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मंत्रों के उच्चारण से रिद्धि – सिद्धि भवन हुआ सुगंधित

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान पूजा में 128 अर्घ्य समर्पित,श्रावक – श्राविकाएं सिद्ध प्रभु की भक्ति में लीन

मुरादाबाद, 6 नवंबर(उ हि)। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी में चूणामणि के समान विराजमान सिद्ध भगवान के चरणों में एक सौ अठाइस गुणों का स्मरण कर भाव के भर को तजने हेतु आज सिद्ध चक्र महामंडल विधान के पंचम दिवस कर्म दहन हेतु विधि विधान से पूजन हुआ। इसमें अथ देवशास्त्र गुरुपूजन,समुच्चय चौबीसी जिनपूजा, नंदीश्वर पूजन के उपरांत 128 अर्घ्य सिद्ध भगवान की आराधना में अर्पित किए गए। यूनिवर्सिटी का रिद्धि – सिद्धि भवन मंत्रों और बीजाक्षरों के उच्चारण से सुगंधित हो उठा। विधान में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन के संग-संग फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, ग्रुप वाइस चेयरमैन श्री मनीष जैन, श्रीमती ऋचा जैन की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। इस विशेष पूजा में यूपी के संग-संग महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम आदि से आए श्रावक-श्राविकाएं धर्म लाभ कमा रहे हैं।

 

भोपाल से आई संजय एंड पार्टी ने सुरमय भक्ति गीतों में विधान में शामिल सभी भक्तों को सिद्ध प्रभु की भक्ति में तल्लीन कर दिया। गीत, सांवरिया पारसिया आ जाना, बसा लो चरणों में ऐसे, पूजा पाठ रचाऊं स्वामी, ओ पालनहारे तुमरे बिन कौन यहां, ज्ञान का दिया जला दो प्रभु, छाई काली घटा ही तो क्या,जिनकी छतरी के नीचे हूँ मैं,आगे आगे है बाबा मेरे, मेरे सामने वाले सिंहासन पर चंदाप्रभु रहते है, मैने भक्ति की डोर से बांध लिया है,लिखने वाले ये लिखना कर्म किसी को न छोड़े,कर्म कर्म का खेल है हमारा तुम्हारा, मेरी रसना पुकारे तेरा नाम रे,जमाने से कहो अकेले नहीं हम, संसार तेरा है घर भर तेरा है विद्यासागर रक्षा करना परिवार तेरा है, समोशरण में प्रभु तुम्हे पुकारा, मैं तो तुमको ध्याउँगा तेरी पूजा रचूंगा सिद्धालय में जाऊंगा…आदि ने श्रद्धालुओं को झूमकर नाचने को मजबूर कर दिया। अलग – अलग गीतों पर श्रावक – श्राविकाओं ने हाथों को लहराकर लहर बनाकर, पंछी की तरह पंख फैलाकर, भगवान के समक्ष हाथ फैलाकर विभिन्न अन्य रूपकों को लेकर भक्ति नृत्य कर अपने भावों को प्रकट किया। पूजन में क्रोध के वश में होकर,मान सहित मन संबंधी,मायावी मन संबंधी,लोभी मन संबंधी, क्रोधयुक्त वचन द्वारा संरभ संबंधी आदि विषयों पर आधारित कर्म दहन पूजा के अर्घ्य समर्पित किए। इस दरम्यान ब्रह्मचारी श्री ऋषभ शास्त्री ने बताया कि मंत्रों में शब्दों की अहमियत से शक्ति आती है।नैरेत्रय मुखी घर अशुभ होता है अर्थात दिशाओं, बीजाक्षरों और अक्षरों का वास्तुशास्त्र में भी महत्वपूर्ण योगदान है। हम 24 घंटे में 108 प्रकार के पाप करते है। कर्मों की निर्जरा हो जाए, इसीलिए ये पूजन कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि- यदि भगवान से आज कुछ मांगना पड़े तो उनसे छायिक सम्यकत्व ही मांगना। उत्पाद-व्यय द्रव्य मनुष्यों के पास है और सिद्धों के पास भी है,सिर्फ अंतर है तो वह यह है-कर्मों के क्षय का। सिद्धों की विशेषताएं पूजन में 128 गुणों के रूप में बताई गयी है। एक सिद्ध में असंख्यात सिद्ध शामिल हो जाते हैं। जब हममें समावेशीकरण का भाव आने लगे तो हम तभी सिद्धत्व के भाव की ओर बढ़ने लगते हैं। हम पापों को नष्ट करने को पूजन करते हैं। संसार में सुख- दुख तो आएंगे ही, हमें तो खुश रहना है,हर हाल में खुश रहना है। मायाचारी में सबसे खतरनाक मन की मायाचारी है,बगुला भगत की तरह,कौआ और कोयल की कहानी में कौए की तरह मायाचारी मन मायाचारी है। पूजन करने से इस तरह की मन संबंधी कुटिलता दूर हो जाए, ये भाव कर अर्घ्य समर्पित करते है। मन से ही दुगति होती है,क्योंकि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत है। लवणसमुद्र में मगर चावल के दाने के बराबर होता है। वह मन में पाप के भाव रखता है,इसीलिए परम पद पाने से दूर होता जाता है। मुरादाबाद जैन समाज के गणमान्य नागरिकों ने भी रिद्धि सिद्धि भवन पहुंचकर धर्म लाभ लिया। विधान में शामिल श्रावक- श्राविकाओं ने नियमबद्ध होकर जाप पूर्ण किए और पुण्य लाभ प्राप्त किया। सांध्यकालीन प्रवचन में प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री ने कर्म दहन पूजा की जीवन में भूमिका और सिद्धचक्र महामंडल विधान के 128 अर्घो की महत्ता को समझाया।

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