पुस्तक समीक्षा : : गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां – पूर्वजों के योगदान का स्मरण
—दिनेश शास्त्री–
विनसर पब्लिकेशन देहरादून ने गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां पुस्तक का तीसरा संस्करण प्रकाशित कर एक अभिनव प्रयास किया है। इस संस्करण का संपादन किया है इतिहासकार डॉ. योगेश धस्माना ने। मंगलवार को दून लाइब्रेरी में आयोजित समारोह में उत्तराखंड के मनीषियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालने वाली इस कृति का लोकार्पण किया गया। गढ़वाल के इतिहास का सुगमता से बोध करवाने का यह अत्यंत आधारभूत उपक्रम कहा जा सकता है।
उत्तराखंड के गांधीवादी नेता और प्रखर विचारक ही नहीं बल्कि केंद्र में अपनी तरह के अकेले मंत्री रहे भक्त दर्शन जी की इस कृति को बेहद सलीके से संवारा गया है। भक्त दर्शन जी के बारे में खुद डॉ. धस्माना लिखते हैं कि वे उत्तराखंड की राजनीति के संत और अजातशत्रु थे। निसंदेह जो बड़ी लकीर उन्होंने खींची, उसका अनुसरण करता आज कोई भी राजनीतिज्ञ नहीं दिखता। आज जबकि राजनीति से जुड़े लोग पद पर रहते हुए ही मृत्यु की कामना करते हैं, भक्त दर्शन जी अकेले ऐसे नेता हुए हैं जो खुद समय रहते राजनीति से संन्यास लेकर दूसरों को मौका देने के पक्षधर थे और उन्होंने ऐसा सिर्फ कहा नहीं, बल्कि करके भी दिखाया। आज हम देखते हैं कि राजनीति में सक्रिय लोग पद छोड़ने को तैयार नहीं दिखते, उसके विपरीत भक्तदर्शन जी राजनीति से सेवानिवृत्ति का आह्वान करते दिखे। खैर इस विषय पर फिर कभी बात करेंगे। आज प्रश्नगत पुस्तक पर ही चर्चा केंद्रित रखना समीचीन होगा।
भक्तदर्शन जी ने गढ़वाल की दिवंगत विभूतियां शीर्षक पुस्तक के खुद दो संस्करण प्रकाशित किए थे। योगेश धस्माना ने उनकी पुत्री मीरा चौहान और कीर्ति नवानी के साथ उनके इस गुरुत्तर कार्य को आगे बढ़ाया है।
निसंदेह भक्तदर्शन जी ने पहले संस्करण में उपलब्ध सामग्री को जस का तस प्रकाशित किया था। तब साल था 1952 का जबकि इस पुस्तक की तैयारी उन्होंने उससे करीब एक दशक पहले कर दी थी लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन के चलते उन्होंने इस योजना को तब लंबित रख दिया था। 1980 में इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ लेकिन तब से अब तक गंगा जी में बहुत सारा पानी बह चुका है। अनेक स्वतंत्रता सेनानी और महान विभूतियां इस दुनिया से विदा हो चुकी हैं, लिहाजा उनका स्मरण किया जाना भी स्वाभाविक और आवश्यक था। इस पुस्तक में महाराजा कनकपाल जिन्हें गढ़वाल में पाल वंश का संस्थापक माना जाता है, उनके जीवन वृतांत से शुरू किया गया विवरण प्रकांड ज्योतिषी चक्रधर जोशी जी के कृतित्व तक समेटा गया है। ग्रंथ में महाराजा अजयपाल, बलभद्र शाह, मोलाराम तोमर, सुदर्शन शाह, गढ़ू सुम्याल, माधोसिंह भंडारी, राजमाता कर्णावती, तीलू रौतेली, पंथ्या दादा, पुरिया नैथानी, लाट सूबेदार बलभद्र सिंह नेगी, घनानंद खंडूड़ी, तारादत्त गैरोला, डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल, महावीर त्यागी, वीसी गबर सिंह, चंद्र सिंह गढ़वाली, डॉ. कुशलानंद गैरोला, प्रथम ग्रेजुएट गोविंद प्रसाद घिल्डियाल, सूबेदार दरबान सिंह नेगी, वजीर हरिकृष्ण रतूड़ी, हरिकृष्ण दौर्गादत्ती, भवानी दत्त थपलियाल, कोतवाल सिंह नेगी, छवाण सिंह नेगी, श्री राम शर्मा प्रेम, राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, हुलास वर्मा, मेजर हर्षवर्धन बहुगुणा, शहीद नागेंद्र सकलानी, डॉ. दुर्गा प्रसाद डबराल जैसे तमाम महान सपूतों का जीवन परिचय संग्रहीत किया गया है। इसके अलावा 90 महानुभावों का संक्षिप्त विवरण देकर उस कमी को दूर किया गया है, जो पिछले दो संस्करणों में रह गई थी।
कहना न होगा कि यह बेहद श्रमसाध्य कार्य था, जिसे भक्त दर्शन जी ने बखूबी सिरे चढ़ाया और अब योगेश धस्माना और भक्त दर्शन जी की सुपुत्री ने किया इसे आगे बढ़ाया है। इसके अतिरिक्त जिलेवार संक्षिप्त उल्लेख अलग से किया गया है। करीब 520 पृष्ठों के इस ग्रंथ का मूल्य 499 रुपए रखा गया है। निसंदेह विनसर पब्लिशिंग कंपनी का यह गौरवशाली प्रकाशन अध्येताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तो है ही, जिज्ञासुओं के लिए भी एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। इससे बढ़ कर यह अपने समय के इतिहास का दस्तावेज भी है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि गढ़भारती के योग्य सुपुत्र योगेश धस्माना ने एक तरह से पितरों का तर्पण किया है। कहना न होगा कि इस ग्रंथ में जितने महापुरुषों का वर्णन है, उन सबका उत्तराखंड और खासकर गढ़वाल के लिए किसी न किसी रूप में बड़ा योगदान है। इस तरह कहा जा सकता है कि नई पीढ़ी के लिए इसके अध्ययन से जहां इतिहास का बोध होगा वहीं पूर्वजों पर गर्व भी होगा।
एक तरह से गढ़वाल के हर हिस्से में किसी न किसी महापुरुष के योगदान का सांगोपांग विवरण जुटाया गया है। पिछले दोनों संस्करणों में तिथि क्रम में कुछ त्रुटियां रेखांकित हुई थी, संभवत: फर्स्ट हैंड इनफॉर्मेशन के कारण ऐसा हुआ हो, तृतीय संस्करण में उन त्रुटियों को दूर कर दिया गया है। एक बात यह खटकती जरूर है कि जिस भूभाग के प्रति पूरी दुनिया नतमस्तक होती है यानी केदार घाटी, वहां के सिर्फ बचन राम गैरोला (कंडारा) और विशाल मणि शर्मा ( घघोरा) के अलावा अन्य विभूतियों को जगह नहीं मिल पाई जबकि शेर सिंह शाह, पुरुषोत्तम बगवाड़ी, विशंभर दत्त सेमवाल जैसे तमाम लोगों का विवरण छूट सा गया है। अगले संस्करण में इसकी क्षतिपूर्ति की अपेक्षा की जाती है। पितरों के तर्पण में अगर कोई छूट जाता है तो उनके रूष्ट होने की आशंका भी रहती है। लिहाजा योगेश धस्माना जी से ऐसी विनम्र अपेक्षा रखना अनुचित भी नहीं होगा।