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महाकुंभ 2025 में मकर संक्रांति : समय से परे एक उत्सव, जीवन से परे एक पल

Maha Kumbh is a reflection of Indian heritage and spirituality. The Amrit Snan on Makar Sankranti is seen as a way to invite blessings and positivity into life. By taking a dip in the holy Sangam waters, devotees believe they can wash away sins and seek salvation.

-Uttarakhand Himalaya-

सर्दियों के अंत और गर्म दिनों की शुरुआत के संकेतक जैसे ही मकर संक्रांति की सुबह हुई, प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर दिव्य वैभव का दृश्य उत्पन्न हो गया। महाकुंभ 2025 का पहला अमृत स्नान (पवित्र डुबकी) मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर आरंभ हो गया जिसमें लाखों श्रद्धालुओं और संतों ने कड़कती ठंड के बावजूद गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में पवित्र डुबकी लगाई। पहले अमृत स्नान में तीन करोड पचास लाख से अधिक भक्तों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई, जिससे महाकुंभ के पहले दो दिनों में ही श्रद्धालुओं की कुल संख्या 5 करोड़ से अधिक पहुंच गई। शुद्धि और आशीर्वाद के प्रतीक आस्था का यह पुनीत कार्य भारतीय संस्कृति और परंपरा का सार दर्शाता है।

 

श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान करते हुए पवित्रता और समृद्धि की कामना की। कई लोगों ने भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया, पुण्य और मोक्ष के लिए उनसे आशीर्वाद मांगा, क्योंकि मकर संक्रांति सूर्य देव को समर्पित है। वैज्ञानिक रूप से यह त्योहार उत्तरी गोलार्ध में सूर्य के संक्रमण को चिह्नित करता है, जो लंबे दिन और छोटी रातों का संकेतक है। पवित्र डुबकी लगाने के बाद, भक्तों ने अनुष्ठान किए और घाटों पर प्रार्थना की। इसमें उन्होंने तिल, खिचड़ी और अन्य पवित्र वस्तुएं देव को समर्पित कीं। श्रद्धालुओं ने गंगा आरती में भी भाग लिया। परंपरा के अनुसार उन्होंने दान-पुण्य भी किया। श्रद्धालुओं ने तिल और खिचड़ी दान कर इस पवित्र पर्व की पावनता बढ़ा दी।

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कैलिफोर्निया के रहने वाले भारतीय-अमरीकी श्री सुदर्शन ने कुंभ पर्व के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि “मैं छह साल पहले अर्धकुंभ में आया था और मुझे यहां बेहद महत्वपूर्ण अनुभव मिला था। इसलिए मैं इस महाकुंभ मेले में वापस आया हूं क्योंकि यह कुछ ऊर्जाओं से जुड़ने का एक बेहद खास अवसर है जो आपको और कहीं नहीं मिलता इसलिए मैं यहां प्रार्थना करने और जीवन पथ पर आगे बढ़ने के  लिए आशीर्वाद मांगने आया हूं। महाकुंभ पर्व में लोगों की आध्यात्मिक जागृति की ऐसी कई कहानियां हैं।

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महाकुंभ कोई साधारण पर्व नहीं है। यह एक महाघटना है जो त्रिवेणी संगम के घाटों को आस्था और दिव्यता में बदल देती है। रात की गहराई के बाद ब्रह्म मुहूर्त में जब सूर्य की पहली किरण ने संगम को स्पर्श किया तो भक्तों का जैसे वहां रेला लग गया। प्रत्येक मनुष्य संगम में पवित्र डुबकी लगाकर आत्मशुद्धि और आशीर्वाद मांग रहा था। श्रद्धालुओं की सामूहिक भक्ति से जनवरी की कंपकपाती ठंड बिल्कुल नगण्य लग रही थी।

 

लाखों लोगों की इस भीड़ के बीच, संतों के अखाड़ों के स्नान विशेष रूप से दर्शनीय थे। पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के नागा साधुओं ने भव्यता से शाही अमृत स्नान किया। भाले, त्रिशूल और तलवारों से सुशोभित वे एक जुलूस में भीड़ के बीच से निकले जो किसी राजसी आगमन से कम नहीं थी। घोड़ों और रथों पर सवार होकर उनके तपस्वी रूपों ने एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर दिया जिसने उपस्थित जनसमुदाय को सम्मोहित कर लिया। इसके बाद भजन मंडलियों की स्वरलहरियों ने समा बांध दिया और उनके भजन के बीच भक्तों ने “हर हर महादेव” और “जय श्री राम” के उद्घोष किए। तब हवा में एक दिव्य लय के साथ अलौकिक कंपन थी।

