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जन कवि अतुल शर्मा की आत्मकथा पुस्तक दून जो बचपन मे देखा पर बातचीत

–uttarakhandhimalaya.in

देहरादून,15 जून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में लेखक डॉ.अतुल शर्मा से उनकी आत्मकथा पर केंद्रित पुस्तक दून जो बचपन मे देखा पर युवा रचनाकार श्री विवेक डोभाल ने बातचीत की।

अतुल शर्मा की यह एक रोचक और महत्वपूर्ण आत्मकथा है, जिसमें देहरादून की 60 व 70 के दशक की स्मृतियों को लेखक ने बहुत सूंदर तरीक़े से उकेरा है। उस समय देहरादून कैसा था यह इस पुस्तक में मिलता है। स्मृतियां इसलिये भी जीवंत हैं क्योंकि लेखक का बचपन यहीं बीता। अतुल शर्मा एक सुपरिचित लेखक व जनकवि हैं। उनसे बातचीत करते हुए विवेक डोभाल ने कई जिज्ञासाएं और सवाल पूछे। इस पर जवाब देते हुए लेखक ने बताया कि उनका जन्म परेड ग्राउंड और कला केन्द्र के पास लिटन रोड मे हुआ था जिसे अब सुभाष रोड कहा जाता है तब यहाँ मकानों मे दीवारें नहीं दिखती थीं, बस झाडियाँ होतीं थीं,छतें आधिकांश टीन की होती। बारिश की झड़ी तो हफ्ते दर हफ्ते चलती थी आसपास के देहातों मे भड्डू (एक बर्तन)चढ़ जाते थे और ऊसमे पकती थी तोर की दाल। लकड़ी और कोयले की अंगिठियां ही होतीं। घर के सामने नहर पर छोटी छोटी लहरें बहै करती। वहीं सड़क के दोनों ओर फूलों और फलों के बाग होते । जनसंख्या आज के मुकाबले बहुत कम थी । चारों ओर पहाडो़ से घिरी दून घाटी अपने मौसम के कारण प्रसिद्ध थी । रिस्पना नदी पर पुल नही था बरसात मे नदी का बहाव खत्म होने तक प्रतीक्षा की जाती। आस पास अमरूद के बाग होते थे।
उन्होंने बताया कि दून नहरों का शहर हुआ करता था। ईस्ट कैनाल रोड की नहर जो अब ढक दी गयी है उसमें नहाने और दूर तक बहते चले जाने का एक अलग ही सुख मिलता था । करनपुर चौराहे से लगे सर्वे ऑफ इन्डिया की ओर से जो नहर चलती वह जाखन से आती थी ।चौराहे के पास ही पनचक्की थी जिसमें गेहूं पिसाने दूर दूर से लोग आते थे।लेखक ने और भी कई रोचक बाते बता कर अपनी आत्मकथा के ज़रिए साझा की। अब यह बातें कल्पना की रह गयीं है।
डालनवाला और अन्य जगहों पर कोठियों मे आम और लीची के पेड़ जरूर होते थे । फलों की रखवाली के लिए रखवाले पेड़ के ऊपर कनस्तर बांधते और नीचे तक लटकी रस्सी खींचते तो कनस्तर के भीतर लगा लोहे का टुकड़ा बजता और पंछी उड़ जाते । बचपन मे हमने आम और लीची कभी खरीदकर नही खाये वह यहाँ वहाँ से आ जाते थे ।
उन्होंने बताया कि उनके घर पर साहित्य, सामाजिक, राजनीतिक, गोष्ठियाँ होती रहती थी । पिताजी देश के प्रसिद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानी एवं राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि थे तो महत्वपूर्ण शख्सियतें आती रहतीं । जिनमें महापंडित राहुल सांकृत्यायन, महावीर त्यागी, चंद्रावती लखनपाल, मास्टर राम स्वरूप, विरेंद्र पांडे, चौधरी सत्येन्द्र सिह, नरदेव शास्त्री, भक्त दर्शन, सुन्दर लाल बहुगुणा आदि । लोहे की बाल्टी मे आम रखे जाते और सभी उन्हे चूस कर खाते और ठहाके लगाते ।
आत्मकथा दून जो बचपन मे लेखक ने लिखा है कि दून घाटी की पहचान थी,चाय, बासमती चावल,और चूना । तब यहां चाय बागान बहुत थे और बासमती की महक हर गांव से आती थी ।चूने की खदाने बंद कर दी गयी है।
यहां आवागमन का मुख्य साधन रहता था तांगा ।
डालनवाला में महान क्रांतिकारी व मानवता वादी एम एन राय और प्रसिद्ध लेखक भगवत शरण उपाध्याय, अभिनेत्री ज़हर सहगल व उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका कुर्तुलेन हैदर रहते थे। प्रसिद्ध सितारवादक उस्ताद विलायत खां व विचित्र वीणा वादक अजीत सिंह आदि भी यहाँ की शान थे।

बचपन मे झंडे का मेला आकर्षण का केंद्र रहा साथ ही यहाँ की प्रसिद्ध क्वालिटी चौकलेट का स्वाद अलग ही होता था।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून जो बचपन मे देखा के अंश कहानी कार रेखा शर्मा , कवयित्री रंजना शर्मा और महिमा कुकरेती ने पढ़े। बस्तचीत के अंत में लोगों ने लेखक से इस पुस्तक के बारे में कुछ सवाल-जबाब भी किये।

कार्यक्रम के दौरान बहुत से लोग उपस्थित रहे। इसमें दून पुस्तकालय के युवा पाठक,श्री निकोलस हॉफ़लैंड, डॉ.योगेश धस्माना, रविन्द्र जुगरान, श्री सुन्दर सिंह बिष्ट सहित अनेक साहित्यकार, लेखक व रंगकर्मी शामिल रहे।

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