केदारनाथ आपदा ( 16-17 June) का वो खौफनाक मंजर जो मैंने अपनी आँखों से देखा
–राजेश सेमवाल ’मृदुल’-
हर वर्ष की भांति केदारनाथ यात्रा वर्ष 2013 के जून माह के दूसरे सप्ताह में भी चरम पर थी और यहां रूह कंपाने वाली ठंड थी और राष्ट्रीय सहारा की टीम भी केदानाथ में इस दौरान थी। वर्ष 2013 में हिमालय इस कदर रूठा कि हजारों लोग जल प्रलय रूपी आपदा के काल गाल में समा गये थे।
16 जून को यहां केदारनाथ में ठंड चरम पर थी और सांझ ढल चुकी थी। घोड़े खच्चरों की रफ्तार थमी हुई थी। रास्ते की स्ट्रीट लाइटें जुगन प्रकाश की तरह जल रही थी। हैली सेवा बन्द थी तो घोड़, खच्चर, डंडी कंडी वालों की हड़ताल के कारण लगभग 20 हजार से ज्यादा स्थानीय व यात्री गण यहां ठहरे हुये थे। प्रशासन की एडवाइजरी थी कि जो यात्री जहां है वो वहीं रहेगा। मौसम विभाग ने प्रशासन को सचेत किया था। तत्कालीन जिलाधिकारी विजय कुमार ढौडियाल को भी वस्तु स्थिति से अवगत कराया गया था। तब तक दूरभाषा सेवाएं संचालित थी। केदारपुरी यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी। बाबा के दर्शनों के लिए केदारनाथ मंदिर परिसर से लेकर भैरवनाथ मार्ग तक रात्रि को भक्तो की भीड़ लगी हुई थी। किसी को आशंका नहीं थी कि अनहोनी होगी।
सुबह 15 तारीख को भैरवनाथ पूजा थी तो 16 जून सुबह से ही मोटी मूसलाधार वर्षा जारी थी शाम को केदारनाथ में शंकराचार्य भवन जमींदोज हो गया था। कई पुलिस कर्मियों सहित रूद्रनाथ भट्ट, आशीष खंडूडी सहित दर्जनों लोग जिंदा दफन हो गये थे। कुछ ही देर में चंदनगिरी का आश्रम भी मिट्टी में मिल गया और बाबा का मृत शरीर शंकराचार्य सामाधि स्थल पर टूटी शिला पर गिरा पड़ा था तो भारतसेवा आश्रम भी सैंकडों लोगों सहित शिवलोक में समा गया था।
कुछ देर आपदा थमने के बाद आसमान साफ हुआ तो 17 जून की सुबह सवा सात बजे मंदिर प्रांगण में जान बचाने को लोग पहुंचे। फिर आसमान साफ हुआ तो सवा सात बजे सभी लोग अपने अपने कमरों की ओर चल दिये। 8 बजकर 45 मिनट पर शिव जटाओं से आई त्रिपदगा इतनी विकराल हो गई कि वो चौरीबाड़ी ताल को फाड़कर सीधे केदारपुरी को तहस नहस कर आगे बड़ी। बिरला हाउस, आरती भवन, मोदी भवन, सर्राफा गेस्ट हाउस, सहारा गेस्ट हाउस, विटको, चांद कोटेज, गोपाल धाम आदि सैंकड़ों धर्मशालाऐं मिट्टी में समा गई और भगवान केदारनाथ की भोग मंडी सहित तोसा खाना, ईशानेश्वर मंदिर सब बह गया था और मधुगंगा क्षीरगंगा का जल केदारनाथ के वीआईपी गेट से अंदर घुसा और पूरा मंदिर पानी से भर गया।
मंदिर के अंदर त्राही-त्राही मची हुई थी। तभी अचानक ऐसा कुछ हुआ कि केदारनाथ मंदिर की दाई खोली से नारायण और लक्ष्मी की मूर्ति वाले गेट से पूरा बाढ़ का पानी मूर्तियों का बहाते हुये बाहर निकला। तब हुआ तबाही का असली मंजर शुरू।
