अटल आत्मा जब तुम्हारी …
अटल आत्मा जब तुम्हारी …
– डॉ. राजेश्वर उनियाल
अटल आत्मा जब तुम्हारी,
देह से निकली होगी,
कहीं कोने में बैठ हमारी,
भारत मां भी रोई होगी।
शोकाकुल हुआ यह लोक,
परलोक तुम्हारे जाने से,
उत्साह उमंग से भरा होगा,
वह लोक तुम्हारे आने से।
लौ दीपक की मंद हो रही,
कमल भी मुरझाने लगा,
अटल तुम्हारे जाने से,
सावन भी झुलसाने लगा ।
अवध के राम व्रज के कान्हा,
तुम नंदन इस माटी के,
मानव से अवतार बने,
तुम गंगा सागर मरू घाटी के ।
ओजस्वी वक्ता प्रखरनेता,
व्यक्तित्व तुम्हारा निर्मल था,
माथे पर ललाट लिए,
कवि हृदय तुम्हारा कोमल था।
अखण्ड भारत की ज्योत जला,
जो राह तुमने दिखाई है,
करेंगे साकार पूरा सपना,
हमने कसम अब खाई है ।
जन्म दिया जिस मां ने तुम्हें,
धन्य वो माता कहलाएगी,
पर अटल तुमको खोने से,
भारतमाता कुम्हलाएगी ।
याद में तुम्हारे डूब सभी,
तुमको हैं आज पुकार रहे,
देखने तुम्हारी फिर छवि,
सब आसमां को निहार रहे ।
अटल आत्मा जब तुम्हारी,
देह से बाहर निकली होगी,
कहीं कोने में बैठ हमारी,
भारत मां भी रोई होगी।