निकाय चुनाव : 24 घंटे बाद भगदड़ मचने के आसार
-दिनेश शास्त्री-
उत्तराखंड के 107 में से 100 नगर निकायों के लिए शुक्रवार से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। बहुत संभव है इसी दिन सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दें। दोनों दलों में चुनाव लड़ने के इच्छुक दावेदारों की फेहरिस्त लम्बी हैं। पार्टियों को एक पद के लिए एक ही उम्मीदवार की घोषणा करनी है, इस कारण टिकट से वंचित दावेदार पाला बदल सकते हैं। 2027 में विधानसभा चुनाव के लिहाज से दलबदल की यही आशंका दोनों दलों की चिंता को इस कदर बढ़ा रही है कि माथापच्ची ज्यादा करनी पड़ रही है। यह चुनाव सिर्फ इस बार के निकाय चुनाव तक सीमित नहीं है। इसका असर दो साल बाद तक रहना है। निकाय चुनाव का विजेता इतना असर तो रखता ही है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी की राह आसान कर दे, इसलिए खतरा भाजपा और कांग्रेस दोनों को है। दलीय निष्ठा आज के दौर में वैसे भी बीते जमाने की बात हो गई है।
बहुत संभव है कि भगदड़ रोकने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां प्रत्याशियों की घोषणा में थोड़ा सा विलम्ब कर दें लेकिन उससे बहुत ज्यादा लाभ होने वाला नहीं है। मोटे तौर पर सौ में से आधे यानी 50 निकायों में भगदड़ की आशंका बनी हुई है। आरक्षित निकायों में इस समस्या से शायद दो चार न होना पड़े, क्योंकि कई जगहों पर तो योग्य प्रत्याशी ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। इस बार शैक्षिक योग्यता भी एक पैमाना है। ओबीसी वर्ग के लिए पहाड़ के कुछ निकायों में तो प्रत्याशी ढूंढना ही टेढ़ी खीर हो रहा है। बहरहाल प्रत्याशी तैयार कर लिए जाएंगे, इसलिए वहां भगदड़ की आशंका ही सिरे से खारिज हो जाती है लेकिन सामान्य सीटें दोनों दलों के नेताओं के माथे पर इन सर्द रातों में भी पसीना ला रही हैं तो जटिलता को समझा जा सकता है।
प्रकट रूप से कहा जा रहा है कि पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट का अध्ययन हो रहा है, राय मशविरा किया जा रहा है, आदि आदि। लेकिन सच यह है कि दोनों दलों के सामने दावेदारों की लम्बी लिस्ट ने परेशानी बढ़ा दी है। ऐसा भी नहीं है कि जिसे टिकट नहीं मिला, वह भाग ही जाएगा। दोनों पार्टियों में ऐसे लोग भी हैं जो किसी भी सूरत में दलबदल नहीं करेंगे लेकिन इस डर से कौन इनकार करेगा कि टिकट से वंचित रहने की स्थिति में वह उसी मनोयोग से काम करेगा। इस बात की गारंटी तो आज मिलना मुमकिन नहीं, ज्यादातर दावेदार अपना भविष्य छोटी पार्टियों में तलाश सकते हैं। पार्टी के कर्ता धर्ता उस आशंका मात्र से सिहर उठ सकते हैं। कारण वही 2027 का लक्ष्य है और निकाय चुनाव उसकी रिहर्सल।
भाजपा और कांग्रेस दोनों दल ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशी की घोषणा में एक दिन का विलम्ब कर सकते हैं। यानी भगदड़ रोकने की कसरत ज्यादा से ज्यादा दो दिन हो सकती है, उसके बाद तो आया राम गया राम को रोक पाना संभव भी नहीं होगा। खबरें तो यहां तक हैं कि कुछ दावेदारों ने एक नहीं दो दो जगह से टिकट के लिए आवेदन किए हैं और दोनों जगह बात न बनी तो तीसरे विकल्प को भी देख रहे हैं। इस दृष्टि से यही रात अंतिम, यही रात बाकी की स्थिति है। कुछ भी हो लेकिन दिलचस्प दृश्य सामने आने वाले हैं। आप भी इन नजारों का आनंद लीजिए, मतदान में तो अभी बहुत वक्त है।
(नोट: लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा उत्तराखंड हिमालय पोर्टल के संपादक मंडल के मानद सदस्य हैं– एडमिन/मुख्य संपादक)