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आखिर धार्मिक स्थलों पर क्यों होती है भगदड़ और क्यों लगते हैं लाशों के ढेर

In our country, there is a long history of stampedes and large-scale loss of life at religious places. Despite this, the trend continues instead of learning from the past. A recent example of such a stampede is the one at the Tirumala Tirupati Devasthanam, which serves as an important lesson for the upcoming Kumbh Mela in Prayagraj. It is expected that the authorities will ensure strict crowd control measures in Prayagraj, so that this grand event, which is expected to see participation from several crores of devotees, can be carried out smoothly and peacefully. Organizers must remember that gathering a crowd is not the most important task; ensuring the safety and comfort of that crowd is. This is especially significant as large-scale religious events, like the Kumbh Mela, involve millions of people from across the country and even abroad. Hence, effective crowd management and safety protocols are crucial to avoid any untoward incidents.–JSRawat

 

जयसिंह रावत

हमारे देश में धार्मिक स्थलों पर भगदड़ और बड़ी संख्या में जनहानि का एक लम्बा इतिहास है, फिर भी अतीत से सबक लेने के बजाय यह सिलसिला निरन्तर जारी है। धार्मिक स्थलों पर भगदड़ का ताजा उदाहरण तिरुमला तिरुपति देवस्थानम का है जो कि प्रयागराज महाकुम्भ के लिये एक बहुत बड़ा सबक है। उम्मीद की जानी चाहिये कि प्रयागराज में भीड़ नियंत्रण के पुख्ता इंतजाम होंगे ताकि यह महाआयोजन जिसमें कई करोड़ श्रद्धालुओं ने भाग लेना है, निष्कंटक सुख-शांतिपूर्वक सम्पन्न हो जाय। आष्योजकों को ध्यान रखना चाहिये कि भीड़ जुटाने से बड़ी बात भीड़ को सुरक्षित और सहज रखना है।

धार्मिक स्थलों पर भगदड़ का लम्बा इतिहास

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो भारत में धार्मिक स्थलों पर और खास कर कुम्भ मेलों में, भगदड़ की घटनाएं कई बार घटी हैं। उदाहरण के लिए, 1820 में हरिद्वार में कुंभ मेले के दौरान 430 लोगों की जान गई थी। 1906 और 1986 में इलाहाबाद के कुंभ मेले में भी दर्जनों श्रद्धालुओं की मृत्यु हुई। 1954 में इलाहाबाद कुंभ मेले में सबसे भयावह भगदड़ हुई थी, जिसमें 500 से 800 श्रद्धालु मारे गए और 1000 से अधिक घायल हुए। अन्य उल्लेखनीय घटनाओं में 2013 का इलाहाबाद कुंभ मेला, जहां रेलवे स्टेशन पर 36 लोग मारे गए थे, और 2008 का नैना देवी मंदिर हादसा, जिसमें 146 लोगों की मृत्यु हुई थी।

भगदड़ हादसों का सिलसिला जारी

हाल ही में, 8 जनवरी 2025 को तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर मंदिर में भगदड़ की घटना हुई, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हो गई और 40 से अधिक घायल हो गए। इससे पहले, 2022 में वैष्णो देवी मंदिर में हुई भगदड़ में 12 लोग मारे गए थे। 2016 में केरल के पुत्तिंगल देवी मंदिर में एक बड़े हादसे में 106 लोगों की मौत हुई और 383 घायल हुए। इसी प्रकार, 2013 में रतनगढ़ माता मंदिर, मध्य प्रदेश में हुई भगदड़ में 115 श्रद्धालु मारे गए और 110 से अधिक घायल हो गए। 2016 में उज्जैन सिंहस्थ कुम्भ मेला और 2008 में जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में भी ऐसी घटनाएं हुईं। हाथरस के बालाजी मंदिर में भी 2017 में भगदड़ की एक घटना हुई थी, जिसमें कई लोग घायल हुए। यह घटना प्रशासन और मंदिर प्रबंधन की लापरवाही का परिणाम थी, जहां भीड़ नियंत्रण के पर्याप्त उपाय नहीं किए गए थे। ऐसी घटनाएं स्पष्ट रूप से यह दर्शाती हैं कि भीड़ प्रबंधन और आपातकालीन सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है।

45 करोड़ स्नानार्थियों के महाकुम्भ में पहुंचने की उम्मीद

पत्र सूचना कार्यालय भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के अनुमानों के अनुसार महाकुम्भ 2025 में लगभग 45 करोड़ स्नानार्थियों के पहुंचने की संभावना है। ऐसे महाआयोजन में इतनी अधिक भीड़ प्रबंधन और सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य है। तिरुपति और अन्य घटनाओं से सीखे गए सबक का उपयोग इस आयोजन की सफलता सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है। सबसे पहले, प्रशासन को एक समग्र भीड़ प्रबंधन योजना तैयार करनी चाहिए। भीड़ के प्रवाह का विस्तृत आकलन और उन्नत तकनीकों जैसे एआई-आधारित निगरानी और रीयल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग भीड़ नियंत्रण में सहायक हो सकता है।

