वैज्ञानिकों ने छात्र-छात्राओं को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे अनुप्रयोगों की जानकारी दी

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देहरादून, 15 अक्टूबर। यू-सैक के सभागार में शनिवार को राजकीय महाविद्यालय रायपुर के विज्ञान एवं भूगर्भ-विज्ञान के छात्र-छात्राओं हेतु विभिन्न क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं इसके अनुप्रयोग विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया।


कार्यशाला के स्वागत सत्र में यू-सैक के निदेशक प्रो0 एम0पी0एस0 बिष्ट ने महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं एवं प्राधायापकों का स्वागत करते हुए कहा कि आज मानव ने अंतरिक्ष प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में काफी उन्न्नति की हैं। जहां पृथ्वी से इतर ग्रहों के रहस्यों का भेद पाने के लिए मनुष्य चांद पर पहुॅच चुका है तो दूसरी तरफ उसने मानव जीवन में ज्ञान-विज्ञान और सुख-सुविधाओं का विस्तार करने के उद्देश्य से अंतरिक्ष में अत्याधुनिक तकनीक सम्पन विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को स्थापित करने में अदभुत सफलता प्राप्त की हैं। आज हमारा देश अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व में अपना विशेष स्थान रखता है। हमारे देश ने अपने विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ, कृषि, नियोजन, सूचना एवं संचार आदि क्षेत्र में विशेष प्रगति हासिल की है। प्रो0 बिष्ट ने छात्र-छात्राओं से अपेक्षा की कि आज की इस प्रशिक्षण कार्यशााला में दिये जाने वाले व्याख्यानों एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण को हृदय से आत्मसात करेगें।
कार्यशाला के तकनीकी सत्र के अर्न्तगत के प्रथम सत्र में बेसिक ऑफ रिर्मोट सेंसिग विषय पर जानकारी देते हुुए केन्द्र में कार्यरत सिस्टम मैनेजर श्री हेमन्त बिष्ट ने छात्र-छात्राओं को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका एवं विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे अनुप्रयोगों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने बताया कि जी0आई0एस0 के टूल्स डाटा, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, मल्टीमिडिया, लोग, प्रक्रिया हैे। जी0आई0एस0 का मैपिंग, दूरसंचार और नेटवर्क, शहरी नियोजन, कृषि एवं बागवानी, नियोजन एवं नितिनिर्धारण में विशेष महत्व हैं। उन्होने बताया कि रिर्मोट सेंसिग से तात्पर्य एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी वस्तु या स्थान के सम्पर्क में आये बिना ही इसकी सम्पूर्ण जानकारी उपग्रह से प्राप्त कर ली जाती हैं।
कार्यशाला के द्वितीय सत्र में केंद्र की वैज्ञानिक डा. सुषमा गैरोला द्वारा ‘जीआईएस एण्ड इट्स ऐप्लीकेशंस’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। जियोग्रेफिक इंफोर्मेशन सिस्टम (भौगोलिक सूचना तंत्र) के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यह एक कम्प्यूटर बेस्ड तकनीकी है जिसमें भौगोलिक सूचनाओं का एकत्रीकरण, स्टोरेज, मैनेजमेंट, एनालिसिस, एवं मॉडलिंग की जाती है तथा भूस्थानिक डेटाबेस तैयार किया जाता है तथा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, आपदा प्रबंधन, अर्बन प्लानिंग, संचार इत्यादि क्षेत्रों में भौगोलिक सूचना तंत्र अति महत्वपूर्ण एवं उपयोगी है।

केंद्र की वैज्ञानिक डा. दिव्या उनियाल द्वारा ‘रोल ऑफ रिमोट संेसिंग एण्ड जीआईएस इन ऐग्रीकल्चर सेक्टर’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। उनके द्वारा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से कृषि एवं बागवानी आच्छादित क्षेत्रफल तथा उत्पादन का आंकलन, जलवायु परिवर्तन का उत्पादकता पर असर, फसल के उपयुक्त भूमि का चयन, आपदा के पश्चात क्षतिग्रस्त कृषिभूमि का मानचित्रीकरण, कृषि भूमि में आए बदलावों आदि का अध्ययन संबंधित जानकारी प्रदान की गई।

