगभग साठ प्रतिशत से अधिक जमीन बंजर पड़ गई हैं। इसका दूसरा कारण सरकार द्वारा फ्री राशन देना भी माना जा सकता है। लेकिन इन तमाम बातों को ठुकराते हुए जनपद चमोली के विकास खंड कर्णप्रयाग की ग्राम सभा झिरकोटी की ग्राम प्रधान भुवना देवी के नेतृत्व में इंद्रकला देवी, सुमन देवी, सुषमा देवी, लीला देवी, अंजू देवी, सावित्री देवी, पुष्पा देवी, पार्वती देवी, सरिता देवी, सुरेखा देवी, लक्ष्मी देवी, सुषमा देवी, विजया देवी आदि महिलाओं ने क्षेत्र की बंजर पड़ी जमीनों को आबाद कर सरकार को आईना दिखाने का निर्णय लिया है।
ग्राम प्रधान भुवना देवी व समूह से जुड़ी अन्य महिलाओं ने आजकल एक मुहिम के तहत बरसों से बंजर पड़ी खेतों को पुनः आबाद करने का बीड़ा उठा लिया है। ग्राम प्रधान भुवना देवी का कहना है कि अगर इस ग्राम सभा की महिलाओं को सरकार द्वारा खेतों की फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए तारबाड़ करने की आर्थिक मदद की जाए तो आने वाले समय में इन बंजर पड़े खेतों मे अदरक, लहसुन, मेथी, कच्ची हल्दी, बड़ी इलाइची, आम, अनार आदि नगदी फसलों को प्रचुर मात्रा में तैयार कर स्वरोजगार के माध्यम से आर्थिकी को मजबूत किया जा सकता है। यही नहीं पलायन पर कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है।
गौरतलब है कि अभी पिछले दिनों शासन स्तर पर बंदरों की संख्या पर अंकुश लगाने पर आला अफसरों ने बड़ी देर तक मंथन किया था लेकिन लोगों को अब इन बैठकों में लिए जाने वाले निर्णयों से कोई हर्ष नहीं होता, कारण यह है कि राज्य स्थापना के बाद से ही वन्य जीवों के कारण होने वाली दुश्वारियों का रोना लोग रो रहे हैं लेकिन जुबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं हुआ।
आज पहाड़ के ज्यादातर हिस्सों की स्थिति यह है कि दिन में बंदर और रात को सुअर तथा अन्य वन्य जीवों का खतरा लोगों को सताता आ रहा है। गुलदार की दहशत अलग है लेकिन जो बंदर पिछले एक दशक से क्षेत्र में दिख रहे हैं, वह पहाड़ के परंपरागत बंदरों से भिन्न हैं। उनका व्यवहार बेहद क्रूर है। पहले बंदर कुत्ते के भौंकने से भाग जाते थे, लेकिन आज कुत्ते हो ही बंदर नोच रहे हैं। घर के भीतर तक उनकी पहुंच हो गई है। लोग रोकने के लिए प्रयास करते हैं तो उन्हीं पर हमला हो रहा है। इस तरह की शिकायतें वन विभाग के अफसरों से लेकर सीएम पोर्टल तक दर्ज होती आ रही हैं लेकिन समाधान दूर दूर तक नहीं है। लोग यह मान बैठे हैं कि कभी कुंभ, कभी कांवड़ मेला तो कभी जी 20 बैठकों के कारण मैदानी क्षेत्र के बंदर बोनस में पहाड़ पर धकेले जा रहे हैं।
सरकार द्वारा बंदरों के हमलों की शिकायतों के प्रति उपेक्षाभाव इस धारणा को बल देता आ रहा है। इस स्थिति में झिरकोटी की महिलाएं कितनी सफल हो पाएंगी, यह पलायन रोकने का पैमाना हो सकता है।