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लगभग सारी दुनियां को चलाता है रोमन साम्राज्य का ग्रेगोरियन कैलेंडर

New Year’s celebrations around the world are diverse and vibrant, with each country and culture having its unique traditions and customs. Different communities and cultures around the world celebrate the New Year on various dates according to their calendars and traditions.

 

जयसिंह रावत
मात्र आधा दर्जन से कम देशों के अलावा भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में नव वर्ष की शुरुआत 1 जनवरी को हो रही है। यूं कहें कि लगभग सारा विश्वसमाज नयी आशाओं और अभिलाषाओं को लेकर नव वर्ष के उल्लास में डूबा हुआ है। भारत में हिन्दू आबादी लगभग 80 प्रतिशत होने के साथ ही 22 मार्च 1957 को भारत सरकार ने ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ शक संवत् को देश के राष्ट्रीय पंचांग के रूप में मान्यता प्रदान की थी। फिर भी भारत में अंग्रेजों द्वारा सन् 1752 में भारत में शुरू किये गया कलेंडर या पंचांग प्रचलन में है तो उसके एक नहीं बल्कि अनेक कारण हैं।

संविधानसभा ने चुना था ग्रेगोरियन कैलेंडर

संविधान सभा ने भावी धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की एकता और अखण्डता का बनाये रखने के लिये हिन्दू शक सम्बतसर शुरू करने के बजाय ग्रेगोरियन कलेंडर को मान्यता दी थी। इसका एक कारण यह भी था भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वर्ष भर में कई दिन नव वर्ष दिवस के रूप में मनाए जाते हैं। जैसे पंजाब में नया साल बैसाखी, असम में बोहाग बिहू , तमिलनाडु में पुथंडु, केरल में विशु, ओडिशा में पना संक्रांति या ओडिया नबाबरसा और बंगाल में पोइला बोइशाख के रूप में आता है। चंद्र कैलेंडर का पालन करने वाले लोग चैत्र महीने को वर्ष का पहला महीना मानते हैं। इसलिए आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक में उगादी और गुढ़ी पड़वा की तरह इस महीने के पहले दिन नया साल मनाया जाता है। गुजरात में नया साल कार्तिक (एकम) के पहले दिन पर पड़ता है। लद्दाख और सिक्किम में लोसर और अरुणाचल प्रदेश में न्यीशी जनजाति द्वारा मनाया जाने वाला, न्योकुम युलो नव वर्ष का प्रतीक है। नवरोज या नवरेह कश्मीरी पंडित समुदाय में मनाया जाने वाला कश्मीरी नव वर्ष है। इसी प्रकार, भारत में कुछ क्षेत्र लगातार संक्रांतियों के बीच की अवधि को एक महीना मानते हैं और कुछ अन्य लगातार पूर्णिमाओं के बीच की अवधि को एक महीना मानते हैं।

ग्रेगोरी ने जूलियन कैलेंडर में सुधार कर बनाया नया कैलेंडर

सत्ता में आने के बाद रोमन तानाशाह जूलियस सीजर ने साम्राज्य का पुराना कैलेंडर बदल कर रोमन देवता जानूस के नाम से पहले महीने की शुरुआत की थी। इसमें 1 जनवरी को पहला दिन घोषित किया गया। बाद में पोप ग्रेगोरी ने जूलियन कैलेंडर में सुधार कर नया कैलेंडर जारी किया जो कि सारी दुनियां में प्रसिद्ध हुआ। इसे फैलाने में विकसित यूरोपीय इसाई देशों के साथ ही विश्व के बड़े हिस्से पर शासन करने वाले ब्रिटेन ने अपने उपनिवेशों में फैलाया।

