भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक: वैश्विक दुग्ध उत्पादन में23 प्रतिशत 23 प्रतिशत योगदान
-उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो –
भारत में डेयरी क्षेत्र का विकास और ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरुआत के बाद डेयरी सहकारी समितियों द्वारा निभाई गई शानदार भूमिका आजादी के बाद देश के उल्लेखनीय विकास की गाथा का एक अभिन्न हिस्सा है। आज, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है, जिसका वैश्विक दुग्ध उत्पादन में योगदान 23 प्रतिशत है।
1950 और 1960 के दशक के दौरान स्थिति वास्तव में बहुत अलग थी। भारत एक दूध की कमी वाला देश था जिसके लिए वह आयात पर निर्भर था और इसकी वार्षिक उत्पादन दर कई वर्षों तक नकारात्मक ही रही। आजादी के बाद के पहले दशक में, दुग्ध उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर 1.64% थी, जो 1960 के दशक में घटकर 1.15% हो गई। 1950-51 में, देश में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति दूध की खपत मात्र 124 ग्राम थी। 1970 तक, यह आंकड़ा और कम होकर प्रतिदिन 107 ग्राम रह गया था, जो दुनिया में सबसे कम खपत में से एक था और न्यूनतम पोषण मानकों से बहुत कम था। भारत का डेयरी उद्योग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा था। दुनिया में सबसे बड़ी मवेशी आबादी होने के बावजूद देश में प्रति वर्ष 21 मिलियन टन से भी कम दूध का उत्पादन होता था।
1964 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने गुजरात के आणंद जिले की यात्रा की थी, जिसके बाद 1965 में ऑपरेशन फ्लड (ओएफ) कार्यक्रम के माध्यम से पूरे देश में डेयरी सहकारी समितियों के ‘आणंद पैटर्न’ का समर्थन करने के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की गई, जिसे विभिन्न चरणों में लागू किया जाना था।
‘आणंद पैटर्न’ वास्तव में एक सहकारी संरचना थी, जिसमें ग्रामीण-स्तर की डेयरी सहकारी समितियां (डीसीएस) शामिल थीं, जो जिला-स्तरीय यूनियनों को बढ़ावा देती थी और जिसके बदले में वह राज्य-स्तरीय विपणन संघों को बढ़ावा देती थी। 1970 में एनडीडीबी ने पूरे देश में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के माध्यम से ‘आणंद पैटर्न’ वाली सहकारी समितियों की शुरुआत की।
डॉ. वर्गीज कुरियन, जिन्हें भारत में “श्वेत क्रांति के जनक” के रूप में जाना जाता है, एनडीडीबी के पहले अध्यक्ष थे। अपनी टीम के साथ, डॉ. कुरियन ने परियोजना की शुरुआत करने की दिशा में काम किया, जिसमें पूरे देश के दुग्ध शेडों में आणंद-पैटर्न सहकारी समितियों के संगठन की परिकल्पना की गई, जहां से सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित और खरीदे गए तरल दूध को शहरों तक पहुंचाना था।
ऑपरेशन फ्लड निम्नलिखित चरणों में लागू किया गया:
1. चरण I (1970-1980) को विश्व खाद्य कार्यक्रम के माध्यम से यूरोपीय संघ (उस समय यूरोपीय आर्थिक समुदाय) ने दान किए गए स्किम्ड दूध पाउडर और बटर ऑयल की बिक्री से वित्तपोषित किया था।
2. चरण II (1981-1985) में दुग्ध शेडों की संख्या को 18 से बढ़ाकर 136 की गई; शहरी बाजारों में दूध का आउटलेट बढ़ाकर 290 तक किया गया। 1985 के अंत तक, 42,50,000 लाख दूध उत्पादकों के साथ-साथ 43,000 ग्राम सहकारी समितियों की एक आत्मनिर्भर प्रणाली को कवर किया गया।
3. चरण III (1985-1996) में डेयरी सहकारी समितियों को बड़ी मात्रा में दूध की खरीद और विपणन करने के लिए आवश्यक अवसंरचनाओं का विस्तार और सुदृढ़ करने में सक्षम बनाया गया। इस चरण में 30,000 नई डेयरी सहकारी समितियों को शामिल किया गया, जिससे इनकी संख्या कुल मिलाकर 73,000 हो गई।
ऑपरेशन फ्लड ने राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड के माध्यम से 700 कस्बों और शहरों में उपभोक्ताओं तक गुणवत्तापूर्ण दूध पहुंचने में मदद की। इस कार्यक्रम ने बिचौलियों को समाप्त करने में भी मदद की, जिससे मौसम के अनुसार दूध के मूल्यों की भिन्नताओं में कमी लायी जा सकी। सहकारी संरचना ने दूध और दुग्ध उत्पादों का उत्पादन व वितरण करने की पूरी प्रक्रिया को किसानों के लिए आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना दिया। इसने आयातित मिल्क सॉलिड्स पर भारत की निर्भरता को भी समाप्त कर दिया। इसने देश की न केवल स्थानीय डेयरी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम बनाया, बल्कि इसने विदेशों में भी दुग्ध पाउडर निर्यात करना शुरू कर दिया। क्रॉस-ब्रीडिंग के माध्यम से दुधारू मवेशियों के आनुवंशिक सुधार में भी बढ़ोत्तरी हुई। जैसे-जैसे डेयरी उद्योग का आधुनिकीकरण और विस्तार हुआ, लगभग 10 मिलियन किसानों ने डेयरी फार्मिंग के माध्यम से अपनी आय अर्जित करनी शुरू कर दी।
