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‘जय भीम’ सिर्फ एक शब्द नहीं है, बल्कि एक भावना है: निर्देशक था से ग्नानवेल

In what could be a marked departure from the norm, IFFI 53 delegates got a unique opportunity to get inspired by the screening of an emotion, rather than a film. Don’t believe us? Yes, you have to believe us, going by the words of Tha. Se. Gnanavel, the director of one of the boldest takes on the flaws in law enforcement and the justice system. ‘Jai Bhim’ is not just a word, it is an emotion; this is what the Director has to say about the Tamil movie, which is sure to have given goosebumps and transformed the lives of international and domestic delegates alike, to speak up and stand up for what is right, come what may.

“मेरी फिल्म अपने वास्तविक लक्ष्य को तभी प्राप्त करेगी, जब सभी उत्पीड़ित समुदायों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाया जाएगा: था से ग्नानवेल

“भविष्य में ‘जय भीम’ के सीक्वल भी आयेंगे: सह-निर्माता राजशेखर के

किसे परम्परा से अलग हटकर कुछ नया करना कहा जा सकता है, आईएफएफआई 53 के प्रतिनिधियों को एक फिल्म के बजाय, एक भावना की स्क्रीनिंग से प्रेरित होने का एक अनूठा अवसर मिला। हम पर विश्वास नहीं है? कानून प्रवर्तन और न्याय प्रणाली की कमियों को सामने रखने वाले और सबसे साहसी निर्देशकों में से एक, था से ग्नानवेल के शब्दों में, “लेकिन, आपको हमारी बात पर विश्वास करना होगा।“ तमिल फिल्म के बारे में निर्देशक का कहना है, “’जय भीम’ सिर्फ एक शब्द नहीं है, बल्कि एक भावना है। इस फिल्म ने निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू प्रतिनिधियों के रोंगटे खड़े कर दिए हैं तथा उनके जीवन में परिवर्तन ला दिया है – जो सही है उसके लिए बोलना और उसके पक्ष में खड़ा होना, परिणाम चाहे जो भी हो।

ग्नानवेल ने फिल्म महोत्सव के दौरान पीआईबी द्वारा आयोजित ‘टेबल टॉक्स’ सत्र में मीडिया और इस महोत्सव में शामिल प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करते हुए  इस फिल्म का शीर्षक ‘जय भीम’ रखने के पीछे के विचार को साझा किया। उन्होंने कहा, “मेरे लिए जय भीम शब्द शोषित और हाशिये पर रहने वाले लोगों का पर्याय है, जिनके हितों के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर हमेशा खड़े रहे।”

इस फिल्म को हर तरफ से मिली अकल्पनीय प्रशंसा पर अपनी अपार खुशी व्यक्त करते हुए ज्ञानवेल ने कहा कि यह फिल्म इसलिए सभी से जुड़ सकी क्योंकि इसने एक ऐसे विषय को उठाया है, जो सार्वभौमिक है। उन्होंने कहा, “जय भीम के बाद, मैंने जातिगत भेदभाव, कानून के कार्यान्वन और न्याय प्रणाली की खामियों के बारे में ऐसी सैकड़ों कहानियां सुनीं।” उन्होंने कहा कि वह अपनी फिल्म के माध्यम से यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि अन्याय के खिलाफ लड़ाई में संविधान ही असली हथियार है।

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जय भीम ज्वलंत मुद्दों पर खरे और पैने तेवरों वाली फिल्म है, जिसमें जनजातीय दम्पती राजाकुन्नू और सेनगनी के जीवन व संघर्षों को दर्शाया गया है। यह दम्पती ऊंची जाति वाले लोगों की मनमानी और इच्छा के अनुसार जीने पर बाध्य हैं। ये उनके यहां घरेलू कामकाज करते हैं। फिल्म बनाने की कड़वी शैली उस समय नजर आती है, जब राजाकुन्नू को ऐसे अपराध के लिये गिरफ्तार कर लिया जाता है, जो उसने किया ही नहीं। इसके बाद फिल्म प्रतिरोध के भयंकर क्षणों को दर्शाती है। फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह ताकतवर लोग, कमजोर वर्ग के लोगों को अपमानित करते हैं, उन पर जुल्म करते हैं।

