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घोर अमानवीयः जेलों में बीमारियां परोसी जा रही कैदियों को

 

Prisoners in India are five times more at risk of developing Tuberculosis (TB) than the general population, a first-of-its-kind study to assess the prevalence of the communicable disease in prisons across the world has revealed. According to the study, published in The Lancet Public Health, the incidence of TB in Indian prisons is 1,076 cases per 100,000 persons in prisons.

 


-जयसिंह रावत
भारतीय जेलों में बंदियों की क्षमता से कहीं अधिक भीड़ ठूंसे जाने के कारण उत्पन्न नारकीय परिस्थितियां न केवल संयुक्त राष्ट्र के नियमों का बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन भी है। यह वेदना किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता की नहीं बल्कि स्वयं गृह मंत्रालय के अन्तर्गत निदेशक (एसआर) प्रवीन कुमारी सिंह द्वारा सभी राज्यों के प्रमुख सचिव गृह और कारागार तथा पुलिस प्रमुखों के लिये 9 मई 2011 को जारी सर्कुलर में व्यक्त की गयी है। जेलों की इस स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अलावा भारत की संसद में भी निरन्तर चिन्ता प्रकट की जाती रही है। दरअसल बंदियों के प्रति सरकार और समाज का व्यवहार मानवीय नहीं है। उन्हें भोजन और पानी मिले या न मिले मगर बीमारियां तरूरी मिल रही है। उत्तराखण्ड की जेलों की सबसे खराब हालत है जहां भेड़ बकरियों की तरह बंदी ठूंसे जा रहे हैं। उनके लिये बजट की भारी कमी के चलते कुपोषण और अल्प भोजन के कारण भी उनकी बीमारियों को बढ़ रहा है।

 

जेलों में जितनी भीड़ उतना ही बीमारियों का संक्रमण

 

जेलों में बंदियों की क्षमता से कहीं अधिक भीड़ से उत्पन्न समस्या एक वैश्विक चिन्ता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में 2019 में 1.17 करोड़ लोग जेलों में बंद थे। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 से लेकर 2019 तक जेलों में बंदियों की संख्या में 25 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुयी है। इस अवधि में जेलों में महिलाओं और लड़कियों की संख्या में 33 प्रतिशत और पुरुषों तथा लड़कों की संख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि हुयी है। विश्व की इन जेलों में से 50 प्रतिशत से अधिक में क्षमता से कहीं अधिक बंदी निरुद्ध थे। रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र की चिन्ता अत्यधिक भीड़ के कारण बंदियों में फैलती बीमारियों को लेकर थी। चूंकि जेलों में एक साथ भारी संख्या में लोग रखे जाने के कारण बीमारियां एक दूसरे में फैलने की ज्यादा संभावनायें होती हैं। इसीलिये जेलों में टीबी, एचआईवी, हेपेटाइटिस सी, यौन संचारित संक्रमण, मानसिक रोग जैसी स्थितियों का खतरा अधिक रहता है। मानवाधिकारों के उल्लंघन, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और न्याय-आधारित विकल्पों की अनुपस्थिति के कारण जेलों में बंद लोगों के स्वास्थ की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जेलों का भौतिक बुनियादी ढांचा, भीड़भाड़ का खतरा और कैदियों की लगातार आवाजाही से तपेदिक या टीबी जैसी वायुजनित बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, जेलों में टीबी के अन्य जोखिम कारकों (जैसे अल्पपोषण, एचआईवी संक्रमण, शराब सेवन विकार और धूम्रपान) का प्रसार अक्सर अपेक्षाकृत अधिक होता है।

There are problems of drug abuse, alcoholism, trauma, homicide, suicide, violence, neuropsychiatric diseases, epilepsy, stress manifestations, HIV infection and AIDS, sexually transmitted diseases, tuberculosis, skin infections, and so on. In the walls of the jails, the lack of adequate health facilities amounts to society inflicting punishment twice, once by incarceration and a second time by illness. The second punishment has the potential to be inflicted on the family of prisoners.

 