आखिर क्यों खास है ग्रगोरी का कलेंडर

दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर ने वर्ष की लंबाई को सही करके पहले इस्तेमाल किए गए जूलियन कैलेंडर में अशुद्धियों को संशोधित किया गया। इसने लीप वर्षों के लिए अधिक सटीक प्रणाली शुरू की, जिससे समय की गणना में त्रुटि की संभावना कम हो गई। ग्रगोरियन कैलेंडर का उद्देश्य कैलेंडर वर्ष को सौर वर्ष के साथ अधिक निकटता से सिंक्रोनाइज करना था। जिससे यह सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा को ट्रैक करने में अधिक सटीक हो सके। इसकी शुरूआत कैथोलिक चर्च के प्राधिकार द्वारा समर्थित थी, जिसका उस समय यूरोप में महत्वपूर्ण प्रभाव था। शुरुआत में कैथोलिक देशों द्वारा और बाद में अन्य देशों द्वारा इसे अपनाने से इसकी व्यापक स्वीकृति में योगदान मिला। जैसे-जैसे यूरोपीय देशों ने अन्वेषण और उपनिवेशीकरण के माध्यम से अपने प्रभाव का विस्तार किया, ग्रेगोरियन कैलेंडर दुनिया भर में फैलता गया, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति और संचार के लिए मानक कैलेंडर बन गया। माना जाता है कि 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान यूरोप के वैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व ने भी ग्रेगोरियन कैलेंडर की वैश्विक स्वीकृति में योगदान दिया।

ज्यादा सटीक माना जाता है ग्रगोरियन कैलेंडर

टाइमकीपिंग में इसकी सटीकता ने वाणिज्य, खगोल विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान की है। अधिकांश देशों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को उसकी सटीकता के कारण एक मानक के रूप में अपनाया, जिससे यह नागरिक उद्देश्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कैलेंडर बन गया। सदियों से इसके व्यापक रूप से अपनाने से निरंतरता और परिचितता की भावना स्थापित हुई है, जिससे लोगों के लिए घटनाओं को समझना और योजना बनाना आसान हो गया है। इन कारणों ने सामूहिक रूप से आज दुनिया के अधिकांश हिस्सों में समय पर नजर रखने के मानक के रूप में ग्रेगोरियन कैलेंडर की विश्वव्यापी लोकप्रियता और स्वीकृति में योगदान दिया है।

वैदिक परंपराओं पर आधारित है हिन्दू पंचांग

संविधान सभा द्वारा ग्रगोरियन पंचांग को अपनाये जाने के बावजूद भारत में अपने प्राचीन पंचांग की उपयोगिता समाप्त नहीं हो गयी थी। हिंदू कैलेंडर प्राचीन परंपराओं, धार्मिक मान्यताओं और खगोलीय टिप्पणियों में गहराई से निहित है। हिंदू कैलेंडर, जिसे ‘‘पंचांग‘‘ भी कहा जाता है, एक प्राचीन समय निर्धारण प्रणाली है जो सदियों से विकसित हुई है। इसकी उत्पत्ति का श्रेय किसी एक व्यक्ति या विशिष्ट प्रारंभिक बिंदु को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि इसका विकास प्राचीन भारत में विभिन्न क्षेत्रीय और सांस्कृतिक प्रभावों से हुआ है। माना जाता है कि हिंदू कैलेंडर की जड़ें वैदिक परंपराओं और खगोल विज्ञान में हैं। इसी तरह विक्रम संवत (जिसे विक्रमी संवत या बिक्रम संबत के नाम से भी जाना जाता है) भारत और नेपाल में उपयोग की जाने वाली एक पारंपरिक हिंदू कैलेंडर प्रणाली है। इसकी वर्ष-गणना 57 ईसा पूर्व से शुरू होती है, जो शकों (सीथियन) पर राजा विक्रमादित्य की महान जीत और विक्रम युग की स्थापना का प्रतीक है। जबकि ग्रेगोरियन कैलेंडर एक मानकीकृत प्रणाली है जिसका उपयोग मुख्य रूप से नागरिक उद्देश्यों के लिए विश्व स्तर पर किया जाता है। दोनों कैलेंडर अपनी-अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यावहारिक जरूरतों को पूरा करते हैं। जिस तरह ग्रगोरियन कैलेंडर रोमन साम्राज्य का अतीत को वर्तमान तक लाता है।

