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शराब के लिये शराबियों से ज्यादा सरकारें हैं प्यासीं

  • भारत में नशाबंदी कभी सफल नहीं हो सकी
  • मदिरा प्रेमियों के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून कहाँ ?
  • शराबी से अधिक राज्य सरकारों को तलब
  • शराब गृहणियों के लिये अभिशाप तो सरकार के लिये बरदान
  • शराब के लिये महिलाओं का हुजूम भी टूट पड़ा

         –जयसिंह रावत

शराब भले ही स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो मगर यह सरकारों की आर्थिकी के लिये किसी टॉनिक से कम नहीं है। इसीलिये हाल ही में जब लॉकडाउन में थोड़ी ढील मिली कि उनींदी राज्य सरकारों का नेत्र सबसे पहले शराब की दुकानों पर ही खुला। इन दुकानों का चाहे कितना भी विरोध क्यों न हो मगर इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि देश की 16 करोड़ से अधिक आबादी मदिरा का सेवन करती है और इन करोड़ों मदिरा प्रेमियों के भी न केवल नागरिक अधिकार हैं अपितु वे उपभोक्ता भी हैं, जिनके अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 ( 2019 में संशोधित) के तहत संरक्षित हैं। उत्तराखण्ड में सर्वाधिक  कर राजस्व जुटाने वाले तीन विभागों में से एक आबकारी विभाग है।

 शराब के लिये महिलाओं का हुजूम भी टूट पड़ा

अब तक तो पुरुष ही शराब के लिये बदनाम रहे हैं। शराबियों पर पत्नियों के उत्पीड़न का आरोप लगता रहा है । कोरोना लॉकडाउन के बाद जब शराब की दुकानें खुलीं तो तब जा कर कई लोगों को पता चला कि महिला और पुरुष में गैर बराबरी कब के समाप्त हो चुकी है और समाज के बाकी क्षेत्रों से लिंगभेद चाहे गया हो या नहीं मगर मधुशाला ने तो यह भेद जरूर मिटा दिया है। लॉकडाउन के तत्काल बाद शराब की दुकानों पर जितनी लम्बी लाइनें पुरुषों की नजर आईं उतनी ही लम्बी लाइनें महिलाओं की भी देखी गयी। महिलाओं के लिये उनकी मांग पर अलग से लम्बी कतारें सजाई गयीं। उत्तराखण्ड में महिलाओं के नाम पर भी कई शराब की दुकानें हैं।

भारत में शराबियों की आबादी 16 करोड़ से ज्यादा

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देशभर में 10 से 75 साल की आयु वर्ग के लगभग 16 करोड़ लोग (14.6 प्रतिशत) शराब पीते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड और गोवा में शराब का सबसे ज्यादा सेवन किया जाता है। एम्स द्वारा यह सर्वे सभी 36 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में किया गया था, जिसमें कहा गया कि राष्ट्रीय स्तर पर 186 जिलों के 2 लाख 111 घरों से संपर्क किया गया और 4 लाख 73 हजार 569 लोगों से इस बारे में बातचीत की गई। कुल 12 महीनों की अवधि में लगभग 2.8 प्रतिशत याने कि लगभग 3 करोड़ 1 लाख लोगों ने भांग या अन्य चीजों का इस्तेमाल किया। भारत में पांच में एक व्यक्ति शराब पीता है। सर्वे के अनुसार 19 प्रतिशत लोगों को शराब की लत है। जबकि 2.9 करोड़ लोगों की तुलना में 10-75 उम्र के 2.7 प्रतिशत लोगों को हर रोज ज्यादा नहीं तो कम से कम एक पेग जरूर चाहिए होता है। सर्वे में पहली बार महिलाओं से जुड़े आंकड़े भी शामिल किये गये। इसके अनुसार जहां 27 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते हैं वहीं शराब का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या करीब 2 प्रतिशत है। इतना ही नहीं करीब साढ़े 6 प्रतिशत महिलाओं को इलाज की जरूरत थी।

