देहरादून निवासी राजा महेंद्र प्रताप सिंह जिन्होंने काबुल में भारत की निर्वासित सरकार बनायी
By- Jay Singh Rawat
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महान नेताओं और सेनानियों का योगदान रहा है, जिनमें से राजा महेंद्र प्रताप सिंह का नाम भी विशेष रूप से लिया जाता है। वे न केवल एक वीर स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए विभिन्न मोर्चों पर संघर्ष किया। राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जीवन भारतीय राजनीति और समाज में एक प्रेरणा के रूप में हमेशा जीवित रहेगा।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को एक जाट परिवार में हुआ था जो मुरसान रियासत के शासक थे। यह रियासत वर्तमान उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में थी। उन्होंने भारत की आज़ादी के लिए अपना राजपाठ भी छोड़ा और भिड़ गए महान शक्तिशाली ब्रिटिश शासन से। हालांकि वे एक राजसी परिवार से थे, लेकिन उनका मन हमेशा समाज की सेवा और देश की स्वतंत्रता के लिए व्याकुल रहा। उस ज़माने में किसी राजपूत राजा द्वारा भंगी के घर खाना एक असाधारण बात थी मगर राजा महेंद्र तो मां भारती के लाल थे जिनके लिए हर भारतवासी अपनी बिरादरी का था। 1907 में, महेंद्र प्रताप सिंह ने भारत के ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया और इसके लिए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष करने का संकल्प लिया।
भारत छोड़ने और निर्वासन की यात्रा
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का सबसे महत्वपूर्ण कदम तब था, जब उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए भारत छोड़ दिया। उन्होंने विदेशों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्थन दिलाने के लिए काम किया। 1915 में, राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने काबुल (अफगानिस्तान) में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को संगठित करने की कोशिश की और वहां एक भारतीय राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की, जिसे निर्वासित सरकार के रूप में जाना जाता है। यह सरकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में थी, जो भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित करने का एक प्रयास था। बाद में यह सरकार सुभाष चंद्र बोस के लिए प्रेरणा श्रोत बनी। राजा महेंद्र प्रताप सिंह की उस निर्वासित सरकार में मौलाना मोहम्मद बरकतुल्लाह उप-प्रधानमंत्री, डॉ. चेम्पाकरमन पिल्लई विदेश मंत्री, उबैदुल्लाह सिंधी को गृह मंत्री नियुक्त किया गया और डॉ. मथुरा सिंह को बिना विभाग का मंत्री बनाया गया। उन्होंने कई राष्ट्राध्यक्षों से भारत के राष्ट्रपति के रूप में मुलाकात कर भारत की स्वतंत्रता के लिए समर्थन माँगा।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने इस निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया। उनके साथ कई अन्य प्रमुख नेता और क्रांतिकारी भी थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि काबुल में स्थित यह अस्थायी सरकार लंबे समय तक स्थिर नहीं रह पाई, फिर भी इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
देहरादून में अख़बार का प्रकाशन
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने संघर्ष के दौरान देहरादून में एक प्रमुख अखबार भी निकाला। इस अखबार का उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बढ़ावा देना और भारतीय जनता को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जागरूक करना था। उनका अखबार भारतीय राष्ट्रीयता, स्वतंत्रता और भारतीयों के अधिकारों के बारे में लिखता था। मेरी जानकारी के अनुसार उनके द्वारा प्रकाशित अखबार का नाम **निर्बल सेवक** था. मगर उनके दूसरे अखबार के नाम “भारत का भविष्य” का भी कहीं उल्लेख आया है यह स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में एक महत्वपूर्ण माध्यम था। देहरादून में रहते हुए ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए विदेशों में समर्थन जुटाने की भी कोशिश की। उनका विश्वास था कि केवल बाहरी समर्थन से ही भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति मिल सकती है।
देहरादून में अंतिम समय
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था, और उन्होंने हमेशा भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई। उनका जीवन देश की सेवा के लिए समर्पित था। उन्होंने अंततः 29 अक्टूबर 1979 में देहरादून के राजपुर रोड स्थित अपने आवास में अपनी आखिरी सांस ली। उनकी मृत्यु के समय, उन्होंने भारतीय समाज के लिए कई योगदान किए थे और उनके संघर्षों को हमेशा याद किया जाएगा। राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली में उनसे सम्बंधित लगभग 2300 जब्त दस्तवेज संरक्षित हैं. उन्होंने अन्य राजाओं की तरह अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार कर हुकूमत नहीं चलाई. निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति बाद में यह सरकार सुभाष चंद्र बोस के लिए प्रेरणा श्रोत बनी. उस निर्वासित सरकार में के राजपुर रोड स्थित अपने आवास में राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली में उनसे सम्बंधित लगभग 2300 जब्त दस्तवेज संरक्षित हैं. उन्होंने अन्य राजाओं की तरह अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार कर हुकूमत नहीं चलाई. अन्यथा वो और उनकी पीढ़ियां आज भी या तो किसी पार्टी के छत्र तले शासन में होती या फिर पुरखों से प्राप्त ऐश्वर्य में डूबी होती.
राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक ऐसे वीर सेनानी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए विदेशी धरती पर भी संघर्ष किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन चलाया, और उनकी अस्थायी सरकार ने भारत को एक नया दृष्टिकोण दिया। उनके द्वारा निकाले गए अखबार और उनकी विदेशों में बनाई गई सरकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण अध्याय बने। देहरादून में उनका निधन हुआ, लेकिन उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जीवित काव्य और संघर्ष के कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान अध्यायों में गिने जाएंगे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि देश की स्वतंत्रता के लिए आत्मसमर्पण और संघर्ष की कोई सीमा नहीं होती।
(नोट: लेखक वरिष्ठ पत्रकार और संपादक मंडल के मानद सदस्य भी हैं. यह सामग्री उनकी ही पुस्तक *स्वाधिनता आंदोलन में उत्तराखंड की पत्रकारिता* से उनकी अनुमति से ली गयी है. -Admin)