म्ेाघनाथ साहा प्ंाचांग सुधार समिति की सिफारिश

प्राचीन भरतीय पंचांग के महत्व को देखते हुये भारत सरकार ने वरिष्ठ भारतीय खगोल वैज्ञानिक मेघनाद साहा की अध्यक्षता में बनी पंचांग सुधार समिति की सिफारिश पर 22 मार्च 1957 को ग्रेागोरियन के साथ ही राष्ट्रीय कैलेंडर भी जारी कर दिया जिसमें अन्य खगोलीय डेटा के साथ-साथ हिंदू धार्मिक कैलेंडर तैयार करने के लिए समय और सूत्र भी शामिल थे, ताकि इसे सुसंगत बनाया जा सके। दरअसल पंचांग कमेटी के अध्यक्ष वरिष्ठ भारतीय खगोल वैज्ञानिक मेघनाद साहा वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में कैलेंडर सुधार समिति के प्रमुख थे। समिति के अन्य सदस्य ए.सी. बनर्जी, के.के. दफ्तरी, जे.एस. करंदीकर, गोरख प्रसाद, आर.वी. वैद्य और एन.सी. लाहिरी थे।

22 मार्च, 1957 को शुरू हुआ राष्ट्रीय पंचांग

समिति के सामने कार्य वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक सटीक कैलेंडर तैयार करना था, जिसे पूरे भारत में समान रूप से अपनाया जा सके। यह एक बहुत बड़ा काम था। समिति को देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न कैलेंडरों का विस्तृत अध्ययन करना था। समिति के समक्ष तीस अलग-अलग कैलेंडर थे। यह कार्य इस तथ्य से और भी जटिल हो गया था कि कैलेंडर के साथ धर्म और स्थानीय भावनाएँ भी जुड़ी हुई थीं। भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1955 में प्रकाशित समिति की रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा थाकि “वे (विभिन्न कैलेंडर) देश में पिछले राजनीतिक विभाजनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब जब हमने स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, तो यह स्पष्ट रूप से वांछनीय है हमारे नागरिक, सामाजिक और अन्य उद्देश्यों के लिए कैलेंडर में एक निश्चित एकरूपता होनी चाहिए और यह इस समस्या के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर किया जाना चाहिए।‘‘ आधिकारिक तौर पर उपयोग में चैत्र 1, 1879 शक संवत, या 22 मार्च, 1957 को शुरू हुआ। हालांकि, सरकारी अधिकारी धार्मिक कैलेंडर के पक्ष में इस कैलेंडर के नए साल के दिन को काफी हद तक नजरअंदाज करते हैं।

कुछ नहीं मानते ग्रेगोरी का कैलेंडर

विश्व में चीन जैसे कुछ देश है जिनका अपना कैलेंडर है। जैसे हिजरी नव वर्ष कई इस्लामी देशों में मनाया जाता है, जो इस्लामी चंद्र कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है। तारीख हर साल बदलती रहती है और चंद्र चक्र पर आधारित होती है। फारसी नव वर्ष नौरोज ईरान, अफगानिस्तान और कई अन्य देशों में मनाया जाता है। यह आमतौर पर 21 मार्च को होता है और वसंत की शुरुआत का प्रतीक है। यहूदी नव वर्ष रोश हशनाह इजराइल और दुनिया भर में यहूदी समुदायों द्वारा मनाया जाता है। यह आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर की शुरुआत में पड़ता है। थाई नव वर्ष सोंगक्रान थाईलैंड और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। यह आमतौर पर अप्रैल के मध्य में होता है। माओरी मातरिकी नया साल न्यूजीलैंड में मनाया जाता है, आमतौर पर मई के अंत और जून की शुरुआत के बीच। इथियोपिया में नव वर्ष एनकुटाटाश मनाया जाता है।

 

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