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ट्रम्प सरकार दूसरी बार – अमेरिका फर्स्ट पहली प्राथमिकता बता दी

परम्परानुसार अमरीका के 47 वें राष्ट्रपति के तौर पर डोनाल्ड ट्रम्प ने 20 जनवरी शपथ ले ली है। इस शपथ ग्रहण समारोह पर सरी दुनियाँ  की नज़र टिकी हुयी थी। सर्वाधिक कोतुहल ट्रम्प के पहले भाषण को लेकर था। चूंकि इस एक ध्रुवीय विश्व राजनीति में अमेरिका अकेला मठाधीश रह गया है जिसकी नीतियाँ विश्व राजनीति को प्रभावित करती हैं,  इसलिए सारा  विश्व ट्रम्प के पहले भाषण को सुनने और उनकी नीतियों को जानने के लिए लालायित था । आपने  इस  उद्घाटन भाषण में उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” की नीति का जोरदार समर्थन किया। यह भाषण न केवल अमेरिका के भीतर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बड़ी चर्चा का विषय बना। इस भाषण ने यह स्पष्ट कर दिया कि ट्रम्प प्रशासन का ध्यान अमेरिका के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने पर होगा। उनके शब्दों में अमेरिका को एक नई दिशा में ले जाने का इरादा झलक रहा था, जिसमें वैश्विक सहयोग से अधिक आत्मनिर्भरता और आर्थिक राष्ट्रवाद पर जोर दिया गया।

ट्रम्प ने अपने भाषण में कहा कि उनकी प्राथमिकता अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा, उद्योगों के पुनरुत्थान और विदेशी व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार होगी। उन्होंने खुले तौर पर यह ऐलान किया कि अमेरिका अब केवल अपने हितों को प्राथमिकता देगा और उन समझौतों से दूरी बनाएगा जो “अमेरिकी लोगों” के लिए नुकसानदायक हैं। यह भाषण उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति का घोषणापत्र था, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सुरक्षा व्यवस्थाओं को लेकर कई सवाल खड़े किए।

भारत के लिए इस भाषण और ट्रम्प की नीति के निहितार्थ बहुआयामी थे। सबसे पहले, “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत ट्रम्प प्रशासन ने H-1B वीज़ा जैसे कार्यक्रमों को सख्त बनाने की दिशा में कदम उठा ने का संकल्प जताया है।  यह नीति भारतीय आईटी पेशेवरों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरेगी, क्योंकि अमेरिका में काम करने वाले भारतीय पेशेवरों का एक बड़ा वर्ग इन वीज़ा कार्यक्रमों पर निर्भर है। इसके अलावा, अमेरिका के व्यापार समझौतों पर पुनर्विचार और आयात पर जोर ने भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों को भी प्रभावित  करेगा।

हालांकि, ट्रम्प प्रशासन के कुछ फैसले भारत के लिए सकारात्मक भी हो सकते है । चीन के प्रति ट्रम्प का आक्रामक रुख भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर साबित  ही सकता है। ट्रम्प ने चीन के साथ ट्रेड वार का संकेत और उसकी विस्तारवादी नीतियों को चुनौती  है। यह भारत के लिए एक अनुकूल स्थिति  हो सकती है, क्योंकि चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका और भारत के बीच रणनीतिक सहयोग  बढ़ेगा। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका की बढ़ती भागीदारी और रक्षा समझौतों के माध्यम से भारत को सहायता दोनों देशों के संबंधों को और प्रगाढ़ बनायेगा।

इसके विपरीत, पिछले कार्यकाल में ट्रम्प का पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने का निर्णय भारत और अन्य देशों के लिए चिंता का विषय बना। यह कदम वैश्विक जलवायु परिवर्तन नीतियों के लिए एक बड़ा झटका था। भारत को न केवल अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को और मजबूत करना पड़ा, बल्कि विकसित और विकासशील देशों के बीच जलवायु वित्तपोषण को लेकर असमंजस की स्थिति भी उत्पन्न हुई।

ट्रम्प के भाषण का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरी विश्व व्यवस्था पर इसका व्यापक प्रभाव  पड़ेगा। बहुपक्षीय संस्थाओं जैसे WTO, संयुक्त राष्ट्र, और NATO को लेकर ट्रम्प की आलोचनात्मक सोच ने इन संस्थाओं की भूमिका को कमजोर किया। अमेरिका, जो दशकों से इन संस्थाओं का नेतृत्व करता आया था, अब एक अलगाववादी रुख अपनाता नजर आया। इससे वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव हुआ और अन्य महाशक्तियों जैसे चीन और रूस को अपनी भूमिका बढ़ाने का अवसर मिला।

यूरोप पर भी ट्रम्प के भाषण और नीतियों का गहरा प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने यूरोपीय देशों से NATO में अपने रक्षा खर्च बढ़ाने की मांग की, जिससे पारंपरिक अमेरिकी-यूरोपीय गठबंधन में दरारें पड़ने लगीं। इससे न केवल यूरोप की सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित हुई, बल्कि वैश्विक सुरक्षा संतुलन भी कमजोर हुआ।

चीन-अमेरिका टकराव ने एशिया में एक नई भूराजनीतिक स्थिति पैदा की। ट्रम्प ने चीन के व्यापारिक और सैन्य विस्तार पर कड़ा रुख अपनाया, जिससे एशिया में शक्ति संतुलन बदलने लगा। इस स्थिति में भारत को एक बड़ी भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा। अमेरिका ने भारत के साथ अपने रक्षा और आर्थिक संबंधों को और मजबूत किया, जिससे क्षेत्र में भारत की स्थिति को बल मिला।

हालांकि, ट्रम्प की नीतियों ने भारत के लिए कई चुनौतियां भी पैदा कर सकती हैं । H-1B वीज़ा की सख्ती के कारण भारतीय आईटी क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, ट्रम्प का “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण भारत के व्यापारिक हितों के लिए बाधा बन सकता था, क्योंकि उन्होंने भारतीय उत्पादों पर भी आयात शुल्क बढ़ाने का संकेत दिया।

कुल मिलाकर, ट्रम्प का उद्घाटन भाषण और उनकी नीतियां वैश्विक व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित  होगा। उन्होंने पारंपरिक सहयोगी संबंधों और वैश्विक नेतृत्व की भूमिका पर सवाल उठाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में नई चुनौतियां और अवसर उत्पन्न हुए। भारत के लिए यह स्थिति जटिल लेकिन संभावनाओं से भरी है। जहां एक ओर चीन के प्रति ट्रम्प का आक्रामक रुख और रक्षा सहयोग लाभप्रद था, वहीं वीज़ा प्रतिबंध और व्यापारिक सख्ती ने भारत को नई रणनीतियों पर विचार करने के लिए मजबूर होगा।

ट्रम्प का “अमेरिका फर्स्ट” दृष्टिकोण एक नई प्रकार की वैश्विक व्यवस्था की शुरुआत होगी, जिसमें सहयोग की बजाय प्रतिस्पर्धा को प्राथमिकता दी गई। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नीति का दीर्घकालिक प्रभाव भारत और विश्व व्यवस्था पर कैसा रहेगा।

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