भारतीय कैदियों का टीबी का पांच गुना अधिक खतरा

विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाले भारत की जेलें भी भीड़भाड़ भरी रहती हैं। लैंसेट पब्लिक हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार भारत में कैदियों को सामान्य आबादी की तुलना में तपेदिक (टीबी) होने का खतरा पांच गुना अधिक है। शोधकर्ताओं की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने वर्ष 2000 से 2019 के बीच 195 में से 193 देशों के डेटा का विश्लेषण करते हुए पहली बार जेलों में बंद लोगों में टीबी की दर का अनुमान लगाया। जर्नल के जुलाई 2023 संस्करण में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि भारत की जेलों में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर टीबी के 1,076 मामले थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि वैश्विक स्तर पर, सामान्य आबादी की तुलना में जेल में बंद लोगों में तपेदिक विकसित होने का खतरा लगभग 10 गुना अधिक है। 2019 में वैश्विक स्तर पर जेलों में बंद 1.1 करोड़ लोगों में से लगभग 125,105 को तपेदिक रोग पाया गया। शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर तपेदिक की घटनाओं की दर और जेलों में भीड़भाड़ के बीच एक सीधा संबंध पाया। विशेषज्ञों के अनुसार जेलों में भीड़भाड़ और वेंटिलेशन की कमी तेपेदिक रोगियों की संख्या अधिक पायी जाती है। वर्ष 2017 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इंफेक्शियस डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भारत की जेलों में टीबी या तपेदिक के इलाज और जांच की व्यवस्था का अध्ययन किया तो पाया कि निदान या डाइग्नोसिस की केवल 18 प्रतिशत, इलाज की 54 प्रतिशत और समय-समय पर जांच की 60 प्रतिशत जेलों में ही व्यवस्था थी।

 

जेलों में क्षमता से अधिक 131 प्रतिशत कैदी

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की ‘‘प्रिजन स्टेटिसटिक्स इंडिया रिपोर्ट-2022’’ के अनुसार 31 दिसम्बर 2022 को भारत की जेलों में कुल 5,73,220 लोग बंदी थे। जबकि देश की कुल 1,330 जेलों में कुल क्षमता 4,36,266 कैदियों की ही थी। इस प्रकार देखा जाय तो इन जेलों में क्षमता से 131.4 प्रतिशत अधिक बंदी ठूंसे गये थे। उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू, तेलंगाना, मणिपुर और नागालैंड जैसे कुछ राज्यों में क्षमता से कम बंदियों के कारण यह राष्ट्रीय औसत अधिक प्रतीत नहीं होता जबकि कुछ उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों की जेलों में भेड़ बकरियों की तरह बंदी ठूंसे जाते हैं। उत्तराखण्ड जैसे शान्त और छोटे राज्य की जेलों में 31 जनवरी 2024 तक कुल 3,461 बंदियों की क्षमता के विपरीत 6,603 कैदी बंद थे। इन बंदियों में से लगभग 75 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे जिन्हें अंतिम फैसले तक जमानत पर छोड़ा जा सकता था।

बिना दोष सिद्धि के सालों से सजा भुगत रहे कैदी

 

उक्त जेल सांख्यकी के अनुसार जेलों में बंद सभी बंदियों में केवल 1,33,415 बंदी ही सजायाफ्ता थे और शेष 4,34,302 विचाराधीन कैदी थे। इन विचाराधीन कैदियों में से कई ऐसे भी हैं जो अदालत द्वारा दोष सिद्ध होने से पहले ही 5 साल से अधिक समय से जेलों में सजा काट रहे हैं। केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा द्वारा 6 फरबरी 2024 को लोकसभा में दी गयी जानकारी के अनुसार भारतीय जेलों में 33,980 विचाराधीन बंदी, 2 से 3 साल, 25,869 विचारधीन 3 से 5 साल और 11,448 विचाराधीन बंदी 5 साल से अधिक समय से जेलों में अपने भाग्य के फैसले का इंतजार कर रहे थे। इनमें से कुछ निर्दोष भी साबित हो सकते हैं और कुछ को कम सजा भी मिल सकती है मगर वे पहले ही अकारण सजा काट रहे हैं।

जेलों में ही मर रहे हैं कैदी

इन भीड़भाड़ वाली जेलों में सामान्य मानवीय सुविधाओं का अभाव तो रहता ही है साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं का भी भारी अभाव रहता है जिस कारण कैदी जेलों में दम तोडते रहते हैं। जेल सांख्यकी के अनुसार देश की जेलों में वर्ष 2022 में 1,995 मौतें हुयीे जिनमें 1,773 प्राकृतिक और 159 अप्राकृतिक मौतें थीं जिनमें आत्महत्याएं भी शामिल थीं। प्राकृतिक मौतों में तपेदिक जैसी बीमारियों शामिल थीं। वर्ष 2022-23 में भारतीय जेलों के लिये कुल बजट 8725 करोड़ रुपये था जिसमें से 7781.9 करोड़ ही खर्च हो पाये। आंध्र प्रदेश में वित्तीय वर्ष 2022 में प्रति कैदी लगभग 2.11 लाख रुपये का सबसे अधिक खर्च था। इसके विपरीत, उत्तराखंड में उस वर्ष प्रति कैदी खर्च केवल लगभग छह हजार रुपये था। जबकि मध्य वर्ग का एक व्यक्ति रेस्तरां में एक ही डिनर या लंच पर 6 हजार खर्च कर देता ।

 

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