पर्यावरणब्लॉग

भारत में तेंदुओं की आबादी 13,874 व्यक्ति होने का अनुमान है।

India’s leopard population is estimated at 13,874 (Range: 12,616 – 15,132) individuals, representing a stable population in comparison to the similar area being sampled in 2018 with 12852 (12,172-13,535) individuals. This estimate represents the population of 70% of the leopard habitat, the Himalayas and semi-arid parts of the country which are not tiger habitats were not sampled. Central India shows a stable or slightly growing population of leopards (2018: 8071, 2022: 8820), Shivalik hills and Gangetic plains experienced decline (2018: 1253, 2022: 1109). If we look at the area that was sampled both in 2018 and 2022 across India, there is a 1.08% per annum growth. In Shivalik hills and Gangetic plains, there is a -3.4% decline per annum, while the largest growth rate was in Central India and Eastern Ghats of 1.5%.

 

 

Leopards also have been known to attack and kill humans. One of the most infamous incidents involved the Leopard of Rudraprayag of the United Provives, which killed nearly 150 people (all of them women and children) over just a couple of years in India in the early 1900s. It was eventually shot dead. A leopard attack claimed the life of a child in Dehradun, marking the ninth human fatality in recent leopard attacks. Riasat Ali, 9, was ambushed by a leopard in the Madari Van Gujjar Basti area.

uttarakhandhimalaya.in

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव ने 29 फरवरी, 2024 को नई दिल्ली में भारत में तेंदुओं की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की। पांचवें चक्र में तेंदुओं की आबादी का अनुमान राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्य जीव संस्थान द्वारा, राज्य वन विभागों के सहयोग से किया जा रहा है। चतुर्वर्षीय “बाघों की निगरानी, शिकारियों, शिकार और उनके आवास की निगरानी” अभ्यास के एक भाग के रूप में यह प्रयास किया गया था। इससे बाघ संरक्षण प्रयासों को गति मिली है।

भारत में तेंदुओं की आबादी 13,874 (रेंज: 12,616 – 15,132) व्यक्ति होने का अनुमान है। यह 2018 में 12852 (12,172-13,535) व्यक्तियों के समान क्षेत्र की तुलना में स्थिर आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। यह अनुमान तेंदुए के निवास स्थान की 70 प्रतिशत आबादी को दर्शाता है। इस अभ्यास में हिमालय और देश के अर्धशुष्क हिस्सों का नमूना नहीं लिया गया है, क्योंकि यह बाघों का निवास स्थान नहीं हैं।

मध्य भारत में तेंदुओं की आबादी की स्थिर या थोड़ी बढ़ती दिखाई देती है (2018: 8071, 2022: 8820), शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानी इलाकों में गिरावट देखी गई (2018: 1253, 2022: 1109)। यदि हम उस क्षेत्र को देखें जिसका पूरे भारत में 2018 और 2022 दोनों में नमूना लिया गया था, तो प्रतिवर्ष 1.08 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों में, प्रतिवर्ष -3.4 प्रतिशत की गिरावट हो रही है, जबकि सबसे बड़ी वृद्धि दर मध्य भारत और पूर्वी घाट में 1.5 प्रतिशत थी।

देश में तेंदुओं की सर्वाधिक संख्या मध्यप्रदेश में है – 3907 (2018: 3421), इसके बाद महाराष्ट्र (2022: 1985; 2018: 1,690), कर्नाटक (2022: 1,879; 2018: 1,783) और तमिलनाडु (2022: 1,070;2018: 868) हैं। टाइगर रिजर्व या सबसे अधिक तेंदुए की आबादी वाले स्थल- आंध्रप्रदेश के श्रीशैलम में नागार्जुन सागर और इसके बाद मध्यप्रदेश में पन्ना और सतपुड़ा हैं।

