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मुख्यमंत्री धामी ने दिए खलंगा मेला आयोजन समिति को 5 लाख रुपए

देहरादून, 1 दिसंबर।  मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने रविवार को सागरताल नालापानी, देहरादून में बलभद्र खलंगा विकास समिति द्वारा आयोजित ‘50वाँ खलंगा मेला’ में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने खलंगा मेला आयोजन समिति को 5 लाख रुपए दिए जाने की घोषणा की।  ‘50वाँ खलंगा मेला स्मारिका’ का विमोचन भी मुख्यमंत्री द्वारा किया गया।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने संबोधन में कहा कि खलंगा मेला पूर्वजों की वीरता और अदम्य साहस को स्मरण करने का अवसर है। उन्होंने महान सपूत सेनानायक कुंवर बलभद्र थापा और उनके वीर साथियों, वीरांगनाओं को भी नमन किया। उन्होंने कहा खलंगा की वीरभूमि में वर्ष 1814 के एंग्लो-गोरखा युद्ध में सेनानायक कुंवर बलभद्र थापा और उनके वीर सैनिकों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इस युद्ध में कुंवर बलभद्र थापा और उनके वीर सैनिकों ने ब्रिटिश सैनिकों की विशाल सेना का सामना करते हुए अपनी वीरता और रणनीतिक कौशल से ब्रिटिश सेना को खदेड़ दिया था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ये युद्ध हमारे वीर गोरखा योद्धाओं के अदम्य साहस और मातृभूमि के प्रति उनके असीम प्रेम का प्रतीक है, जो हमेशा हमें देशभक्ति की प्रेरणा देता रहेगा। खलंगा की गाथा हमारे वीर पूर्वजों के अप्रतिम साहस का  एवं हमारी गौरवशाली विरासत का प्रतीक है। उन्होंने कहा ये मेला हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को सहेजते हुए उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का भी एक  माध्यम है। हमारे देश की ऐतिहासिक धरोहरें हमारे गौरवमयी अतीत की पहचान होने के साथ हमारे संस्कृति रूपी वट वृक्ष की मजबूत जड़ें भी हैं।
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NOTE; 
गौरतलब है कि1814 के खलंगा युद्ध में, जो देहरादून के पास हुआ था, नेपाल के जनरल बलभद्र थापा को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं ने हराया था। ब्रिटिश सैनिकों का नेतृत्व मेजर जनरल जॉन मैल्कम और लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रैडशॉ ने किया था। बलभद्र थापा की आततायी नेपाली सेना की बहादुरी के सम्मान में स्वयं विजयी  ईस्ट इंडिया कंपनी के  मेजर जनरल जॉन मैल्कम ने बनवाया था।  यह स्मारक  दुश्मन सेना की भी  बहादुरी को सम्मान देने की महान परम्परा का प्रतीक है. लेकिन दूसरी और नेपाली सेना ने गढ़वाल और कुमाऊँ में उस दौरान जो भयंकर अत्याचार किये उनकी मिसाल आज भी **गोरख्याणी** के  तौर पर पुकारी जाती है। उस दौरान गोरखा सेना के शासन में हरिद्वार की हरी की पैड़ी पर गढ़वाली बच्चे, बूढ़े, जवान और औरतों को बेचने की मंडी लगती थी।  इतिहास बताता है की उस दौरान गोरखा सेना ने 2  लाख गढ़वालियों को  हरि की पैडी  पर बेचा था।  गोरख्याणी के डर से गांव खाली हो गए थे।   लोग जंगलों में छिप  जाया करते थे। ऐसे अत्याचार गैर हिन्दू आक्रमणकारियों ने भी देश के अन्य हिस्सों में नहीं किये.  

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