भीड़ नियंत्रण के कुछ जरूरी उपाय

अस्थायी पुलों का निर्माण, चौड़े मार्गों की व्यवस्था, और आपातकालीन वाहनों के लिए समर्पित लेन का निर्माण जैसी अवसंरचना सुधार भीड़ प्रबंधन में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, एक मजबूत संचार प्रणाली का होना भी अत्यंत आवश्यक है। पब्लिक अनाउंसमेंट सिस्टम के माध्यम से स्पष्ट निर्देश दिए जा सकते हैं। मोबाइल ऐप, एसएमएस और सोशल मीडिया का उपयोग करके बहुभाषी संदेश प्रसारित किए जा सकते हैं।

भीड़ प्रबंधन के कुछ मुख्य उपाय इस प्रकार हो सकते हैंः

  • प्लानिंग और सिमुलेशनः बड़े आयोजनों से पहले संभावित भीड़ के प्रवाह का आकलन करना और मॉक ड्रिल्स के माध्यम से व्यवस्थाओं का परीक्षण करना।
  • स्पष्ट यातायात प्रवाहः श्रद्धालुओं के लिए एकतरफा मार्ग और इमरजेंसी वाहनों के लिए समर्पित रास्तों की व्यवस्था।
  • टेक्नोलॉजी का उपयोगः सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन और एआई आधारित मॉनिटरिंग सिस्टम का उपयोग भीड़ को नियंत्रित और ट्रैक करने के लिए।
  • आपातकालीन सेवाएंः प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, एंबुलेंस और प्रशिक्षित रैपिड रिस्पांस टीम की तैनाती।
  • शिक्षा और जागरूकताः श्रद्धालुओं को सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपात स्थितियों में प्रतिक्रिया के तरीकों के बारे में शिक्षित करना।
  • स्वयंसेवकों की भागीदारीः स्थानीय स्वयंसेवकों और सुरक्षा कर्मियों को भीड़ प्रबंधन में प्रशिक्षित करना

 

सफल आयोजन के लिए सरकारी निकायों, मंदिर प्रबंधन, स्थानीय पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। स्वयंसेवकों को भीड़ मनोविज्ञान और प्राथमिक चिकित्सा का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे आपात स्थिति में प्रभावी ढंग से मदद कर सकें।

जन जागरूकता भी बहुत जरूरी

श्रद्धालु अक्सर भीड़भाड़ को आध्यात्मिक अनुभव का हिस्सा मानते हैं और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करने में हिचकिचाते हैं। इस मानसिकता को बदलने के लिए जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है, जो यह समझाएं कि सामूहिक सुरक्षा व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर निर्भर करती है। इस बात को समझाना जरूरी है कि थोड़ी सी सतर्कता और अनुशासन अनगिनत जानों को बचा सकता है। महाकुंभ 2025, अपने पैमाने के कारण, सुरक्षा और समावेशिता के लिए एक वैश्विक मानक स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है। अगर हम तिरुपति त्रासदी और अन्य घटनाओं से सबक लेकर नवाचार को अपनाएं, तो हम न केवल मानव जीवन की रक्षा कर सकते हैं बल्कि धार्मिक आयोजनों की गरिमा और महत्व को भी बनाए रख सकते हैं। धार्मिक आयोजनों का उद्देश्य आध्यात्मिकता और शांति का अनुभव करना है, न कि भय और अव्यवस्था का सामना करना।

केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं सुरक्षा की

तिरुपति और अन्य घटनाएं हमें चेतावनी देती हैं कि भीड़ प्रबंधन में लापरवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। महाकुंभ 2025 की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि हम कितनी कुशलता से इन सबक को लागू कर पाते हैं। यह केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर श्रद्धालु का दायित्व है कि वे नियमों का पालन करें और दूसरों की सुरक्षा का ध्यान रखें। धार्मिक आयोजनों को भयमुक्त और सुरक्षित बनाना ही सच्ची आस्था का प्रतीक है

  (नोट : जयसिंह रावत पत्रकार और लेखक हैं साथ ही उत्तराखंड हिमालय पोर्टल के  मानद /अवैतनिक सम्पादकीय सहयोगी भी हैं. जनहित और समाजहित में वह कुछ अन्य पत्रकारों और लेखकों के साथ ही इस पोर्टल को निशुल्क सेवाएं देते हैं. -एडमिन )

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