भारत में तेंदुए की आबादी के आकलन का पांचवां चक्र (2022) 18 बाघ राज्यों के भीतर वन आवासों पर केंद्रित है, जिसमें चार प्रमुख बाघ संरक्षण परिदृश्य शामिल हैं। 2000 एमएसएल (30 प्रतिशत क्षेत्र) से ऊपर गैर-वन निवास, शुष्क और उच्च हिमालय में तेंदुए के लिए नमूना नहीं लिया गया था। इस चक्र के दौरान शिकार के अवशेषों और शिकार की बहुतायत का अनुमान लगाने के लिए 6,41,449 किमी तक पैदल सर्वेक्षण किया। कैमरा ट्रैप को रणनीतिक रूप से 32,803 स्थानों पर रखा गया था, जिससे कुल 4,70,81,881 तस्वीरें आईं और इनमें से तेंदुए की 85,488 तस्वीरें प्राप्त हुईं।

ये निष्कर्ष तेंदुए की आबादी के संरक्षण में संरक्षित क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हैं। जबकि बाघ अभयारण्य महत्वपूर्ण गढ़ों के रूप में काम करते हैं, संरक्षित क्षेत्रों के बाहर संरक्षण अंतराल को संबोधित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। संघर्ष की बढ़ती घटनाएं तेंदुओं और समुदायों दोनों के लिए चुनौतियां पैदा करती हैं। चूँकि संरक्षित क्षेत्रों के बाहर तेंदुओं का जीवित रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है, आवास संरक्षण को बढ़ाने और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए सरकारी एजेंसियों, संरक्षण संगठनों और स्थानीय समुदायों को शामिल करनेवाले सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक हैं।

विवरण:

तेंदुआ एक रहस्यमय प्राणी है, जो गरिमा का अनुभव प्रदान करता है और भारत में अपने क्षेत्र में बढ़ते खतरों का सामना कर रहा है। उनके प्राकृतिक आवास को नुकसान, मानव-वन्यजीव संघर्ष और अवैध शिकार के बीच, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने तेंदुए की आबादी के आकलन के पांचवें चक्र का आयोजन किया, जिससे इन मायावी बड़ी बिल्लियों की स्थिति और प्रवृत्तियों के बारे में जानकारी प्राप्त की गई।

बाघ रेंजवाले राज्यों और विविध परिदृश्यों को शामिल करते हुए, व्यापक सर्वेक्षण में तेंदुए की बहुतायत का आकलन करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करके मजबूत वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान कैमरा ट्रैपिंग, आवास विश्लेषण और जनसंख्या के संयोजन की एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया के माध्यम से, तेंदुओं के वर्गीकरण और संरक्षण चुनौतियों में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि का पताचला।

संदेश:

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेन्द्र यादव का उद्धरण:

‘प्रोजेक्ट टाइगर की संरक्षण विरासत बाघों से भी आगे तक विस्तृत है, जो तेंदुए की स्थिति रिपोर्ट में स्पष्ट है। यह व्यापक प्रजाति संरक्षण प्रयासों को दर्शाती करती है। रिपोर्ट में वन विभाग के समर्पित प्रयासों की सराहना करते हुए संरक्षित क्षेत्रों से परे संरक्षण प्रतिबद्धता पर बल दिया गया है। प्रोजेक्ट टाइगर का समावेशी दृष्टिकोण इको-सिस्टम के अंतर्संबंध और विविधप्रजातियों के संरक्षण पर जोर देता है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में, यह संरक्षण यात्रा एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के लोकाचार का प्रतीक है। इस महत्वपूर्ण मिशन में सभी योगदान कर्ताओं को बधाई।’

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री श्री अश्विनी कुमार चौबे का उद्धरण:

“तेंदुए की स्थिति रिपोर्ट मानव-तेंदुए के सह-अस्तित्व को दर्शाते हुए “वसुदैव कुटुंबकम” दर्शन की परिचायक है।

जैव विविधता में गिरावट के बीच वन्यजीवों के प्रति भारत की अद्वितीय सामुदायिक सहिष्णुता एक वैश्विक मॉडल के रूप में कार्य करती है। सतत पर्यावरण संरक्षण के लिए सामूहिक कार्रवाई की शक्ति का प्रदर्शन करनेवाले प्रयासों में एकजुटता के लिए समुदायों, वन विभाग, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) अधिकारियों और भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों को बधाई।

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