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आकाशगंगा जीएन-जेड11 की पेचीदा कहानी: गायब होते और फिर दिखते धूल के बादल

वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि 2 से 2.5 करोड़ वर्ष के टाइम स्‍केल पर धूल कणों की पट़्टी को फाड़ने के लिए तारों के निर्माण दर का एनर्जेटिक्स पर्याप्त था। उन्होंने यह भी दिखाया है कि यह एक अस्थायी घटना थी और सुपरनोवा विस्फोटों के तुरंत बाद इसकी शुरुआत हुई थी। इसके परिणामस्वरूप विस्तारित शेल सिकुड़ने लगा और करीब 50 से 80 लाख वर्ष के टाइम स्‍केल पर आकाशगंगा धुंधली हो गई।

Astronomers could soon be compelled to rethink the ways of formation and evolution of the earliest galaxies in our Universe. The latest spectroscopic results from GN-z11 — identified as one of the distant and early galaxies– has confirmed a complete absence of dust particles from its surroundings for an interim time period despite possessing a very high star formation rate. Astronomers intrigued by the absence of dust in GN-z11 have tried to unravel the mystery behind it. Scientists of the Raman Research Institute, an autonomous institute of the Department of Science and Technology (DST), have inferred the possible physical characteristics of the violent dynamical events that could have resulted in the destruction and evacuation of dust out of the galaxy on a relatively short time, making in transparent. Astronomers are now beginning to believe that many primeval galaxies could show similar opacity but have remained undetected. However, the study of high redshift galaxies could get more complex and exciting starting in the near future with better data generated by the recently launched James Webb Space Telescope.

Maps from left to right show the evolution of a patchy extinction distribution over the bubble’s front-side hemisphere.

 

By- Usha Rawat

खगोलविद जल्द ही हमारे ब्रह्मांड में शुरुआती आकाशगंगाओं के गठन और विकास के तरीकों पर नए सिरे से विचार करने के लिए मजबूर हो सकते हैं। काफी दूर मौजूद शुरुआती आकाशगंगाओं में से एक के रूप में पहचाने गए जीएन-जेड11 से प्राप्‍त ताजा स्पेक्ट्रोस्कोपिक नतीजों ने पुष्टि की है कि वहां तारों के निर्माण की दर काफी अधिक होने के बावजूद कुछ समय के लिए उसके आसपास के धूल कण नादारद थे।

तारों के निर्माण की प्रक्रिया और बाद में तारकीय विकास के दौरान अनिवार्य तौर पर भारी मात्रा में धूल कण उत्पन्न होते हैं। चारों ओर धूल कणों की एक मोटी परत मौजूद होने के कारण मेजबान आकाशगंगा कुछ हद तक अपारदर्शी बन जाता है। मगर, यह घटना जीएन-जेड11 आकाशगंगा के व्यवहार में नहीं दिखा जो खगोलविदों को अचंभित कर रहा है।

घने पदार्थ वाली एक कॉम्पैक्ट आकाशगंगा जीएन-जेड11 को पहली बार 2015 में हबल स्पेस टेलीस्कोप (एचएसटी) द्वारा खोजा गया था। जीएन-जेड11 में एक उच्च रेड शिफ्ट (जेड = 10.95 के ऑर्डर में) दिखता है।

इसका मतलब साफ है कि यह पृथ्वी से लगभग 32 अरब प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। हालांकि यह तभी से अस्तित्व में है जब बिग बैंग घटना के बाद ब्रह्मांड बमुश्किल 40 करोड़ वर्ष पुराना था। आश्चर्य की बात यह है कि जीएन-जेड11 ने पहले ही एक अरब सौर द्रव्यमान के तारों का निर्माण किया था। खगोलविदों के अनुसार, उसका यह व्यवहार बिल्‍कुल अलग है। इसके अलावा, जीएन-जेड11 के पास हमारी अपनी आकाशगंगा मिल्की वे का करीब 3 प्रतिशत तारकीय द्रव्यमान पहले से ही मौजूद था, जो ब्रह्मांड के 14 अरब वर्ष बाद उसके पास मौजूद है।

जीएन-जेड11 में धूल की अनुपस्थिति से चकित खगोलविदों ने इसके पीछे के रहस्य को जानने की कोशिश की है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने उन वायलेंट डायनेमिकल घटनाओं की संभावित भौतिक विशेषताओं का अनुमान लगाया है जिनके कारण अपेक्षाकृत कम समय में इस आकाशगंगा से धूल कण खत्‍म हुए होंगे और वह पारदर्शी बना होगा।

वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि 2 से 2.5 करोड़ वर्ष के टाइम स्‍केल पर धूल कणों की पट़्टी को फाड़ने के लिए तारों के निर्माण दर का एनर्जेटिक्स पर्याप्त था। उन्होंने यह भी दिखाया है कि यह एक अस्थायी घटना थी और सुपरनोवा विस्फोटों के तुरंत बाद इसकी शुरुआत हुई थी। इसके परिणामस्वरूप विस्तारित शेल सिकुड़ने लगा और करीब 50 से 80 लाख वर्ष के टाइम स्‍केल पर आकाशगंगा धुंधली हो गई।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्‍तपोषित रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट (आरआरआई) के वरिष्ठ प्रोफेसर बिमान नाथ ने अपने ताजा शोध पत्र में लिखा है, ‘यह सोचना बेहद आश्चर्यजनक है कि जीएन-जेड11 ने कब और कैसे इतनी अधिक मात्रा में गैस एकत्र की जो अंततः बड़े पैमाने पर तारे बनाने में खप गई और वह धूल कणों से मुक्त रही। और यह सब ऐसे समय में हुआ जब आकाशगंगा अस्तित्व में आई थी। उस समय हमारा ब्रह्मांड काफी नया यानी लगभग 42 करोड़ वर्ष पुराना था।’

अध्ययन में कहा गया है कि धूल कणों के बादलों के अस्थायी तौर पर गायब होने की घटना के कुछ संभावित कारण हैं इस प्रकार हो सकते हैं – सुपरनोवा विस्फोट से उल्टे झटके से धूल कणों का दबाव, सुपरनोवा के झटके से धूल का विनाश, अन्य तारकीय गतिविधियों द्वारा संचालित गैसीय प्रवाह द्वारा धूल की निकासी आदि। इसी तरह, धूल का आवरण दोबारा उभरने की घटना को जीएन-जेड11 के व्‍यापक गुरुत्वाकर्षण बल से जोड़ा जा सकता है।

प्रो. नाथ ने लेबेडेव फिजिकल इंस्टीट्यूट के अपने रूसी सहयोगियों इवगेनी ओ वासिलीव, सर्गेई ए. ड्रोज्डोव और यूरी ए. शचेकिनोव के साथ हवाई द्वीप के मौना केआ में स्थित केक टेलीस्कोप से प्राप्त पिछले पांच वर्षों के अवलोकनों का उपयोग किया। रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के मासिक नोटिस में हाल ही में ‘डस्ट-फ्री स्टारबर्स्ट गैलेक्सीज एट रेडशिफ्ट जेड एंड जीटी 10’ शीर्षक से प्रकाशित वर्तमान अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक नई संभावना कि उच्च रेडशिफ्ट वाली आकाशगंगाएं धूल रहित रह सकती हैं, को साबित करने के लिए जीएन-जेड11 द्वारा प्रदर्शित विषम गैलेक्टिक व्यवहार को समझने के लिए विशेष कंप्यूटर सिमुलेशन विकसित किए।

प्रोफेसर नाथ ने धूल के बादलों के लुप्त होने और फिर से उभरने की इस घटना को रुक-रुककर होने वाली एक ऐसी गतिविधि बताया जिसके बारे में पहले जानकारी नहीं थी। उन्‍होंने कहा, ‘2.5 से 3 करोड़ वर्षों के कंप्‍यूटिंग एवं सिमुलेटिंग डेटा, जिसके दौरान इस सुदूर आकाशगंगा के चारों ओर धूल कणों का स्तर नगण्य था और जिससे यह लगभग पारदर्शी दिखाई देता था, चुनौतीपूर्ण था।’

खगोलविद अब यह मानने लगे हैं कि कई पुरानी आकाशगंगाओं में भी समान अपारदर्शिता दिख सकती हैं लेकिन उनकी पहचान नहीं हो पाई। मगर, हाल ही में चालू हुए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से प्राप्‍त बेहतर डेटा के साथ निकट भविष्य में उच्च रेडशिफ्ट वाली आकाशगंगाओं का अध्ययन कहीं अधिक जटिल और रोमांचक हो सकता है। (  Input-Ministry of Science & Technology through PIB)

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