शराब गृहणियों के लिये अभिशाप तो सरकार के लिये बरदान

कोरोना लॉकडाउन में शराबियों से ज्यादा राज्य सरकारें प्यासी नजर आ रही हैं। शराब के मामले में दकियानूसी चाहे जितनी भी हो मगर सच्चाई यह है कि राज्य सरकारों के कर राजस्व की 15 से लेकर 25 प्रतिशत तक की भरपाई शराब की ब्रिक्री से होती है। इसलिये शराबियों के परिवारों के लिये भले ही शराब एक अभिशाप हो मगर राज्य सरकारों की आर्थिकी के लिये यह एक बरदान है। पिछले 40 दिनों से शराब की बिक्री पर रोक के चलते अकेले दिल्ली राज्य को सेकड़ों करोड़ की चपत लग गयी है। राज्य के 2020-21 के बजट में आबकारी से 6,279 करोड़ का राजस्व मिलने का अनुमान लगाया गया था लेकिन अब दिल्ली सरकार ने यह लक्ष्य 5,480 करोड़ का पुनरीक्षित कर दिया है। राज्य को 40 दिन के लॉकडाउन में ही लगभग 654 करोड़ की राजस्व हानि होने का अनुमान है। पंजाब के बजट में शराब से प्रतिमाह 521 करोड़ का आबकारी राजस्व अनुमानित था। कर्नाटक ने लॉकडाउन के कारण प्रतिदिन के 50 करोड़ के हिसाब से कुल 2,050 करोड़ रुपये के आबकारी राजस्व का नुकसान होने का दावा किया है। उत्तराखण्ड में सर्वाधिक  कर राजस्व जुटाने वाले तीन विभागों में से एक आबकारी विभाग है।

शराबी से अधिक राज्य सरकारों को तलब

नशे से होने वाली हानियों से संविधान निर्माता अनविज्ञ नहीं थे। इसलिये उन्होंने संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 47 को रखा जिसमें कहा गया है कि राज्य अपने नागरिकों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने तथा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय और दवाओं के सेवन पर रोक लगाने का प्रयास करेगा। लेकिन राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल यह अनुच्छेद, शराब पर (उसके उपभोग पर) सीधे तौर पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, यह केवल राज्य को उस दिशा में प्रयास करने के लिए कहता है। ब्रिटिश शासन में भी आबकारी अधिनियम 1910 में भी कुछ ऐसी ही मिलती जुलती व्यवस्था थी। इसीलिये आज राज्य सरकारों के आबकारी विभागों का लक्ष्य मद्य निषेध न हो कर राजस्व वसूली ही रह गया है।

मदिरा प्रेमियों के लिए उपभोक्ता संरक्षण कानून कहाँ ?