1950-51 में दुग्ध उत्पादन मात्र 17 मिलियन टन (एमटी) था। 1968-69 में, ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत से पहले, दुग्ध उत्पादन केवल 21.2 मिलियन टन था जो 1979-80 में बढ़कर 30.4 मिलियन टन और 1989-90 में 51.4 मिलियन टन हो गया। अब यह बढ़कर 2020-21 में 210 मिलियन टन हो चुका है। आज पूरी दुनिया के दूध उत्पादन में 2 प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हो रही है, जबकि भारत में इसकी वृद्धि दर 6 प्रतिशत से ज्यादा है। भारत में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी वैश्विक औसत से बहुत ज्यादा है। पिछले तीन दशकों (1980, 1990 और 2000 के दशक) में, भारत में दैनिक दूध की खपत, 1970 में प्रति व्यक्ति 107 ग्राम के निचले स्तर से बढ़कर 2020-21 में 427 ग्राम प्रति व्यक्ति हो चुकी है, जबकि 2021 में इसका वैश्विक औसत प्रतिदिन 322 ग्राम रहा है।
ऑपरेशन फ्लड के बाद, भारत में डेयरी और पशुपालन क्षेत्र बड़ी तेजी से ग्रामीण परिवारों के लिए आय का प्राथमिक स्रोत बनकर सामने आया है, जिसमें से अधिकांश या तो भूमिहीन, छोटे या सीमांत किसान रहे हैं। आज, भारत को लगभग ढाई दशकों से दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश होने का गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है।
डेयरी क्षेत्र विभिन्न मामलों में भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। एक उद्योग के रूप में, यह 80 मिलियन से ज्यादा ग्रामीण परिवारों को रोजगार देता है, जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान होने के साथ-साथ भूमिहीन भी हैं। सहकारी समितियों ने न केवल किसानों को आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि लिंग, जाति, धर्म और समुदाय के बंधनों को भी मिटाया है। महिलाएं देश के डेयरी क्षेत्र के प्रमुख उत्पादक कार्यबल हैं। यह क्षेत्र विशेष रूप से महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण रोजगार प्रदाता है और महिला सशक्तिकरण में अग्रणी भूमिका निभाता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा 2001 से प्रत्येक वर्ष 01 जून को विश्व दुग्ध दिवस मनाया जाता है, जिससे वैश्विक खाद्य के रूप में दूध के महत्व को स्वीकार किया जा सके और डेयरी क्षेत्र की उपलब्धियों का उत्सव मनाया जा सके। भारत में डॉ. वर्गीज कुरियन के जन्मदिवस 26 नवंबर को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सरकार द्वारा किए जा रहे उपायों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ-साथ डेयरी क्षेत्र के विकास में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका से आगामी दशकों में संभावना है कि भारत दूध उत्पादन और दुग्ध प्रसंस्करण में अपनी वृद्धि को जारी रखेगा। इसके अलावा, किसानों को वैज्ञानिक रूप से दुधारू मवेशियों के स्वदेशी नस्लों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने और सहकारी एवं दुग्ध उत्पादक कंपनियों को प्रेरित करने के लिए, भारत सरकार राष्ट्रीय दुग्ध दिवस के अवसर पर प्रतिष्ठित राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार प्रदान कर रही है। राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार-2022 के विजेताओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए यहां क्लिक करें।
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में डेयरी क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सरकार ने अपनी पहलों के माध्यम से डेयरी फार्मिंग अवसंरचना को आगे बढ़ाया है जैसे कि राष्ट्रीय डेयरी योजना का विकास, इस क्षेत्र के लिए एक दीर्घकालिक विकास-केंद्रित रुपरेखा और जन धन योजना और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी सामान्य सशक्तिकरण योजनाएं आदि। पिछले आठ वर्षों में, पशुपालन और डेयरी क्षेत्र को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के अंतर्गत बहुत प्रोत्साहन मिला है और इस क्षेत्र की यात्रा वास्तव में आत्मनिर्भरता का एक उल्लेखनीय झलक प्रस्तुत करती है।