मणिपुर पर कविता जोशी की दो वृतचित्र फिल्मों का प्रदर्शन
–uttarakhandhimalaya.in —
देहरादून, 4 जून। दून लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर में गत सायं कविता जोशी की दो फिल्में ‘टेल्स फ्रॉम द मार्जिन्स’ और ‘सम रूट्स ग्रो अपवर्ड्स’ का प्रदर्शन पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में किया गया।
इस अवसर पर श्री एस के दास, श्री निकोलस, डॉ अतुल शर्मा, सुश्री कमला पंत, बीजू नेगी, सुंदर सिंह बिष्ट, डॉ मनोज पंजानि, अरुण कुमार असफल व भूमेश भारती के अलावा दून के फ़िल्म प्रेमियों, रंगमंच से जुड़े कलाकारों, पुस्तकालय के युवा पाठक सदस्यों व अन्य लोग इस अवसर पर मौजूद रहे। कुल पिचहत्तर मिनट की अवधि की इन फ़िल्मों के प्रदर्शन के बाद फ़िल्म निर्देशक शाश्वती तालुकदार ने फ़िल्म के विषयवस्तु पर विस्तार से चर्चा की। इस दौरान सभागार में मौजूद दर्शकों ने इन फिल्मों से जुड़े सवाल-जवाब भी किये।
टेल्स फ्रॉम द मार्जिन्स
दरअसल यह फ़िल्म मणिपुर की सड़कों पर सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन विरोध कर रही स्त्रियों की कहानी बयां करती है। 6 सालों से अधिक समय से एक युवती न्याय की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठी है जिसे गिरफ़्तार करके रखा जाता है और जबरन उन्हें कई तरह से प्रताड़ित किया जाता है।
टेल्स फ्रॉम द मार्जिन्स फ़िल्म न्याय की मांग के लिए संघर्षरत मणिपुरी स्त्रियों के असाधारण विरोध का एक दस्तावेज है जिसके लिए यह फ़िल्म भारत के इस सुदूरवर्ती इलाके की यात्रा करती है। सही मायने में यह फ़िल्म इनके संघर्षमय जीवन के जरिये एक वृहत मानवीय त्रासदी पर लोगों का ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करती है।
सम रूट्स ग्रो अपवर्ड्स
इस फ़िल्म की शूटिंग मणिपुर के इम्फाल शहर में हुई है, जो हिंसा और उग्रवाद से प्रभावित है। फ़िल्म की पृष्ठभूमि सुपरिचित रंगमंच निर्देशक रत्तन थियाम के काम की पड़ताल करती है।
पिछले 25 से अधिक सालों से रत्तन थियाम एक ऐसा थिएटर बना रहे हैं जो दिखने में उतना ही सम्मोहक है जितना कि बौद्धिक रूप से उत्तेजक है। उनका थिएटर उनके गृह राज्य मणिपुर की पारंपरिक प्रदर्शन कलाओं से युक्त है। एक ओर उनके सौंदर्य संबंधी प्रभाव पारंपरिक दिखाई देते हैं, वहीं उनकी चिंताएं बेहद आधुनिक हैं।
उनके नाटक इस क्षेत्र में व्याप्त सामाजिक-राजनीतिक संकट, युवा अशांति, युद्ध और हिंसा को प्रतिबिंबित करते हैं।
कविता जोशी एक परिचय
कविता जोशी एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता और मीडिया ट्रेनर हैं। ये एफटीआईआई पुणे से प्रशिक्षण प्राप्त हैं। उनकी फिल्मों ने मुख्य रूप से मणिपुर में न्याय के लिए संघर्षरत स्त्रियों के विरोध को उजागर करने का प्रयास किया है। उनके कार्य को देश विदेशों में अनेक सम्मान मिले हैं। उनकी फिल्में दुनिया भर के प्रसिद्ध फिल्म समारोहों में प्रदर्शित हुई हैं। कविता जोशी फिल्म निर्माण की कई कार्यशालाएँ आयोजित कर रही हैं। इन कार्यशालाओं में 50 से अधिक लघु फिल्मों और वृत्तचित्रों का निर्माण हुआ है। कविता इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ वीमेन इन रेडियो एंड टेलीविज़न (IAWRT) की सदस्य हैं। वे इसके शुरुआत में एशियाई महिला फिल्म महोत्सव की क्यूरेटर में से एक थीं। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों व विभिन्न फिल्म समारोहों के निर्णायक मंडल में भी वे रही हैं।