सामाजिक बदलाव में सिनेमा की भूमिका के बारे में ग्नानवेल ने कहा कि वैसे फिल्म में एक मसीहा है, जो शोषित लोगों के लिये लड़ता है, लेकिन उनकी फिल्म का संदेश महान विद्वान बी.आर. अम्बेडकर के विचारों को ध्वनित करती है कि शिक्षा ही एकमात्र जरिया है, जिससे लोग अधिकार-सम्पन्न हो सकते हैं। ग्नानवेल ने कहा, “वास्तविक जीवन में कोई महानायक नहीं होता। शिक्षा के जरिये शक्तिसम्पन्न बनकर व्यक्ति खुद अपना महानायक बनता है। मेरी फिल्म का उद्देश्य उसी समय पूरा होगा जब सारे शोषित अधिकार-सम्पन्न हो जायेंगे।”

यह फिल्म न्यायमूर्ति के. चंद्रू के जीवन की असली घटना पर आधारित है, जिन दिनों वे वकालत करते थे। उनकी भूमिका प्रसिद्ध अभिनेता सूर्या ने निभाई है।

फिल्म में उसकी विषयवस्तु ही असली नायक है। इसके बारे में ग्नानवेल ने कहा कि अगर विषयवस्तु जीवंत होगी, तो लोग उसी तरह फिल्म बनायेंगे जैसा रचनाकार चाहता है। बाद में सब-कुछ ठीक-ठाक होता जायेगा।

उल्लेखनीय है अभिनेता सूर्या ने जो गैर-सरकारी संस्थान अग्राम फाउंडेशन बनाया है, उसके पीछे की प्रेरणा निर्देशक ग्नानवेल हैं। इस पर प्रकाश डालते हुये फिल्म के सह-निर्माता राजशेखर के. ने कहा कि ग्नानवेल ने अपना करियर पत्रकार और लेखक के रूप में शुरू किया था। वे वर्षों तक वंचित लोगों के लिये काम करते रहे। उन्होंने कहा, “फिल्म बनाने के लिये सूर्या से संपर्क किया गया था। उन्होंने एक बार कहानी सुनी तो उन्होंने फिल्म में काम करने की इच्छा व्यक्त की। यह हमारे लिये बहुत अचरज की बात थी।”

फिल्म बनाने की ईमानदार कोशिश और इरुला जनजाति के लोगों को फिल्म में शामिल करने के बारे में राजशेखर ने कहा कि मणिकंदन और लिजोमोल जोस जैसे कलाकारों ने राजाकुन्नू व सेनगनी की भूमिका निभाई है। ये दोनों जनजातीय समुदाय के जीवन को करीब से देखने के लिये उनके साथ 45 दिनों तक रहे थे।

 

जय भीम फिल्म के प्रशंसकों को बहुत खुश करने वाली खबर सुनाते हुए राजशेखर ने कहा कि ‘जय भीम’ के सीक्वल निश्चित रूप से बनेंगे। उन्होंने कहा, “चूंकि इसे लेकर बातचीत शुरू हो चुकी है इसलिए वे पाइपलाइन में हैं।”

अभिनेता लिजोमोल जोस, जिन्हें मुख्य रूप से मलयालम फिल्मों के लिए जाना जाता है, उन्होंने कहा कि असली चुनौती तमिल भाषी इरुला का किरदार निभाने की थी। उन्होंने बताया, “मेरे क्राफ्ट को निखारने के लिए आदिवासी समुदाय के साथ हमारा रहना महत्वपूर्ण साबित हुआ।”

अभिनेता मणिकंदन जो इस बातचीत में उपस्थित थे, उन्होंने कहा कि ये फिल्म उन्हें काफी अप्रत्याशित रूप से मिली। कैसे इस फिल्म ने उन्हें खुद को बदलने में मदद की और उनके अंदरूनी विकास में मदद की, इसे साझा करते हुए इन अभिनेता ने कहा, “मैं ऐसे लोगों से मिला और उनके साथ रहा जो ये सोचते हैं कि उनके पास दुनिया में सब कुछ है, जबकि उनके पास हमारे जैसी कोई भी भौतिक चीजें नहीं थीं।”

इफ्फी-53 में ‘जय भीम’ की स्क्रीनिंग इंडियन पैनोरमा फीचर फिल्म्स सेक्शन के तहत की गई थी।

 

भारतीय फिल्म निर्देशक और लेखक था से ग्नानवेल तमिल फिल्म उद्योग में काफी प्रसिद्ध हैं और जय भीम के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। उनके निर्देशन की पहली फिल्म कूटथिल ओरुथन (2017) थी।

2डी एंटरटेनमेंट एक पुरस्कार विजेता भारतीय फिल्म निर्माण और वितरण कंपनी है, जिसमें अभिनेता, निर्माता और प्रस्तुतकर्ता सूर्या ने राजशेखर पांडियन, ज्योतिका और कार्थी के साथ कई ब्लॉकबस्टर हिट किए हैं।

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