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संगम तट पर इन अद्भूत दृश्यों में परिवारों ने भी आस्था की एक और परत जोड़ दी। कहीं पिता ने अपने बच्चों को पवित्र संगम की पहली झलक दिखलाने के लिए अपने कंधों पर बिठा रखा था तो कहीं बेटे अपने बुजुर्ग माता-पिता को भीड़-भाड़ वाले घाटों पर रास्ता दिखा रहे थे ताकि सुनिश्चित कर सकें कि वे भी पवित्र जल में स्नान-अर्चना कर सकें। यह भारतीय संस्कृति के चिरस्थायी मूल्यों का एक जीवंत रूप था जिसमें श्रद्धा, कर्तव्य और एकता समाहित थी।

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तीर्थयात्रियों की व्यापक विविधता –

विभिन्न भाषाएं बोलने वाले, विभिन्न पारंपरिक पोशाक पहने, और अनूठे सांस्कृतिक प्रथाओं का पालन करने वाले श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने संगम तट पर एक अद्भुत सम्भाव का दृश्य उत्पन्न कर दिया है। विविधता के बीच यह एकता महाकुंभ के सबसे गहन पहलुओं में एक है। यहीं पर भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत जीवंत हो उठती है, जिसमें भारतीय तिरंगे के साथ-साथ सनातन परंपरा के भगवा ध्वज लहराते हैं, जो देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है।

 

प्रशासन की सावधानीपूर्वक बनाई गई योजना से सुनिश्चित हुआ है कि महाकुंभ शांतिपूर्ण और सुव्यवस्थित रहे। संगम की ओर जाने वाली हर सड़क पर अवरोधक लगाए गए हैं और सुरक्षा और कुशल भीड़ प्रबंधन के लिए गहनता से जांच की जा रही है। पुलिस और सुरक्षाबल कर्मी मेला क्षेत्र में गश्त लगा रहे हैं और उनकी उपस्थिति महाकुंभ नगर के विशाल क्षेत्र में पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों के लिए आश्वस्त करने वाला दृश्य है। स्वयंसेवकों के प्रयासों से भी मेले में शांति और सुरक्षा बनी हुई है जो श्रद्धालुओं को सहृद्यता और कर्मठता के साथ निर्देशित कर रहे हैं।

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संगम की यात्रा दरअसल कई लोगों के लिए इस पर्व से बहुत पहले ही आरंभ हो गई थी। युवा और बूढ़े तीर्थयात्री अपने सिर पर गठरी लादे मीलों पैदल चलकर वहां पहुंचे जो उनके अटूट विश्वास को दिखलाता है। कुछ लोगों ने रात के समय ही तारों से जगमगाते आसमान के नीचे ठंडे पानी की परवाह न करते हुए पवित्र स्नान शुरू कर दिया। जैसे-जैसे सूरज आसमान पर चढ़ता गया, नागवासुकी मंदिर और संगम क्षेत्र भक्ति के विशाल केंद्र बिंदु बन गए। बुजुर्ग भक्त, महिलाएं और युवा प्रार्थना और पवित्र अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए वहां एकत्रित हो गए।

 

महाकुंभ भारतीय विरासत और आध्यात्मिकता का प्रतिबिंब है। मकर संक्रांति पर अमृत स्नान को जीवन में आशीर्वाद और सकारात्मकता लाने का उपाय माना जाता है। भक्तों का मानना है कि संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से पाप धुलते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बीच दिन ढलने के बाद भी संगम तट पर विभिन्न गतिविधियां जारी रहीं। श्रद्धालुओं ने दीप प्रज्वलित कर उन्हें जलधार में प्रवाहित किया। दीपों की टिमटिमाती लपटें आशा का प्रतीक और प्रार्थना जैसे परमात्मा तक पहुंच रही हो। गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम गोधूलि में झिलमिलाता दिखा, ऐसा लगा जैसे स्वर्ग पृथ्वी को छू रहा हो। प्रयागराज पहुंचकर महाकुंभ 2025 में मकर संक्रांति के साक्षी बनने वालों के लिए यह एक घटना मात्र नहीं बल्कि जीने, महसूस करने और उसे आत्‍मा के अंदर समेटने का अनुभव था। यह समय का वह क्षण रहा जिसने सांसारिक और परमात्मा के बीच भेद को जैसे मिटा दिया।

एक संत के शब्दों में कहा जाए तो- महाकुंभ केवल एक पर्व नहीं, यह शाश्वत से हमारे संबंध का स्मरण कराता है। यह वह स्थान है जहां मानवता के अनगिनत धागे देवत्व और एकता के ताने-बाने बुनने के लिए एक साथ मिल जाते हैं।

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