केदारपुरी का दाया और बाया हिस्सा साफ हो गया था। मंदिर के आगे लगे घंटे सब बह गये थे तो तत्कालीन ऊखीमठ के उपजिलाधिकारी राकेश तिवारी व पुलिस क्षेत्राधिकारी बाबा केदार के गण नंदी को पकड़ कर चिपक गये और यहीं इनकी जान बची और आज भी यह इस दृश्य को याद करते होंगे तो कांपती होगी रूह। जून माह की केदारनाथ की आपदा सब कुछ तहस नहस कर गई। अन्नपूर्णा मंदिर से लेकर मंदाकिनी पर बने पुल घोड़ा पड़ाव इस आपदा की भेंट चढ़ गये थे। लोग जान बचाने के लिए भैरवनाथ की तरफ गये और वहां से आगे बढ़ते गये। अधिकांश जाने ठंड व भूख प्यास से भी गई। एसबीआई का लाखों रूपया तिजौरी सहित बह गया था। हजारों की संख्या में घोडे खच्चर, बकरियां तथा भैंसे भी इस आपदा में मर गये थे। सरकारी अनुमान जो कुछ हों, लेकिन हजारों लोगों ने इस आपदा में चल बसने का अनुमान है। आपदा इतनी भयावह थी कि आपदा ने केदारपुरी के बाद घिनुड़पाणी को तहस-नहस किया। जो रामबाड़ा बाजार हमेशा यात्राकाल में गुलजार रहता था आज उसका नामोंनिशान नहीं है। यही नहीं आपदा की तबाही 14 किमी पैदल मार्ग को तहस-नहस कर गौरीकुंड पहुंची थी। यहां पार्वती कुंड जिसे गर्म कुंड कहा जाता है मिट्टी में दफन हो गया था तो पितृकुंड भी बरबाद हो गया था।
गौरीमाई मंदिर भी मलबे की चपेट में आ गया था, भारी नुकसान जहां जानमाल का हुआ। सोनप्रयाग का पूरा आधा बाजार साफ हो गया था तो मोटरपुल भी बह गया था। निर्माणाधीन लैंकों की जल विद्युत परियोजना भी तहस-नहस हुई थी। 17 जून की रात्रि को यह आपदा सीतापुर पहुंची जहां हजारों की संख्या में लोग ठेहरे हुये थे। यहां ज्यादा तबाही नहीं हुई, नदी के छौरों पर बसे छोटे बड़े कस्बे आपदा की चपेट में आ गये थे। कुंड, कागड़ागाड भी आपदा की भेंट चढ़ गये। भीरी से आगे चंद्रापुरी, बांसवाड़ा में भारी तबाही हुईं यहां दर्जनों भवन व्यवसायिक लॉज भी बह गये थे। इस आपदा में नदी के छौरों पर बनी पनचक्कियां भी साफ हुई। तो पीपल व बरागद के पेड़ों का सफाया भी इस आपदा ने किया। यहीं नहीं आपदा सफाया करते हुये श्रीनगर में पहुंची जहां एसएसबी, आईटीआई सहित कई प्रतिष्ठानों व घरों को नुकसान पहुंचा। नीचे के इलाकों में आपदा नदी के ज्यादा हुई जल स्तर को लेकर दिन में पहुंची इसलिए जान माल का कम नुकसान हुआ। स्थिति इतनी विकट थी कि केदारनाथ के पुजारी बागेश लिंग अपने खाली शरीर के कपड़ों के साथ गुप्तकाशी पहुंच चुके थे और केदारनाथ की पूजा की अक्षुण्य परंपरा भी टूट चुकी थी। और रुद्रप्रयाग का डीएम भाग कर देहरादून के एक अस्पताल में भर्ती हो गया था. तीन दिन तक भयंकर आपदाग्रस्त रुद्रप्रयाग बिना जिला मजिस्ट्रेट के रहा.
तब शासन-प्रशासन हरकत में आ चुका था। जिन हैली काप्टरों का विरोध किया जा रहा था। उन्हीं से रैस्क्यूं कर देशी विदेशी स्थानीयों को निकाला जा रहा था। कालीमठ चौमांसी के रास्ते कुछ लोग केदारनाथ पहुंचे तो कुछ लोग इसी रास्ते जान बचाकर वापस लौटे। इस आपदा का आंखों देखा हाल बड़ा खौफनाक था।
आपदा के आसूं कभी न पौंछे जाने वाले आसूं के तौर पर जख्म बन गये। घरों के चिराग उड गये। मां की कौखें सुनी हो गई थी बहनों की मांग की सिंदूरें उजाड गई यह आपदा। 2013 की आपदा यूं तो राष्ट्रीय आपदा के तौर पर घोषित की जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आपदा को लेकर देश दुनिया में साधु संतों में नई नई बहसें जरूर होती रहीं।