चारधाम यात्रा की अव्यवस्थाएं अज्ञात भय से डराने लगी अभी से
–दिनेश शास्त्री
चारधाम यात्रा शुरू हो गई है। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के बाद यात्रियों का रेला भी आने लगा है। सरकार की ओर से इस यात्रा के लिए चाक चौबंद व्यवस्था की बात की जा रही थी लेकिन शुरुआत में ही निराशा के बादल डराने भी लगे हैं। एक बुरी खबर केदारनाथ से आ रही है जहां भारी संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से अव्यवस्था चरम पर है। अकेले बीते हफ्ते वहां एक दिन 13 हजार तो दूसरे दिन 16 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे। जाहिर है वहां न लोगों को ठहरने का इंतजाम हो पाया, न दर्शन की व्यवस्था हुई। वैसे तो पर्यटन विकास परिषद ने टोकन की व्यवस्था करने का दावा किया था लेकिन उम्मीद से अधिक लोगों के धाम में पहुंचने पर दर्शन, पूजन, निवास और भोजन की सारी व्यवस्थाएं धरी रह गई। जिन दामों पर वहां सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं, वह कम से कम आपदा में अवसर जैसा ही लग रहा है।
वैसे यात्रा शुरू होने से पहले सरकार ने पंजीकरण की निश्चित व्यवस्था करने का मन बनाया था लेकिन यात्रा व्यवसाय से जुड़े लोगों के तीव्र विरोध के कारण सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा और नतीजा आज सामने है।
केदारनाथ धाम में इन दिनों ठीक वैसी ही लूट शुरू हो गईं है जैसी 2013 की आपदा से पहले हुई थी। अगर एक रात्रि के लिए कमरे का किराया दस हजार रुपए वसूला जाने लगेगा तो बाबा केदार क्या रौद्र रूप लेंगे, इसका अहसास तक करने को लोग तैयार नहीं दिख रहे हैं। यह मानने में कोई संकोच नहीं है कि पर्यटन जैसे क्षेत्र में मांग और आपूर्ति का गणित लागू होता है लेकिन उसकी भी एक सीमा होनी चाहिए। वरना लुट पिट कर कोई श्रद्धालु निराश होकर उत्तराखंड से लौटे तो यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी हो जाती है कि देवभूमि की अस्मिता का क्षरण न होने दें। यात्रा की शुरुआत में ही जो संदेश जा रहा है, वह कष्टदायक ही है।
पुराने लोग बताते हैं कि वर्ष 2013 की आपदा से पहले भी कुछ इसी तरह का माहौल था। वस्तुओं के दाम तब भी आसमान छू रहे थे, आज जब हम फिर वही मंजर देख रहे हैं तो अतीत के जख्म फिर ताजा होने लगे हैं। उत्तराखंड में अतिथि को भगवान माना जाता है, फिर ये उत्तराखंड को बदनाम करने वाले कहां से आ गए? इस व्यवस्था को कौन देखेगा।
वैसे मंदिर समिति की ओर से कोशिश की जा रही है कि जो भी बाबा के दर पर आया है, उसे दर्शन लाभ जरूर होने चाहिए, उसके लिए दर्शन का समय भी बढ़ाया जा रहा है। खुद बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का कहना है कि हर श्रद्धालुओं को दर्शन सुलभ हों, इस बात का ध्यान पहले दिन से रखा जा रहा है।
आज जरूरत इस बात की है कि यात्रा मार्ग पर खाने पीने की वस्तुओं और ठहरने की व्यवस्थाओं के लिए प्रशासन न्यूनतम और अधिकतम दरें निर्धारित कर दे। यह काम जिला प्रशासन का है और उसे करना भी चाहिए। निसंदेह मोटर मार्ग से उच्च हिमालयी क्षेत्र में वस्तुओं को पहुंचाना आसान नहीं है, वहां खाने पीने की वस्तुओं के दाम ज्यादा होने स्वाभाविक हैं लेकिन दाम इतने ज्यादा भी न हों कि कोई भी मानक शरमा जाए। फिर सवाल यही खड़ा होता है कि आखिर जिला प्रशासन कर क्या रहा है?