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विजेता की उदारता ; एक संस्मरण 1971 के युद्ध का

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा –

१९७१ के भारत पाक युद्ध के पश्चात् जिस दिन ९० हजार सशस्त्र पाकिस्तानी सैनिकों ने ढाका में जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सेनापति जनरल जगजीत सिह अरोड़ा के समक्ष अपने हथियार डाल कर आत्समर्पण किया था, तो वह दृश्य भारतीय इतिहास का एक अविस्मरणीय क्षण था ।

इस घटना के बारे में मैंने जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा द्वारा इलूस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया में लिखे अपने लेख में पढ़ा था / कि जनरल नियाजी भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में उनके बैच मेट(सहपाठी प्रशिक्षु) थे , जब जनरल नियाजी ने अपना अस्त्र -शस्त्र रैंक आदि भारतीय सेनापति को सौंपा तो अपनी रिवॉल्वर भी अरोड़ा सहाब को थमा दी थी – उन्होंने रिवाल्वर वापस नियाजी को दे दी- कहा इसे रहने दीजिये , अपना रैंक उतारने के लिए भी उन्होंने नियाजी को मना किया -इसे रहने दीजिये I नियाजी के आँखों से अश्रुपात होने लगा I अपनी अकादमी के बैच मेट को वह इस हालत में देखना अरोड़ा सहाब भी सहन न कर सके I यह थी एक विजेता की उदारता और महानता – कुछ भी हो सकता था, आप कल्पना कर सकते हैं कि नियाजी पलट कर अरोड़ा सहाब पर उसी रिवाल्वर से गोली भी चला सकते थे ! जनरल अरोड़ा का यह व्यवहार अद्भुत था ।

इस घटना का यदि कोई दूसरा उदाहरण इतिहास में है तो वह सिकंदर और पुरु के बीच हुए साक्षात्कार का ही है, जिसमें सिकंदर ने पुरु से पूछा था कि -तुम्हारे साथ क्या व्यवहार किया जाना चाहिए ? तब पुरु ने कहा था कि -वही व्यवहार अपेक्षित है जैसे एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है I सिकंदर ने पुरु को बंधनमुक्त कर उसको उसका राज्य वापस लौटा दिया था ।
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