कार्यशाला के तृतीय सत्र में केंद्र की वैज्ञानिक डा. आशा थपलियाल द्वारा ‘जियोस्पेशियल ऐपरोचेज फॉर वाटर रिसोर्स मैनेजमंेट’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। उन्होंने बताया कि जल संसाधन प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अत्यन्त महत्वपूर्ण है इस तकनीकी की सहायता से बर्फ-हिमनद, हिमनद झीलों, सतही जल इत्यादि की मैपिंग, मॉनीटिंªग एवं एनालिसिस की जा सकती है। जलस्रोतों में आ रही कमी तथा अतिवृष्टि एवं उससे हो रहे नुकसान का भी इस तकनीकी द्वारा विश्लेषण किया जा सकता है।
तकनीकी सत्र के तृतीय सत्र में एप्लीकेशन ऑफ आर0एस0 एण्ड जी0आई0एस0 विषय पर जानकारी देते हुए केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 गजेन्द्र सिंह बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विभिन्न आयामों का वानकी में कैसे प्रयोग होता है। जिसमें जैव-विविधता आंकलन, प्रजातियों का वितरण, औषधीय एवं सगंध पादकों का अध्ययन, वनों में आ रहे बदलाव का अध्ययन, जंगल में हो रहे वनाग्नि घटनाओं का अध्ययन आदि पर छात्र-छात्राओं को विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी।
तकनीकी सत्र के चतुर्थ सत्र में केन्द्र के वैज्ञानिक श्री शशांक लिंगवाल, ने छात्र-छात्राओं को मैपिंग की महत्ता को समझााते हुये इसकी विभिन्न तकनीकों से अवगत कराया और साथ ही अन्तराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व ग्रामीण स्तर पर वेब जी.आइ्र.एस. प्लेटफार्म की नियोजन में महत्ता को समझाया। उन्होंने छात्र-छात्राओं को भारत में चल रहे विभिन्न वेब जी.आइ्र.एस. पोर्टल जैसे- भूवन, गति-शक्ति, बाईजेक, कर्नाटका व एम.बी.डी.सी., इत्यादि के बारे में जानकारी प्रदान की।
कार्यशाला के अन्तिम सत्र में छात्र-छात्राओं को हेण्डसाऑन टैªनिंग में केन्द्र में कार्यरत जूनियर रिसर्च फैलो कु0 सोनम बहुगुणा एवं कु0 काव्या बौन्याल ने उपग्रह से डेटा एवं ईमेज डाउनलोड करना एवं ईमेज को इण्टरप्रेट एवं प्रोसेस करने की जानकारी प्रदान की। प्रायोगिक सत्र में प्रतिभागियों को जी0पी0एस0 से अक्षांतर एवं देशान्तर से लोकेशन प्राप्त करना सिखाया।
कार्यशाला के समापन सत्र में छात्र-छात्राओं के दल के साथ आये महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रो0 दयाधर दीक्षित ने यू-सैक का धन्यवाद करते हुए कहा कि यू-सैक द्वारा समय-समय पर छात्र-छात्राओं एवं रेखीय विभागों के लिए इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है जिनके माध्यम से अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वापूर्ण जानकारी लाभार्थियों को प्रदान की जाती हैं। आज के प्रशिक्षण कार्यशाला में छात्र-छात्राओं को इसका बेसिक व्यहारिक एवं प्रायोगिक ज्ञान प्राप्त हुआ जो कि उनके शैक्षिक एवं व्यवहारिक जीवन में लाभकारी सिद्ध होगा।
केन्द्र के निदेशक प्रो0 एम0पी0एस0 बिष्ट द्वारा कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र भी प्रदान किये गये। कार्यशाला के अन्त में केन्द्र के वैज्ञानिक श्री पुष्कर कुमार द्वारा कार्यशाला में प्रतिभाग कर रहे छात्र-छात्राओं, प्राध्यापकों एवं केन्द्र के वैज्ञानिकों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुये कार्यशाला का समापन किया।
कार्यशाला का संचालन डा0 सुषमा गैराला द्वारा किया गया। कार्यशाला में यू-सैक के वैज्ञानिक- डा0 नीलम रावत, डा0 आशा थपलियाल, श्री शशांक लिगवाल, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी- श्री आर0एस0मेहता, जनसम्पर्क अधिकारी- श्री सुधाकर भट्ट, श्रीमती दिव्या उनियाल, हेमन्त बिष्ट, डॉ0 नवीन चद्र, कुमारी सोनम बहुगुणा, श्री विवेक तिवारी, श्री विपुल बिष्ट, श्री याहया काजमी, कु0 काव्या बौन्याल, श्री देवेश कपरूवाण, श्री गोविन्द नेगी, श्री दीपक नेगी, श्री विकास शर्मा एवं महाविद्यालय के छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

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