एक अनुमान के अनुसार राज्य सरकारों ने वर्ष 2018-19 में प्रति माह शराब आबकारी से लगभग 12,500 करोड़ का और 2019-20 में 15,000 करोड़ का राजस्व अर्जित किया। राज्य सरकारों के 2019-20 के बजट में शराब आबकारी से लगभग 1.70 लाख करोड़ का राजस्व अनुमानित था। चालू वर्ष 2020-21 के वार्षिक बजटों में आन्ध्र प्रदेश, गुजरात और बिहार के अलावा देश के 16 अन्य बड़े राज्यों ने 1.65 लाख करोड़ के आबकारी कर राजस्व का लक्ष्य रखा हुआ है, जिसे हासिल करना अब बहुत दूर की कौड़ी लगता है। कर्नाटक के आबकारी विभाग के अनुसार राज्य में प्रतिदिन लगभग 65 करोड़ की शराब बिकती है। गुजरात और बिहार, मीजोरम और नागलैण्ड में पूर्ण मद्य निषेध लागू है। जबकि आन्ध्र प्रदेश में भी जगन्न रेड्डी द्वारा चुनाव के समय पूर्ण नशाबंदी की घोषणा की गयी थी, मगर सच्चाई से वास्ता पड़ने पर वहां सीमित बिक्री तक वायदा समिट गया। आंध्र प्रदेश ने इससे 2018-19 में 6,222 करोड़ का राजस्व कमाया, जबकि पूरे राज्य की कमाई 1,05,062 करोड़ रुपये थी। लेकिन विभाजन से राज्य पर 16 हजार करोड़ रुपये का कर्ज भी चढ़ गया था। देशभर में इस वर्ष 2 लाख करोड़ का आबकारी कर राजस्व हासिल करने का लक्ष्य है। लॉकडाउन के कारण इस लक्ष्य की प्राप्ति असंभव ही लग रही है। राज्यों के कुल कर राजस्व में शराब की बिक्री से मिलने वाले आकारी राजस्व का हिस्सा 15 से लेकर 25 प्रतिशत तक होता है। उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों के कुल कर राजस्व में शराब का अंशदान 20 प्रतिशत से अधिक आंका गया है। जबकि केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडू के कुल कर राजस्व में शराब की बिक्री से अर्जित कर राजस्व का योगदान 10 प्रतिशत से कम है। शराबी सरकारों की आमदनी के इतने बड़े श्रोत होने के बावजूद सरकारें उनका ध्यान नहीं रखतीं, जबकि उपभेक्ता कानून उन्हें संरक्षण देता है।

भारत में नशाबंदी कभी सफल नहीं हो सकी

इतिहास गवाह है कि है कि शराबबंदी भारत में लंबे वक्त तक नहीं चली। जीएसटी आने के बाद शराब से होने वाला राजस्व राज्य सरकारों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। मोरारजी देशाई के नेतृत्व में 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार केन्द्र में बनी थी तो राष्ट्रीय स्तर पर मद्य निषेध की नीति बनी थी जो कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे केवल उन राज्यों में लागू की गयी जहां जनता पार्टी की सरकारें बनीं थीं। लेकिन जनता पार्टी की सरकार के पतन के साथ ही मद्य निषेध भी चलता बना। वर्तमान में गुजरात, बिहार, मिजोरम और नागालैंड में पूर्ण रूप से शराबबंदी है। बिहार में 1977 से लेकर 1980 तक नशाबंदी रही जो कि अन्ततः विफल रही। हरियाणा ने भी 1996 में राज्य में शराबबंदी का प्रयोग किया था। लेकिन 1998 में इसे हटा लिया गया। अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि शराबबंदी के दौरान प्रदेश राजस्व के मामले में 1200 करोड़ रुपये पीछे चला गया। 1993 में आंध्र प्रदेश में भी शराबबंदी को लेकर प्रयोग किए गए। लेकिन सितंबर 1995 में सत्ता की चाबी चंद्रबाबू नायडू के हाथों में आई और 1997 में उन्होंने केवल 16 महीने पहले शराब पर लगाए गए प्रतिबंध को समाप्त कर दिया। शराब सरकार की आर्थिकी के लिये टॉनिक का काम तो करती ही है लेकिन अब बिना शराब के चुनाव भी नहीं लड़े जा सकते। एक मशहूर इटैलियन कहावत है कि ‘‘ शराब का एक पीपा जो चमत्कार कर सकता है वह संतो से भरा एक चर्च भी नहीं कर सकता”। मतलब यह कि आजकल सफलता की सीढ़ियां चढ़ने के लिये भी शराब मददगार होती है। इसीलिये एक अज्ञात शायर ने कहा है कि ‘‘ जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो’’

 

जयसिंह रावत

ई-11,फ्रेंड्स एन्कलेव, शाहनगर

डिफेंस कालोनी रोड, देहरादून।

Mobile-9412324999

jaysinghrawat@gmail.com

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